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तीन दशक बाद सीआरपीएफ के बिना लोकसभा चुनाव कराना बड़ी चुनौती! तैयारी में जुटा है महकमा - नक्सल प्रभावित क्षेत्र

Lok Sabha elections without CRPF. पलामू के इलाके में तीन दशक बाद सीआरपीएफ के बिना लोकसभा चुनाव करवाना आयोग के लिए बड़ी चुनौती होगी. पिछले साल अक्टूबर महीने में सीआरपीएफ कैंप को इस इलाके से हटाने का फैसला लिया गया था.

Lok Sabha elections without CRPF
Lok Sabha elections without CRPF
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 6, 2024, 3:56 PM IST

पलामू: तीन दशक बाद केंद्रीय रिजर्व बल (CRPF) के बिना पलामू के इलाके में लोकसभा चुनाव की तैयारी हो रही है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों के खिलाफ लगातार कई महीनों तक अभियान चलाया जाता है. इस अभियान का नेतृत्व सीआरपीएफ ही कर रहा था. पलामू का इलाका बिहार के साथ साथ लातेहार और चतरा से सटा हुआ है.

बिहार के गया, औरंगाबाद और चतरा, लातेहार सीमा पर सीआरपीएफ ही नक्सल विरोधी अभियान की कमान को संभालता था. पलामू में पिछले एक दशक से सीआरपीएफ 134 बटालियन तैनात थी. सीआरपीएफ 134 बटालियन की सभी कंपनी को पलामू से हटा कर सारंडा के इलाके में तैनात कर दी गई है. इससे पहले सीआरपीएफ की 13वीं बटालियन तैनात थी, जो एक दशक तक नक्सल विरोधी अभियान की कमान को संभाले हुए था. 2009 के बाद से सीआरपीएफ बिहार से सटे हरिहरगंज, चक, डगरा, मनातू, कुहकुह समेत कई इलाकों में तैनात था.

चुनाव से छह महीने पहले सीआरपीएफ के माध्यम से शुरू होता था अभियान: लोकसभा चुनाव में कुछ महीने बाकी है. चुनाव से करीब छह महीने पहले पलामू के इलाके में नक्सलियों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया जाता था. एक एक रोड को सेनेटाइज किया जाता था. पलामू में दर्जनों ऐसे रोड हैं जो काफी संवेदनशील हैं, जिस पर पुलिस आज भी कड़ी सुरक्षा में चलती है.

सीआरपीएफ के जाने के बाद से पलामू में अपना बम निरोधक दस्ता भी नहीं है. 2019 के लोकसभा चुनाव में पलामू के हरिहरगंज के बीच बाजार में माओवादियों ने विस्फोट कर भाजपा के कार्यालय को उड़ा दिया था. वहीं विधानसभा चुनाव में पिपरा बाजार में प्रखंड प्रमुख के पति को गोलियों से भून दिया था. 1999 से 2019 के लोकसभा चुनाव तक पलामू के इलाके में कई बड़े नक्सली हमले हुए हैं. ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोकसभा चुनाव की तैयारी के दौरान सीआरपीएफ की टीम मौजूद नहीं है.

आजसू के केंद्रीय सचिव विजय मेहता ने कहा कि केंद्रीय बलों के मौजूद नहीं रहने से सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा. सरकार को सोच समझकर निर्णय लेने की जरूरत है. सीआरपीएफ के रहने से नक्सल विरोधी अभियान को मजबूती मिलती थी.

ये भी पढ़ें-

पलामू से कैंप हटने के बाद उठ रहे कई सवाल, सीआरपीएफ ने कहा- तैनाती राज्य सरकार की नीतियों पर निर्भर

पलामू: तीन दशक बाद केंद्रीय रिजर्व बल (CRPF) के बिना पलामू के इलाके में लोकसभा चुनाव की तैयारी हो रही है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों के खिलाफ लगातार कई महीनों तक अभियान चलाया जाता है. इस अभियान का नेतृत्व सीआरपीएफ ही कर रहा था. पलामू का इलाका बिहार के साथ साथ लातेहार और चतरा से सटा हुआ है.

बिहार के गया, औरंगाबाद और चतरा, लातेहार सीमा पर सीआरपीएफ ही नक्सल विरोधी अभियान की कमान को संभालता था. पलामू में पिछले एक दशक से सीआरपीएफ 134 बटालियन तैनात थी. सीआरपीएफ 134 बटालियन की सभी कंपनी को पलामू से हटा कर सारंडा के इलाके में तैनात कर दी गई है. इससे पहले सीआरपीएफ की 13वीं बटालियन तैनात थी, जो एक दशक तक नक्सल विरोधी अभियान की कमान को संभाले हुए था. 2009 के बाद से सीआरपीएफ बिहार से सटे हरिहरगंज, चक, डगरा, मनातू, कुहकुह समेत कई इलाकों में तैनात था.

चुनाव से छह महीने पहले सीआरपीएफ के माध्यम से शुरू होता था अभियान: लोकसभा चुनाव में कुछ महीने बाकी है. चुनाव से करीब छह महीने पहले पलामू के इलाके में नक्सलियों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया जाता था. एक एक रोड को सेनेटाइज किया जाता था. पलामू में दर्जनों ऐसे रोड हैं जो काफी संवेदनशील हैं, जिस पर पुलिस आज भी कड़ी सुरक्षा में चलती है.

सीआरपीएफ के जाने के बाद से पलामू में अपना बम निरोधक दस्ता भी नहीं है. 2019 के लोकसभा चुनाव में पलामू के हरिहरगंज के बीच बाजार में माओवादियों ने विस्फोट कर भाजपा के कार्यालय को उड़ा दिया था. वहीं विधानसभा चुनाव में पिपरा बाजार में प्रखंड प्रमुख के पति को गोलियों से भून दिया था. 1999 से 2019 के लोकसभा चुनाव तक पलामू के इलाके में कई बड़े नक्सली हमले हुए हैं. ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोकसभा चुनाव की तैयारी के दौरान सीआरपीएफ की टीम मौजूद नहीं है.

आजसू के केंद्रीय सचिव विजय मेहता ने कहा कि केंद्रीय बलों के मौजूद नहीं रहने से सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा. सरकार को सोच समझकर निर्णय लेने की जरूरत है. सीआरपीएफ के रहने से नक्सल विरोधी अभियान को मजबूती मिलती थी.

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