भोपाल। भाजपा ने लोकसभा चुनाव को लेकर एमपी से 24 सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है. नवाबों के गढ़ भोपाल से आलोक शर्मा को टिकट दिया गया है. इस बार पार्टी ने भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का टिकट काट दिया है. प्रज्ञा सिंह ठाकुर अपने विवादित बयानबाजी के लिए विवादों में रहती थी. सूत्रों के मुताबिक पार्टी उनसे नाराज चल रही थी. नतीजतन इसलिए उनको इस बार टिकट नहीं दिया गया.
भोपाल यानी नवाबों का शहर, ऐसा शहर जो अपनी गंगा-जमुना तहजीब के लिए पहचाना जाता है. ऐसा शहर जिसकी पहचान ताल-तलैयों की नगरी से है, एशिया की सबसे छोटी-बड़ी मस्जिद से है. पिछले 10 हजार सालों से मानवीय बसाहत के प्रमाण पेश करती भीमबैठका से है. तमाम खूबियों और पहचान को अपने में समेटे भोपाल लोकसभा सीट ने ही देश को शंकर दयाल शर्मा के रूप में राष्ट्रपति दिया और मुख्यमंत्री के रूप में उमा भारती का चेहरा भी उभारा. बीजेपी के लिए यह सीट हिंदुत्व की प्रयोगशाला से कम नहीं रही. यहां से दो बार महिला भगवाधारी को उतार चुकी है. भोपाल लोकसभा पर बीजेपी का 35 सालों से कब्जा है, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या इस बार बीजेपी फिर पुराने नतीजे दोहरा पाएगी?
रानियां और बेगम भोपाल की पहचान
भोपाल शहर को गोंड शासकों से बसाया... 1400 सालों तक भोपाल पर गोंड शासकों ने राज किया. भोपाल की पहचान रानियों और बेगमों से भी है. गोंड वंश की रानी कमलापति, कुदसिया बेगम, सिकंदर जहां बेगम, शाहजहां बेगम, सुल्तान जहां बेगन ने भोपाल की बागडोर संभाली. लोकतंत्र बहाली के बाद भी पहला चुनाव अफगानिस्तान के दुर्रानी शासक की वंजश मैमूना सुल्तान ने जीता. उनके पिता मोहम्मद असगर अंसारी आईसीएस अधिकारी और बाद में केन्द्र सरकार में मंत्री भी रहे. मैमूना सुल्तान ने भोपाल को राजधानी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे लगातार दो बार भोपाल से सांसद चुनी गई. दोनों बार उन्होंने हिंदु महासभा के हरदयाल देवगांव को हराया, लेकिन 1967 के चुनाव में वे जनसंघ के जेआर जोशी से चुनाव हार गई. बाद में उन्हें राज्यसभा में भेज दिया गया. भोपाल लोकसभा सीट से 1971 और 1980 में दो बार शंकर दयाल शर्मा भी चुने गए, जो देश के 9 वें राष्ट्रपति बने.
मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में
भोपाल लोकसभा सीट का जातिगत समीकरण देखें तो इस सीट पर करीबन 25 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जो निर्णायक माने जाते हैं. मुस्लिम वर्ग के अलावा ओबीसी वोटर्स करीब 5 लाख, ब्रहाम्ण वोट करीब 3.75 हजार, क्षत्रिय सवा लाख, सिंधी वोटर्स करीब ढाई लाख और एससी-एसटी वोटर्स की संख्या करीबन ढाई लाख है. भोपाल लोकसभा सीट में भोपाल की छह विधानसभा सीटें बैरसिया, भोपाल उत्तर, नरेला, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, भोपाल मध्य, गोविंदपुरा, हुजूर और सीहोर जिले की सीहोर विधानसभा सीट आती है. इन 8 विधानसभा सीटों में से भोपाल उत्तर और भोपाल मध्य को छोड़ दिया जाएं तो बाकी सभी 6 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.
बीजेपी का पिछले 35 सालों से कब्जा
भोपाल लोकसभा सीट पर पिछले 35 सालों से बीजेपी का कब्जा बरकरार है. 1989 में बीजेपी के सुशील चंद्र वर्मा ने कांग्रेस के केएन प्रधान को हराकर कांग्रेस से यह सीट छीनी थी. वे 1998 तक हुए लगातार पांच चुनावों में लगातार जीत दर्ज की. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, कैलाष जोशी, आलोक संजर और प्रज्ञा ठाकुर ने जीत को लगातार बरकरार रखा.
2019 का लोकसभा चुनाव
2003 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद 10 साल तक चुनाव न लड़ने की कसम पूरी कर 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल से दिग्विजय सिंह चुनाव मैदान में उतरे. दिग्विजय सिंह से मुकाबले के लिए बीजेपी ने मालेगांव ब्लॉस्ट की आरोपी रहीं प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनाव में उतारा. चुनाव में दिग्विजय सिंह साढ़े 3 लाख वोटों के बड़े अंतर से हार गए.
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, बीजेपी - 8 लाख 66 हजार 482 वोट
दिग्विजय सिंह, कांग्रेस - 5 लाख 1 हजार 660 वोट
हार-जीत का अंतर - 3 लाख 64 हजार वोट
2014 का लोकसभा चुनाव
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने लंबे समय से संगठन से जुड़े रहे आलोक संजर को चुनाव में उतारा. जबकि संजर के मुकाबले कांग्रेस ने पूर्व विधायक पीसी शर्मा को चुनाव में उतारा. चुनाव में बीजेपी की एक तरफा जीत हुई.
आलोक संजर, बीजेपी - 7 लाख 14 हजार 178
पीसी शर्मा, कांग्रेस - 3 लाख 43 हजार 482
जीत-हार का अंतर - 3 लाख 70 हजार 696 वोट
2009 का लोकसभा चुनाव
2009 के चुनाव में बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश चंद्र जोशी को चुनाव में उतारा, जबकि उनके सामने थे कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह ठाकुर. चुनाव एकतरफा रहा. कांग्रेस प्रत्याशी 65 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए.
कैलाष जोशी, बीजेपी - 3 लाख 35 हजार 678
सुरेन्द्र सिंह ठाकुर, कांग्रेस - 2 लाख 70 हजार 521
जीत-हार का अंतर - 65 हजार 157
2004 का लोकसभा चुनाव
पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी को बीजेपी ने उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में उतारा. कांग्रेस ने मैदान में उतारा साजिद अली को, लेकिन कांग्रेस को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.
कैलाष जोशी, बीजेपी - 5 लाख 61 हजार 563
साजिद अली, कांग्रेस - 2 लाख 55 हजार 558
जीत- हार का अंतर - 3 लाख 6005
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1999 का लोकसभा चुनाव
1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने भोपाल से फायरब्रांड नेता उमा भारती को चुनाव मैदान में उतारा. कांग्रेस की तरफ से उनके मुकाबले पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
उमा भारती, बीजेपी - 5 लाख 37 हजार 905
सुरेश पचौरी, कांग्रेस - 3 लाख 69 हजार 41
जीत-हार का अंतर - 1 लाख 68 हजार 864
शहर का विकास एक बड़ा मुद्दा
प्रदेश में भले ही एक ही पार्टी का लगातार सांसद रहा हो, लेकिन आज भी अनियमित विकास एक बड़ा मुद्दा है. पिछले 25 सालों से भोपाल का नया मास्टर प्लान ही नहीं लाया जा सका. इससे शहर का विकास बेहतर तरीके से नहीं हो पा रहा है. भोपाल में दूसरें शहरों से आने वाले छात्र-छात्राओं और लोगों की बड़ी संख्या है, जिस तरह से लोगों की संख्या बढ़ी, भोपाल में रोजगार के संसाधन विकसित नहीं हो पाए. शहर का विकास एक बड़ा मुद्दा है. कॉलोनियों में सीवेज, अच्छी सड़क बड़ा मुद्दा बना हुआ है. कॉलोनियों के पार्क बेहाल पड़े हैं. शहर को झुग्गीमुक्त बनाना अब भी बड़ा मुद्दा है, लगातार नई-नई झुग्गी बस्तियां बन रही हैं. भोपाल एजुकेशन का बड़ा हब बनकर नहीं उभर पाया. भोपाल में कई शिक्षण संस्थान मौजूद हैं, लेकिन यह गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा में अपनी बेहतर छाप नहीं छोड़ पाए. नतीजतन बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं कोटा, इंदौर, दिल्ली पढ़ाई के लिए जाना पड़ रहा है.