भोपाल : एम्स भोपाल के मुताबिक समय पर इलाज मिलने से मरीज की जान बच गई. मरीज को परेशानी होने पर परिजन उसे भोपाल एम्स के आपातकालीन विभाग में लेकर पहुंचे थे. यहां मरीज की सीटी स्कैन कराई गई. जांच रिपोर्ट से पता चला कि उसके मस्तिष्क की प्रमुख धमनी (मिडल सेरेब्रल आर्टरी) में रुकावट हुई है, इस कारण मस्तिष्क को पहले ही काफी नुकसान हो चुका था. ऐसे में मरीज को तुरंत इंटरवेंशनल रेडियोलाजी उपचार केंद्र में ट्रांसफर किया गया.
डॉक्टर्स की टीम को मिली सफलता
यहां डा. अमन कुमार ने प्रोफेसर डॉ. राजेश मलिक के साथ थ्रोम्बेक्टॉमी की प्रक्रिया से सफलतापूर्वक इलाज पूरा किया. डॉक्टर्स का कहना है कि के समय पर उपचार मिलने से इलाज की प्रक्रिया पूरी तरह सफल रही और अब मरीज के हाथ-पैर भी काम करने लगे हैं. मरीज का पोस्ट थ्रोम्बेक्टॉमी, डॉ. प्रियंका कश्यप, डॉ. अग्रता शर्मा और क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सौरभ सैहगल की विशेषज्ञ टीम द्वारा उपचार किया गया.
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स्ट्रोक आने के बाद 6 से 24 घंटे महत्वपूर्ण
एम्स भोपाल के डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह ने कहा, '' समय पर मरीजों को इलाज मिलने से उसके ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है. कई केस में मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी ने मरीजों को नया जीवन दिया है. एम्स इस तरह की जीवनरक्षक प्रक्रियाओं के माध्यम से इलाज करने के लिए प्रतिबद्ध है. मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी एक अत्याधुनिक प्रक्रिया है, जिसमें एक विशेष उपकरण से धमनी के अंदर बन गए खून के थक्के को हटाया जाता है. इस उपकरण को स्टेंट्रिवर कहा जाता है. इस उपकरण को रक्त वाहिकाओं के माध्यम से क्लाट के स्थान तक पहुंचाया जाता है. यह उपकरण क्लॉट हटाने के बाद मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को सामान्य करता है. अध्ययनों से पता चलता है कि स्ट्रोक के 6 से 24 घंटे के भीतर उपचार प्राप्त करने वाले मरीजों के ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. इसलिए मरीजों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना चाहिए, जिससे इलाज हो सके.''