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ब्रेन स्ट्रोक के मरीज को भोपाल एम्स में मिला नया जीवन, ब्रेन से ब्लड क्लॉट हटा ऐसे बचाई जान - Brain Stroke Operation AIIMS

एम्स भोपाल के डाक्टरों ने ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित एक मरीज की जान बचाने में सफलता पाई है. 35 वर्षीय मरीज के बाएं शरीर में अचानक लकवा मार गया था और उसके दिमाग की धमनी में खून के थक्के जम गए थे. डाक्टरों ने अत्यानिक एंडोवास्कुलर मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी के माध्यम से सफलतापूर्वक इस क्लाट को हटाया. डाक्टरों ने बताया कि स्ट्रोक के प्रारंभिक लक्षणों को पहचानना बेहद जरूरी है.

BRAIN STROKE OPERATION AIIMS
ब्रेन स्ट्रोक के मरीज को भोपाल एम्स में मिला जीवन दान (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 21, 2024, 12:11 PM IST

Updated : Sep 21, 2024, 2:12 PM IST

भोपाल : एम्स भोपाल के मुताबिक समय पर इलाज मिलने से मरीज की जान बच गई. मरीज को परेशानी होने पर परिजन उसे भोपाल एम्स के आपातकालीन विभाग में लेकर पहुंचे थे. यहां मरीज की सीटी स्कैन कराई गई. जांच रिपोर्ट से पता चला कि उसके मस्तिष्क की प्रमुख धमनी (मिडल सेरेब्रल आर्टरी) में रुकावट हुई है, इस कारण मस्तिष्क को पहले ही काफी नुकसान हो चुका था. ऐसे में मरीज को तुरंत इंटरवेंशनल रेडियोलाजी उपचार केंद्र में ट्रांसफर किया गया.

डॉक्टर्स की टीम को मिली सफलता

यहां डा. अमन कुमार ने प्रोफेसर डॉ. राजेश मलिक के साथ थ्रोम्बेक्टॉमी की प्रक्रिया से सफलतापूर्वक इलाज पूरा किया. डॉक्टर्स का कहना है कि के समय पर उपचार मिलने से इलाज की प्रक्रिया पूरी तरह सफल रही और अब मरीज के हाथ-पैर भी काम करने लगे हैं. मरीज का पोस्ट थ्रोम्बेक्टॉमी, डॉ. प्रियंका कश्यप, डॉ. अग्रता शर्मा और क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सौरभ सैहगल की विशेषज्ञ टीम द्वारा उपचार किया गया.

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स्ट्रोक आने के बाद 6 से 24 घंटे महत्वपूर्ण

एम्स भोपाल के डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह ने कहा, '' समय पर मरीजों को इलाज मिलने से उसके ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है. कई केस में मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी ने मरीजों को नया जीवन दिया है. एम्स इस तरह की जीवनरक्षक प्रक्रियाओं के माध्यम से इलाज करने के लिए प्रतिबद्ध है. मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी एक अत्याधुनिक प्रक्रिया है, जिसमें एक विशेष उपकरण से धमनी के अंदर बन गए खून के थक्के को हटाया जाता है. इस उपकरण को स्टेंट्रिवर कहा जाता है. इस उपकरण को रक्त वाहिकाओं के माध्यम से क्लाट के स्थान तक पहुंचाया जाता है. यह उपकरण क्लॉट हटाने के बाद मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को सामान्य करता है. अध्ययनों से पता चलता है कि स्ट्रोक के 6 से 24 घंटे के भीतर उपचार प्राप्त करने वाले मरीजों के ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. इसलिए मरीजों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना चाहिए, जिससे इलाज हो सके.''

भोपाल : एम्स भोपाल के मुताबिक समय पर इलाज मिलने से मरीज की जान बच गई. मरीज को परेशानी होने पर परिजन उसे भोपाल एम्स के आपातकालीन विभाग में लेकर पहुंचे थे. यहां मरीज की सीटी स्कैन कराई गई. जांच रिपोर्ट से पता चला कि उसके मस्तिष्क की प्रमुख धमनी (मिडल सेरेब्रल आर्टरी) में रुकावट हुई है, इस कारण मस्तिष्क को पहले ही काफी नुकसान हो चुका था. ऐसे में मरीज को तुरंत इंटरवेंशनल रेडियोलाजी उपचार केंद्र में ट्रांसफर किया गया.

डॉक्टर्स की टीम को मिली सफलता

यहां डा. अमन कुमार ने प्रोफेसर डॉ. राजेश मलिक के साथ थ्रोम्बेक्टॉमी की प्रक्रिया से सफलतापूर्वक इलाज पूरा किया. डॉक्टर्स का कहना है कि के समय पर उपचार मिलने से इलाज की प्रक्रिया पूरी तरह सफल रही और अब मरीज के हाथ-पैर भी काम करने लगे हैं. मरीज का पोस्ट थ्रोम्बेक्टॉमी, डॉ. प्रियंका कश्यप, डॉ. अग्रता शर्मा और क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सौरभ सैहगल की विशेषज्ञ टीम द्वारा उपचार किया गया.

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Last Updated : Sep 21, 2024, 2:12 PM IST
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