भोपाल (बृजेंद्र पटेरिया): कहा जाता है कि भारत कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था. इस तथ्य को 3000 साल पहले मध्यप्रदेश के महिदपुर से मिले सिक्के प्रमाणित करते हैं. देश के ऐसे ही अद्भुत सिक्कों का संग्रह महिदपुर स्थित अश्विनी रिसर्च सेंटर के चेयरमैन डॉ. आर.सी ठाकुर ने किया है. वे बताते हैं कि, ''भगवान राम और कृष्ण देश में पिछले करीब 2 हजार सालों से वंदनीय रहे हैं. पुरातन काल की मुद्राओं भगवान राम, कृष्ण और मां लक्ष्मी की तस्वीरें अंकित की जाती थीं.''
भारत के इतिहास, संस्कृति और विरासत की कहानी बयां करने वाली दुर्लभ मुद्राओं का अद्भुत संग्रह मध्यप्रदेश के महिदपुर स्थित अश्विनी रिसर्च सेंटर के चेयरमेन डॉ. आर.सी ठाकुर ने किया है. उनके संग्रह में करीब 3000 साल प्राचीन दुनिया की सबसे पुरानी वैदिक मुद्रा भी है. आइए आपको दिखाते हैं उनके संग्रह में मौजूद प्राचीन मुद्राओं को.
3000 साल पुरानी मुद्रा देखी है क्या
पुरातत्वविद् डॉ. आर.सी ठाकुर ने ऐसी दुर्लभ मुद्राओं को भोपाल के राज्य संग्रहालय में प्रदर्शित किया. ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि, ''भारत में पिछले कई हजार साल पहले से मुद्राओं का चयन शुरू हो गया था. देश की सबसे पुरानी मुद्रा स्वर्ण निष्क (वेदिक मुद्रा) है. यह मुद्रा का उल्लेख प्राचीतम ग्रंथ ऋग्विद में भी मिलता है. इसे 1200 बीसी यानी करीबन 3000 साल प्राचीन माना जाता है. इस मुद्रा को मध्यप्रदेश के महिदपुर से खुदाई में खोजा गया था, इससे पता चलता है कि मध्यप्रदेश का उज्जैन क्षेत्र कितना प्राचीन है.''
''इस मुद्रा का वजन करीबन 4.350 ग्राम होता था. विश्व की सबसे प्राचीन मुद्राएं आहत मुद्राएं कही जाती हैं, क्योंकि इन्हें आहत सिक्का और अंग्रेजी में पंचमार्क क्वाइन कहा जाता है, क्योंकि इन पर अलग-अलग चिन्ह ठप्पे से ठोके जाते थे. यह मुद्राएं कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर और अफगान तक पूरे देश में चलती थीं. यह मगध मौर्य शासन की मुद्राएं थीं.''
विरोध में गजनवी को भी झुकना पड़ा
वे बताते हैं, ''मुद्रा शास्त्र से पता चलता है कि भगवान शिव, राम, कृष्ण और मां लक्ष्मी देवी पिछले करीबन ढाई हजार सालों से वंदनीय रहे हैं. ऐसे कई सिक्के उनके संग्रह में मौजूद हैं. भगवान राम का अंकन आहत मुद्राओं पर है. इसमें कई जगह भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के वनगमन करते हुए अंकित की गई हैं. तीसरी से पांचवीं सदी के शासक रामगुप्त की मुद्राओं पर यह दिखाई देते हैं. यूनानी शासक ने भी अपनी मुद्राओं पर राम और कृष्ण बनाए हैं. यह 2100 साल पहले के हैं. उज्जैयनी की आहत मुद्राओं में सबसे पहले भगवान शिव को दिखाया गया. कई मुद्राओं पर नंदी की भी तस्वीर अंकित की जाती थी.''
1800 साल पहले भरी जाती थी मांग
डॉ. ठाकुर बताते हैं कि, ''चंद्रगुप्त प्रथम (319 ईस्वी) में निकाले से सिक्कों से पता चलता है कि उस समय भी महिलाएं अपनी मांग भरती थीं. उस दौर में निकाले गए सिक्कों में राजा सिक्के से रानी की मांग भरते दिखाई देते हैं. गुप्तकाल को स्वर्णकाल कहा जाता है, क्योंकि उस दौर में सोने के सिक्कों का चलन था. उस दौर के हजारों सोने के मिले हैं. समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ के बाद सोने का सिक्का निकाला था, जिसमें घोड़ा बनाया गया था. इसे देश भर में चलाया गया, ताकि पता चल सके कि अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण हो गया है.''
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जहांगीर ने 12 राशियों पर निकाले थे सिक्के
देश में मुस्लिम शासक भले ही आए, लेकिन उन्हें भारतीय संस्कृति के हिसाब से खुद को ढालना पड़ा. डॉ. ठाकुर बताते हैं कि, ''मुद्रा शास्त्र से पता चलता है कि मोहम्मद गजनबी ने सबसे पहले ऊर्दू में सिक्का निकाला था, लेकिन उसे व्यापार के लिए लोगों ने लेने से इंकार कर दिया. विरोध के बाद गजनवी को हिंदू प्रतीकों वाला सिक्का निकालना पड़ा था. चौथे मुगल शासक जहांगीर ने 12 राशियों पर आधारित सोने के सिक्के निकाले थे. इसमें एक तरफ जहांगीर की फोटो थी, वहीं दूसरी तरफ सूर्य के साथ सिंह का चित्रण था.''
700 साल पहले लिखा गया रुपया, फिर अंग्रेजों ने अपनाया
यह तो सब जानते हैं कि देश की मुद्रा रुपया है, लेकिन करीबन 1540 से 1545 के दौरान शेरशाह सूरी ने अपनी मुद्रा पर रुपया लिखा था. डॉ. आर.सी. ठाकुर बताते हैं कि, ''शेरशाह सूरी के शासन काल में सिक्कों पर रुपया शब्द लिखा गया. इन सिक्कों का वजन 10.5 ग्राम था. इसके बाद अंग्रेजों ने इसे रुपया के रूप में शुरू किया. इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द रूप्यकम से हुई है इसका मतलब होता था चांदी का सिक्का.''