भोपाल। लगातार दो फेज के मतदान में ठंडी वोटिंग की वजह क्या चुनाव का पारा नहीं चढ़ पाना है. एमपी जैसे राज्य जहां पर बीजेपी ने हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का टारगेट रखा था. दूसरे चरण की वोटिंग में पार्टी उस तक नहीं पहुंच पाई. वैसे ट्रेंड ये है कि भारी वोटिंग बदलाव का वोट होती है....फिर क्या वजह है कि कम वोटिंग भी बीजेपी को डरा रही है. कम वोटिंग को लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कड़े निर्देशों के बाद वोटिंग के एक दिन बाद ही पार्टी के प्रबंधन समिति की बैठक बुला ली गई. बीजेपी की सामने चुनौती है तीसरा चरण, जिसमें ग्वालियर चंबल के साथ मध्य की 9 सीटों पर मतदान होना है.
तीसरे फेज में 9 सीटों पर मतदान
एमपी में तीसरे फेज में ग्वालियर चंबल की चार जिसमें गुना, मुरैना, भिंड और ग्वालियर सीटे हैं. इसके अलावा मध्य की विदिशा, भोपाल, राजगढ़ और बुंदेलखंड की सागर लोकसभा सीट पर मतदान होना है. ये सभी प्रमुख सीटें हैं और इनमें से ज्यादातर हाईप्रोफाइल भी. गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव मैदान में है तो राजगढ़ से कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह मैदान में उतरे हुए हैं. भिड, मुरैना, ग्वालियर में मुकाबले दिलचस्प तो विदिशा में चार बार के मुख्यमंत्री रहे पूर्व सीएम शिवराज सिहं चौहान मैदान में उतरे हुए हैं. ये आठ सीटें हर लिहाज से बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल हैं.
तीसरे फेज में वोटिंग बढ़ाने बीजेपी का एक्शन प्लान
बीते दो चरणों के वोटिंग ने बीजेपी को तनाव में ला दिया. यही वजह है कि वोटिंग के दूसरे ही दिन से पार्टी अब रणनीति बनाने में जुट गई है कि इन दो चरणों में हुए नुकसान की भरपाई कैसे की जाए. भोपाल में आज लोकसभा चुनाव प्रबंध समिति की बैठक हुई बैठक को लोकसभा चुनाव प्रभारी डॉ महेन्द्र सिंह और सह प्रभारी सतीश उपाध्याय ने ये बैठक ली. माना जा रहा है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के बाद मतदान का प्रतिशत बढ़ाने बीजेपी अब एमपी में नई कार्ययोजना तैयार कर रही है. पार्टी के मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने बताया मतदान के बाद उसकी समीक्षा के साथ आगामी कार्य योजना के लिए पार्टी की ये नियमित बैठके हैं.
ये घटता वोटिंग परसेंटेज किसके हक में जाएगा
पिछला ट्रेंड ये कहता है कि अगर वोटिंग बंपर हो तो वो मौजूदा सरकार के खिलाफ जाती है और अगर घटता हुआ मतदान हुआ हो तो वो मौजूदा सरकार के पक्ष में जाता है. हालांकि अब ये ट्रेंड भी बदल गया है. सवाल ये है कि इस बार ये गिरता हुआ वोटिंग प्रतिशत किसके हिस्से जाएगा. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं कम हुए मतदान से ये आकंलन नहीं किया जा सकता है कि ये किस्से हिस्से में जाएगा. क्योंकि अगर पिछले लोकसभा चुनाव का आंकलन देखें तो मतदान घटने पर भी सरकार बदली और मतदान बढ़ने पर भी सरकारें रिपीट हुई हैं. फिलहाल ये नहीं कहा जा सकता कि वोटिंग का ये ट्रेंड किसे फायदा पहुंचाने वाला है. लेकिन एक बात स्पष्ट हो रही है कि मतदाता इस बार उदासीन है. वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं एमपी में पहले चरण में कांग्रेस ने कोई उत्साह नहीं दिखाया, दूसरे चरण में भाजपा ने भी रुचि नहीं दिखाई, चुनाव में जोश नहीं आया. कांग्रेस का कोई बड़ा नेता ऐसा नहीं आया जो मोदी सरकार और प्रदेश सरकार पर सवाल जवाब करे. जब ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा ने शून्य जैसी स्थिति में चुनाव लड़ा.
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दूसरे चरण में कहां वोटिंग बंपर...कहां वोटों के लाले
एमपी में दूसरे चरण में करीब 58 फीसदी वोटिंग हुई. 2019 में ये आंकड़ा 67 फीसदी के आस पास था. इस तरह से नौ फीसदी का अंतर बताया जा रहा है. पहले चरण की वोटिंग में भी सात फीसदी की गिरावट आई बीते चुनाव के मुकाबले. सबसे ज्यादा वोटिंग होशंगाबाद में हुई है, यहां 67 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है. हालांकि 2019 के मुकाबले फिर भी कम है. सतना में ये आंकड़ा 61 फीसदी पर आकर रुक गया. जबकि खजुराहो में वीडी शर्मा जीत का अंतर बढ़ाने जुटे रहे, लेकिन केवल 56 फीसदी वोटिंग हुई. टीकमगढ में भी आंकड़ा 59 फीसदी तक पहुंचा और रीवा में तो सबसे कम केवल 48 फीसदी ही मतदान हुआ.