पटना: आज हम 21वीं सदी के दौर में हैं. यह युग तकनीक, शोध और आविष्कार का है. लोग चांद और ग्रहों तक पहुंच रहे हैं. लेकिन काला जादू, भूत-प्रेत, आत्मा और पुनर्जन्म को मानने वाले लोग आज भी हैं. बिहार के बाढ़ में उत्तरवाहिनी उमानाथ घाट पर माघी पूर्णिमा के दिन स्नान के लिए जहां लाखों श्रद्धालु गंगा घाट पर श्रद्धा की डुबकी लगा रहे थे, वहीं, घाट से चंद कदम दूर आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल चल रहा था.
बाढ़ में भूतों का मेला: दरअसल, बाढ़ के उत्तरायण गंगा होने के कारण भूत खेली के लिए बिहार के कोने-कोने से लोग जुटते हैं. भगत हाथों में डंडा और झाड़ू लेकर महिला के शरीर से भूत झाड़ने का दिखावा करते हैं. जैसे-जैसे ढोल पर थाप तेज होती है, महिलाएं और तेजी से अपना सर धुनने लगती हैं. वे हाथों में तलवार या डंडा लेकर झूम-झूम कर नाचने और गाने लगती हैं.
महिलाओं की डरावनी नृत्य देखकर होता है आश्चर्य: घाट पर भगत हाथों में डंडा और झाड़ू लेकर महिला के शरीर से भूत झाड़ने का दिखावा करते हैं. महिलाओं के इस रूप और उनका डरावना चेहरा देखकर लोगों की भीड़ डर से पीछे हट जाती है. कुछ देर तक सिर हिला और नाचने के बाद महिला थककर भीड़ में बैठ जाती है. फिर कुछ देर बाद वही खेल शुरू होता है. परिवार के कुछ लोग उन्हें घेर कर खड़े होते हैं, ताकि वे अपने शरीर को कहीं चोट न पहुंचा लें.
देवी को प्रसन्न करने के लिए गातीं हैं गीत: भूत झाड़ने वाले भगत इस खेल को शरीर पर देवी या देवता का आना बताते हैं. इस दौरान माता को खुश करने के लिए महिलाएं लोकगीत गाती रहती हैं. फिर शरीर से देवी माता को बाहर निकालने के लिए गंगा में डुबकी लगाई जाती है. वहीं नालंदा, पटना, गया, नवादा से आने वाले लोगों में एक आस्था यह भी है कि जब मन्नतें पूरी होती है तो माघी पूर्णिमा के ही अवसर पर लोग बकरी का बच्चे को गंगा नदी में प्रवाहित कर देते हैं.
"यहां सदियों से यहां पर भूत-प्रेत से पीड़ित लोग ठीक होने की उम्मीद में पहुंचते हैं और ठीक हो जाते हैं. भक्त लोग झूम झूमकर उमापति से प्रार्थना करते हैं. यहां बिहार के विभिन्न जिलों से आते है. यहां शादी, मुंडन भी होता. यहां आने से हर मनोकामना पूरी होती है." -पंडित, उमानाथ घाट, बाढ़
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