जयपुर. भजनलाल सरकार के एक आदेश ने प्रदेश के चार लाख से अधिक सरकारी कर्मचारियों को डरा दिया है. बीते 22 जनवरी को कृषि विभाग में कृषि सहायक पद पर 25 कार्मिकों की नियुक्ति सेवा शर्तों में एनपीएस देने का उल्लेख किया गया. हालांकि, मंगलवार देर रात संशोधित आदेश में एनपीएस की शर्त को हटा दिया गया, लेकिन इसके बाद अब कर्मचारी सरकार से ओपीएस पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग कर रहे हैं.
दरअसल, 19 मई, 2022 को पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने सभी कार्मिकों को पुरानी पेंशन देने के नियम को लागू किया था. पुरानी पेंशन के दायरे में आए चार लाख से अधिक कार्मिकों को प्रदेश में नई सरकार के गठन के बाद उनके जहन में सिर्फ एक ही सवाल है कि पुरानी पेंशन लागू रहेगी या नहीं. इस संबंध में शिक्षक संघ शेखावत के प्रदेश अध्यक्ष महावीर सिहाग ने बताया कि राज्य सरकार ने 22 जनवरी को एक नियुक्ति आदेश निकाला, जिसमें नए नियुक्त कर्मचारियों को ओपीएस की बजाय एनपीएस देने का ऐलान किया.
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हालांकि, इसका कर्मचारी संगठनों ने विरोध किया. ऐसे में इस विरोध को देखते हुए सरकार ने आधी रात को ही एनपीएस दिए जाने वाले बिंदु को हटा दिया था, लेकिन ये कहीं भी मेंशन नहीं किया गया कि ओपीएस दी जाएगी. ऐसे में सरकार की मंशा पर आशंका जताते हुए उन्होंने मांग की, कि सरकार स्पष्ट करें कि जो नए कर्मचारी लगे हैं, उन्हें ओपीएस मिलेगी या नहीं. साथ ही चेतावनी दी कि यदि ओपीएस काटने की कोई भी कोशिश हुई तो राजस्थान का कर्मचारी और शिक्षक इसे बर्दाश्त नहीं करेगा और इसके खिलाफ सड़कों पर उतरेगा.
सरकार स्पष्ट करे अपना रुख : इसको लेकर अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ ने मुख्यमंत्री से पत्र लिखकर मांग की है कि ओपीएस के पक्ष में सरकार अपना रुख स्पष्ट करे. संगठन के प्रदेश महामंत्री विपिन प्रकाश शर्मा ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम लागू की थी. इसके दायरे में प्रदेश के चार लाख कर्मचारी आ गए थे. इन कर्मचारियों में अब यह भय व्याप्त है कि नई सरकार का ओपीएस को लेकर क्या रुख रहेगा. उन्होंने सरकार से मांग की, कि वो स्पष्टीकरण जारी करें.
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सड़क पर उतरने की तैयारी : वहीं, बीते दिनों प्रदेश में हुए शैक्षिक सम्मेलनों में भी यही मुद्दा ज्वलंत रहा. नेशनल जॉइंट पेंशन एक्शन कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रनजीत मीणा ने बताया कि राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मेलनों में भी सभी शिक्षक संगठनों की ओर से ओपीएस और एनपीएस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की गई. हालांकि, पूर्व में भाजपा नेताओं ने ये दावा किया था कि वो एनपीएस-ओपीएस विवाद में नहीं पड़ना चाहती, लेकिन हाल ही में हुई नियुक्तियों में एनपीएस दिए जाने का जिक्र किया गया. इस तुगलकी फरमान का विरोध किया गया तो सरकार ने सिर्फ एनपीएस वाली शर्त को हटा दिया, लेकिन यदि भविष्य में सरकार अपना रुख स्पष्ट नहीं करती है तो कर्मचारी सड़कों पर उतरेंगे.