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रीढ़ की हड्डी को लेकर रहें सतर्क, चोट लगने के बाद दोबारा नहीं बनती इसकी कोशिकाएं: डॉ. छाबड़ा - National Injury Prevention Week - NATIONAL INJURY PREVENTION WEEK

National Injury Prevention Week: राष्ट्रीय चोट रोकथाम सप्ताह का समापन हो गया है. इस मौके पर पर नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऑडिटोरियम में एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. हरविंदर सिंह छाबड़ा ने स्पाइन इंजूरी को लेकर कई अहम जानकारी दी. आइए जानते हैं.

रीढ़ की हड्डी को लेकर रहें सतर्क
रीढ़ की हड्डी को लेकर रहें सतर्क (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 8, 2024, 7:34 PM IST

नई दिल्ली: राष्ट्रीय चोट रोकथाम सप्ताह की समाप्ति के अवसर पर नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऑडिटोरियम में आयोजित एक जागरूकता कार्यक्रम में स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी के अध्यक्ष व स्पाइन वेलनेस एंड केयर फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. हरविंदर सिंह छाबड़ा ने इस पर कई अहम जानकारियां दी. उनका कहना था कि एक समय ऐसा माना जाता था कि स्पाइन इंजुरी का इलाज संभव ही नहीं है, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्पाइन की इंजुरी को लेकर जो शोध हुए उससे इस प्रकार की घातक चोटों का इलाज संभव हो पाया.

डॉ. छावड़ा ने बताया कि शरीर के दूसरे हिस्सों की कोशिकाओं की तरह स्पाइनल कॉर्ड की कोशिकाएं नष्ट होने के बाद दोबारा नहीं बनती हैं. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में सीट बेल्ट न पहनने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में 16,397 लोगों की जान चली गई, जिनमें 8, 438 ड्राइवर और 7,959 यात्री शामिल हैं. यह आंकड़ा चोट की रोकथाम और सुरक्षा जागरूकता में निरंतर प्रयासों की महत्वपूर्ण आवश्यकता को दर्शाता है.

उन्होंने कहा कि इस पहल का उद्देश्य स्पाइनल इंजुरी के बारे में लोगों को जागरूक करना है. अधिकतर लोगों को यह पता ही नहीं है. विडंबना यह है कि समाज में ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य पेशेवरों और नीति निर्माताओं में भी इसको लेकर जागरूकता का अभाव है. इसीलिए समाज में व्यापक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए इस प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम आवश्यक हैं.

डॉ. छावड़ा ने बताया कि उन्होंने स्पाइन इंजुरी से पीड़ित लोगों से जाना कि सामान्य जीवन जीने में उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हो रही है. उन्होंने बताया कि गंभीर स्पाइन चोटों के कारण जो व्हील चेयर पर आ गए हैं, उनमें जीवन जीने के प्रति इतना जोश और उत्साह है कि उन्होंने स्पोर्ट्स और सांस्कृतिक कार्यक्रम में शानदार प्रदर्शन कर लोगों को प्रभावित किया.

स्पाइन कॉर्ड इसलिए होते हैं घातक

शरीर के दूसरे हिस्से में कहीं जख्म होता है तो वह कुछ समय बाद भर जाता है. लेकिन, ब्रेन सेल्स और स्पाइन सेल्स ऐसे होते हैं जो एकबार नष्ट होने पर दोबारा नहीं बनते हैं. अभी तक चिकित्सा विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की है कि स्पाइनल इंजुरी को पूरी तरह से ठीक कर सके. इसे केवल मैनेज किया जा सकता है. फिजिकल ही नहीं बल्कि सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सैक्सूअल रिहैबलिटेशन की भी जरूरत होती है. ये आसानी से नहीं हो पाता है. अधिकतर लोगों की इन सारी सुविधाओं तक पहुंच ही नहीं है. ऐसे लोगों को जागरूक करना जरूरी है.

रीढ़ की हड्डी की चोट के बारे में जागरूकता जरूरी

राष्ट्रीय चोट रोकथाम सप्ताह के दौरान स्पाइन केयर (रीढ़ की हड्डी की देखभाल) के एक्सपर्ट्स ने देश भर की 14 राष्ट्रीय रीढ़ की हड्डी की देखभाल करने वाली समितियों के साथ मिलकर विभिन्न गतिविधियों में भाग लिया. जिसमें आउटडोर स्पोर्ट्स, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सेमिनार, वेबिनार और पैनल चर्चाएं शामिल थीं, ताकि रीढ़ की हड्डी की चोटों सहित अन्य चोटों से प्रभावित व्यक्तियों के लिए जागरूकता और मदद को बढ़ावा दिया जा सके. उनकी रोकथाम पर ध्यान केंद्रित किया जा सके.

वहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाले स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने बताया कि रीढ़ की हड्डी की चोटों से पीड़ित अधिकांश लोग युवा हैं. इन युवा लोगों के सामने पूरा जीवन बचा है. इनमें से अधिकांश चोटें पूरी तरह से टाली जा सकने वाली दुर्घटनाओं के कारण होती हैं.


ये भी पढ़ें : दिल्ली के इस अस्पताल में TAVI प्रक्रिया से 72 वर्षीय रोगी का बिना ओपन हार्ट सर्जरी के सफल इलाज

ये भी पढ़ें : शोध से अधिक रोगी को समय देना पड़ता है, फिर भी दिल्ली एम्स नोबेल पुरस्कार जीतेगा: AIIMS डायरेक्टर

नई दिल्ली: राष्ट्रीय चोट रोकथाम सप्ताह की समाप्ति के अवसर पर नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऑडिटोरियम में आयोजित एक जागरूकता कार्यक्रम में स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी के अध्यक्ष व स्पाइन वेलनेस एंड केयर फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. हरविंदर सिंह छाबड़ा ने इस पर कई अहम जानकारियां दी. उनका कहना था कि एक समय ऐसा माना जाता था कि स्पाइन इंजुरी का इलाज संभव ही नहीं है, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्पाइन की इंजुरी को लेकर जो शोध हुए उससे इस प्रकार की घातक चोटों का इलाज संभव हो पाया.

डॉ. छावड़ा ने बताया कि शरीर के दूसरे हिस्सों की कोशिकाओं की तरह स्पाइनल कॉर्ड की कोशिकाएं नष्ट होने के बाद दोबारा नहीं बनती हैं. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में सीट बेल्ट न पहनने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में 16,397 लोगों की जान चली गई, जिनमें 8, 438 ड्राइवर और 7,959 यात्री शामिल हैं. यह आंकड़ा चोट की रोकथाम और सुरक्षा जागरूकता में निरंतर प्रयासों की महत्वपूर्ण आवश्यकता को दर्शाता है.

उन्होंने कहा कि इस पहल का उद्देश्य स्पाइनल इंजुरी के बारे में लोगों को जागरूक करना है. अधिकतर लोगों को यह पता ही नहीं है. विडंबना यह है कि समाज में ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य पेशेवरों और नीति निर्माताओं में भी इसको लेकर जागरूकता का अभाव है. इसीलिए समाज में व्यापक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए इस प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम आवश्यक हैं.

डॉ. छावड़ा ने बताया कि उन्होंने स्पाइन इंजुरी से पीड़ित लोगों से जाना कि सामान्य जीवन जीने में उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हो रही है. उन्होंने बताया कि गंभीर स्पाइन चोटों के कारण जो व्हील चेयर पर आ गए हैं, उनमें जीवन जीने के प्रति इतना जोश और उत्साह है कि उन्होंने स्पोर्ट्स और सांस्कृतिक कार्यक्रम में शानदार प्रदर्शन कर लोगों को प्रभावित किया.

स्पाइन कॉर्ड इसलिए होते हैं घातक

शरीर के दूसरे हिस्से में कहीं जख्म होता है तो वह कुछ समय बाद भर जाता है. लेकिन, ब्रेन सेल्स और स्पाइन सेल्स ऐसे होते हैं जो एकबार नष्ट होने पर दोबारा नहीं बनते हैं. अभी तक चिकित्सा विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की है कि स्पाइनल इंजुरी को पूरी तरह से ठीक कर सके. इसे केवल मैनेज किया जा सकता है. फिजिकल ही नहीं बल्कि सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सैक्सूअल रिहैबलिटेशन की भी जरूरत होती है. ये आसानी से नहीं हो पाता है. अधिकतर लोगों की इन सारी सुविधाओं तक पहुंच ही नहीं है. ऐसे लोगों को जागरूक करना जरूरी है.

रीढ़ की हड्डी की चोट के बारे में जागरूकता जरूरी

राष्ट्रीय चोट रोकथाम सप्ताह के दौरान स्पाइन केयर (रीढ़ की हड्डी की देखभाल) के एक्सपर्ट्स ने देश भर की 14 राष्ट्रीय रीढ़ की हड्डी की देखभाल करने वाली समितियों के साथ मिलकर विभिन्न गतिविधियों में भाग लिया. जिसमें आउटडोर स्पोर्ट्स, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सेमिनार, वेबिनार और पैनल चर्चाएं शामिल थीं, ताकि रीढ़ की हड्डी की चोटों सहित अन्य चोटों से प्रभावित व्यक्तियों के लिए जागरूकता और मदद को बढ़ावा दिया जा सके. उनकी रोकथाम पर ध्यान केंद्रित किया जा सके.

वहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाले स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने बताया कि रीढ़ की हड्डी की चोटों से पीड़ित अधिकांश लोग युवा हैं. इन युवा लोगों के सामने पूरा जीवन बचा है. इनमें से अधिकांश चोटें पूरी तरह से टाली जा सकने वाली दुर्घटनाओं के कारण होती हैं.


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