रायपुर: रायपुर की हाई प्रोफाइल दक्षिण विधानसभा सीट पर जनप्रतिनिधियों की अदला बदली को लेकर सियासत गरमा गई है. इसकी वजह यह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने तत्कालीन रायपुर सांसद सुनील सोनी का टिकट काट दिया था, उनकी जगह पार्टी ने भाजपा के काद्यावर नेता बृजमोहन अग्रवाल को टिकट दिया. उस समय बृजमोहन अग्रवाल रायपुर दक्षिण से विधायक थे और उन्हें साय कैबिनेट में जगह दी गई. यह चुनाव अग्रवाल जीत गए और वह सांसद बन गए. इसके बाद उनकी रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट खाली हो गई. जहां अब उपचुनाव होने वाले हैं.
जनप्रतिनिधियों की अदला बदली सियासत तेज: चौंकाने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तत्कालीन सांसद का टिकट काटा गया था, उसी सुनील सोनी को रायपुर दक्षिण से विधानसभा उपचुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है. बीजेपी की ओर से उम्मीदवार की अदला बदली का निर्णय काफी चौंकाने वाला रहा. यही कारण है इस बार का रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव का परिणाम भी कहीं चौंकाने वाला न साबित हो इसको लेकर कयास लगाए जाने शुरु हो चुके हैं.
''बीजेपी की वजह से विकास के काम हुए बाधित'': जनप्रतिनिधियों की अदला बदली पर कांग्रेस ने बीजेपी को आड़े हाथों लिया है. कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन सांसद सुनील सोनी का भाजपा ने टिकट काट दिया. उनकी जगह तत्कालीन विधायक एवं मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को टिकट दिया जो अब सांसद बन गए. ऐसे में सवाल यही उठ रहा है कि आखिर क्या वजह थी कि सुनील सोनी को टिकट नहीं दिया गया. और अब पूर्व सांसद को विधानसभा उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया गया है. धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि यदि बृजमोहन से इस्तीफा नहीं दिलाते तो यहां उपचुनाव नहीं होता, जनता पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता.आचार संहिता के चलते काम काज भी ठप है.
कांग्रेस की दलील पर बीजेपी की सफाई: भाजपा मीडिया विभाग के प्रदेश प्रमुख अमित चिमनानी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी का उद्देश्य जनता की सेवा है. बीजेपी हमेशा जरुरत के हिसाब से समय समय पर जनप्रतिनिधियों की जवाबदारी तय करती रहती है. उसी नियम के तहत ये फैसला लिया गया है. सुनील सोनी भारतीय जनता पार्टी के रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट से प्रत्याशी हैं. वह छत्तीसगढ़ के लोगों की सेवा करेंगे. दायित्व बस बदला है काम तो सेवा का सर्वोपरी है.
क्या कहते हैं राजनीति के जानकार: वरिष्ठ पत्रकार राम अवतार तिवारी का कहना है कि लोकसभा चुनाव में अलग समीकरण थे विधानसभा चुनाव में अलग समीकरण होते हैं. दोनों के समीकरण को देखकर पार्टी ने फैसला लिया होगा. सवाल अब लोगों के बीच उठ रहा है कि यदि सुनील सोनी को जनप्रतिनिधि बनाए रखना था तो सांसद का टिकट उन्हें क्यों नहीं दिया गया. बृजमोहन अग्रवाल को टिकट दिया गया तब वो विधायक और कैबिनेट में मंत्री भी रहे. उनको मंत्री पद से इस्ताफा दिलाकर विधायकी छुड़वाकर लोकसभा का चुनाव लड़वाया गया. इस तरह से जनता पर चुनाव का अतिरिक्त बोझ पड़ता है.