बड़वानी: जिले के ग्राम बोधवाड़ा में मां नर्मदा के तट पर स्थित मंदिर में प्राचीन देवपथ शिवलिंग स्थापित है. ये मंदिर भक्तों की विशेष आस्था का केंद्र हैं. यहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. बताया जाता है कि इस मंदिर में स्वयं देवताओं ने मां नर्मदा परिक्रमा के दौरान शिवलिंग स्थापित किया था. महाशिवरात्रि के अवसर पर देवपथ मंदिर सहित अन्य शिव मंदिरों में भक्त अपार उत्साह के साथ दर्शन करने पहुंच रहे हैं.
नर्मदा पुराण में मिलता है देवपथ मंदिर का उल्लेख
शिव भक्त संदीप मारू कहते हैं कि "जब देवताओं ने मां नर्मदा की परिक्रमा शुरू किया तो यहां शिवलिंग स्थापित किया था. जिसके बाद यही पर आकर यात्रा पूरी भी की थी. इस मंदिर का उल्लेख नर्मदा पुराण में मिलता है." पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर को 12 वीं शताब्दी में बनाया गया था. बताया जाता है कि मंदिर में स्थित अष्टकोण शिवलिंग 12 फीट ऊंचा है. जिसका 10 फीट हिस्सा भूमिगत है, जबकि 2 फीट दिखायी देता है.
मान्यता है कि सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी
देवपथ महादेव मंदिर का वास्तु अद्वितीय और अनूठा है. इस मंदिर का निर्माण श्री यंत्र धरातल पर है. वहीं, शिवलिंगी के ऊपर रुद्र यंत्र बना हुआ है. ऐसा माना जाता है कि यहां श्री यंत्र अनुष्ठान करने और गन्ने के रस से अभिषेक करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. इसके साथ ही बताया गया कि महाशिवरात्रि पर विधि-विधान से एक गड्ढे में आटे को सूत में लपेटकर कपड़े से ढक कर कंडे की आग में रोटी बनाया जाता है, जिसे सुबह लोगों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.

- 76 फीट ऊंची है महादेव की मूर्ति, दक्षिण भारत के कलाकार ने बनाई थी प्रतिमा
- महाशिवरात्रि पर महाकाल मंदिर के खुले पट, 44 घंटे दर्शन देंगे बाबा, बिना परमिशन वालों को भी एंट्री
ग्रामीणों ने मंदिर के पुनर्वास को रोका
सरदार सरोवर परियोजना बांध बनने के कारण यह मंदिर वर्तमान में डूब क्षेत्र घोषित किया गया है. बैक वाटर के कारण मंदिर के चारों ओर पानी भर जाता है. जिससे मंदिर टापू बन जाता है. कई बार प्रशासनिक अधिकारियों ने मंदिर को पुनर्वास में स्थापित करने के प्रयास किए हैं, लेकिन ग्रामीणों ने मंदिर का पुनर्वास नहीं करने दिया.
ग्रामीणों का मानना है कि पुनर्वास के बाद मंदिर का महत्व समाप्त हो जाएगा. इस मंदिर को देवताओं ने स्थापित किया है, इसलिए इसका पुनर्वास नहीं किया जा सकता. बताया जाता है कि इस मंदिर में कई संतों ने सिद्धियां भी प्राप्त की है.