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छह फीट लंबी लौकी भरेगी 40 लोगों का पेट, 20 किलो है वजन, एक बेल में होती है 1000 लौकी

बरेली के किसान ने बिना रासायनिक खाद का इस्तेमाल किए उगाई खास किस्म की लौकी.

जो भर सकती है 40 लोगों का पेट.
बरेली के किसान ने उगाई 6 फीट लंबी लौकी (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 19 hours ago

बरेली : आम तौर पर बतौर सब्जी खाई जाने वाली लौकी 2 से 3 तीन किलो वजन की ही होती है, लेकिन बरेली में एक अनोखी लौकी की प्रजाति लोगों का ध्यान खींच रही है. यह लौकी एक साथ 40 लोगों का पेट भर सकती है. मीरगंज के एक किसान ने इसे अपने खेत में उगाया है. यह लौकी 6 फीट लंबी है. इसका वजन 20 किलो से ज्यादा है. हैरत की बात ये है कि ये एक बेल में ही सीजन में कम से कम 1000 लौकियां फलती हैं.

मीरगंज के पास करनपुर गांव के किसान जबर पाल सिंह आधुनिक बायो-तकनीक और रासायनिक खाद की सहायता के बिना पारंपरिक तरीकों से अपने बगीचे में करीब साढ़े 6 फीट लंबी लौकी उगाने में कामयाबी हासिल की है. जबर पाल सिंह के खेत में करीब साढ़े 5 फीट औसत लंबाई की लौकी वाली एक बेल में एक फसल के दौरान करीब 1000 लौकियां लगती हैं.

बागवानी से ही आजीविका चलाने वाले जबर पाल सिंह खेत में बड़े आकार के कद्दू-लौकी ही नहीं हरी पत्ती की पारंपरिक सब्जियों जैसे कस्तूरी मैथी, पालक व बथुआ, बैगन, टमाटर भी असामान्य (गोल लौकी 3 फीट) आकार में उग रहीं हैं.

जबर पाल सिंह इस कामयाबी के लिए पौधों को बच्चों की तरह परवरिश और देशी पारंपरिक बागवानी के तौर-तरीकों को श्रेय देते हैं. जबरपाल सिंह का मानना है कि रासायनिक खाद से तत्काल लाभ तो लिया जा सकता है, लेकिन लंबे समय में आखिरकार प्राकृतिक तौर-तरीके ही लाभदायक साबित होते हैं.

राजेश कुमार एडीओ कृषि विभाग विशेषज्ञ का कहना है, देशी खाद और पारंपरिक तौर-तरीकों से खेती करना एक सफल और टिकाऊ विकल्प है. देशी खाद, गोबर खाद, वर्मी-कंपोस्ट जैसी जैविक खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं. अच्छे गुणवत्ता वाले देशी बीजों का चयन करना आवश्यक है.

फसलों को जरूरत के अनुसार पानी देना, जलभराव से बचाना. इस प्रकार की खेती से न केवल उपज बढ़ती है, बल्कि उत्पादन की गुणवत्ता भी बेहतर होती है. इसके अलावा, यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कृषि को लाभकारी बनाती है. अन्य किसान भी इन तकनीकों को अपनाकर अपनी उपज और लाभ में वृद्धि कर सकते हैं.

यह भी पढ़े : क्रीम रोल में निकला लोहे का रॉड; खाते समय 7 साल की बच्ची के मुंह से आने लगा खून

बरेली : आम तौर पर बतौर सब्जी खाई जाने वाली लौकी 2 से 3 तीन किलो वजन की ही होती है, लेकिन बरेली में एक अनोखी लौकी की प्रजाति लोगों का ध्यान खींच रही है. यह लौकी एक साथ 40 लोगों का पेट भर सकती है. मीरगंज के एक किसान ने इसे अपने खेत में उगाया है. यह लौकी 6 फीट लंबी है. इसका वजन 20 किलो से ज्यादा है. हैरत की बात ये है कि ये एक बेल में ही सीजन में कम से कम 1000 लौकियां फलती हैं.

मीरगंज के पास करनपुर गांव के किसान जबर पाल सिंह आधुनिक बायो-तकनीक और रासायनिक खाद की सहायता के बिना पारंपरिक तरीकों से अपने बगीचे में करीब साढ़े 6 फीट लंबी लौकी उगाने में कामयाबी हासिल की है. जबर पाल सिंह के खेत में करीब साढ़े 5 फीट औसत लंबाई की लौकी वाली एक बेल में एक फसल के दौरान करीब 1000 लौकियां लगती हैं.

बागवानी से ही आजीविका चलाने वाले जबर पाल सिंह खेत में बड़े आकार के कद्दू-लौकी ही नहीं हरी पत्ती की पारंपरिक सब्जियों जैसे कस्तूरी मैथी, पालक व बथुआ, बैगन, टमाटर भी असामान्य (गोल लौकी 3 फीट) आकार में उग रहीं हैं.

जबर पाल सिंह इस कामयाबी के लिए पौधों को बच्चों की तरह परवरिश और देशी पारंपरिक बागवानी के तौर-तरीकों को श्रेय देते हैं. जबरपाल सिंह का मानना है कि रासायनिक खाद से तत्काल लाभ तो लिया जा सकता है, लेकिन लंबे समय में आखिरकार प्राकृतिक तौर-तरीके ही लाभदायक साबित होते हैं.

राजेश कुमार एडीओ कृषि विभाग विशेषज्ञ का कहना है, देशी खाद और पारंपरिक तौर-तरीकों से खेती करना एक सफल और टिकाऊ विकल्प है. देशी खाद, गोबर खाद, वर्मी-कंपोस्ट जैसी जैविक खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं. अच्छे गुणवत्ता वाले देशी बीजों का चयन करना आवश्यक है.

फसलों को जरूरत के अनुसार पानी देना, जलभराव से बचाना. इस प्रकार की खेती से न केवल उपज बढ़ती है, बल्कि उत्पादन की गुणवत्ता भी बेहतर होती है. इसके अलावा, यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कृषि को लाभकारी बनाती है. अन्य किसान भी इन तकनीकों को अपनाकर अपनी उपज और लाभ में वृद्धि कर सकते हैं.

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