ETV Bharat / state

एफआईआर डाउनलोड करने पर प्रतिबंध को हाईकोर्ट में चुनौती, सरकार को नोटिस जारी कर मांगा जवाब - CHALLENGE TO BAN ON FIR DOWNLOAD

राजस्थान पुलिस की वेबसाइट और ऐप पर एफआईआर डाउनलोड करने पर प्रतिबंध को चुनौती पर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है.

Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट (ETV Bharat Jodhpur)
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 2 hours ago

जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट में एफआईआर डाउनलोड करने पर मनमाने प्रतिबंध को जनहित याचिका के जरिए चुनौती देने पर राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह में जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव एवं न्यायाधीश मुन्नुरी लक्ष्मण की खंडपीठ के समक्ष उत्थान विधिक सहायता एवं सेवा संस्थान की ओर से जनहित याचिका दायर की गई.

अधिवक्ता रजाक खान हैदर व अधिवक्ता राहुल चौधरी ने बताया कि राजस्थान पुलिस की वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर 24 घंटे की समयावधि में एक उपयोगकर्ता (यूजर आईडी) को केवल एक एफआईआर डाउनलोड करने की अनुमति देने को मनमानापूर्ण बताते हुए चुनौती दी गई है. हाईकोर्ट के समक्ष कहा कि यूथ बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2016) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को 15 नवम्बर, 2016 से सभी एफआईआर (संवेदनशील मामलों के अलावा) वेबसाइट पर अपलोड करने के आदेश दिए थे.

पढ़ें: अपराध होने पर किसी भी पुलिस थाने में दर्ज करवा सकते हैं जीरो एफआईआर, थानों के नहीं काटने पड़ते चक्कर - PROVISION OF ZERO FIR

इस आदेश की पालना में राजस्थान सरकार ने राजस्थान पुलिस की वेबसाइट पर सभी एफआईआर अपलोड की है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से इस वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर 24 घंटे की समयावधि में एक उपयोगकर्ता (यूजर आईडी) को महज एक एफआईआर डाउनलोड करने की अनुमति दी जा रही है. ऐसे में नागरिकों के लिए एफआईआर सहज सुलभ रूप से उपलब्ध नहीं हो रही.

पढ़ें: वकालातनामे पर फर्जी हस्ताक्षर का मामला, कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने के दिए निर्देश - forged signatures on petitions case

उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि एफआईआर नम्बर की पूर्व जानकारी के बिना, चाही गई एफआईआर डाउनलोड करना महज दुर्लभ संयोग पर निर्भर करता है. सामान्यत: कई एफआईआर डाउनलोड करने पर चाही गई एफआईआर आवेदक को मिलती है. नागरिकों को एफआईआर डाउनलोड करने से रोकना अतार्किक व अव्यावहारिक है. इससे किसी भी उदेद्श्य की पूर्ति नहीं होती है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी एफआईआर सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध करवाने के निर्देशों का उद्देश्य एफआईआर तक नागरिकों की पहुंच सुनिश्चित करना है. राज्य सरकार उसमें मनमाना प्रतिबंध लगाकर आदेश की मूल भावना और मंशा के विपरीत कार्य कर रही है.

पढ़ें: हिंडौन प्रकरण: मजिस्ट्रेट के बचाव में उतरी आरजेएस एसोसिएशन, याचिका पेश - Rajasthan High Court

अधिवक्ता ने इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता), अनुच्छेद 19(1)(ए) वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) का भी उल्लंघन बताया. प्रारम्भिक सुनवाई के बाद खण्डपीठ ने राज्य के गृह विभाग की ओर से उपस्थित हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता बंशीलाल भाटी को नोटिस थमाते हुए चार सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिए.

जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट में एफआईआर डाउनलोड करने पर मनमाने प्रतिबंध को जनहित याचिका के जरिए चुनौती देने पर राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह में जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव एवं न्यायाधीश मुन्नुरी लक्ष्मण की खंडपीठ के समक्ष उत्थान विधिक सहायता एवं सेवा संस्थान की ओर से जनहित याचिका दायर की गई.

अधिवक्ता रजाक खान हैदर व अधिवक्ता राहुल चौधरी ने बताया कि राजस्थान पुलिस की वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर 24 घंटे की समयावधि में एक उपयोगकर्ता (यूजर आईडी) को केवल एक एफआईआर डाउनलोड करने की अनुमति देने को मनमानापूर्ण बताते हुए चुनौती दी गई है. हाईकोर्ट के समक्ष कहा कि यूथ बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2016) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को 15 नवम्बर, 2016 से सभी एफआईआर (संवेदनशील मामलों के अलावा) वेबसाइट पर अपलोड करने के आदेश दिए थे.

पढ़ें: अपराध होने पर किसी भी पुलिस थाने में दर्ज करवा सकते हैं जीरो एफआईआर, थानों के नहीं काटने पड़ते चक्कर - PROVISION OF ZERO FIR

इस आदेश की पालना में राजस्थान सरकार ने राजस्थान पुलिस की वेबसाइट पर सभी एफआईआर अपलोड की है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से इस वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर 24 घंटे की समयावधि में एक उपयोगकर्ता (यूजर आईडी) को महज एक एफआईआर डाउनलोड करने की अनुमति दी जा रही है. ऐसे में नागरिकों के लिए एफआईआर सहज सुलभ रूप से उपलब्ध नहीं हो रही.

पढ़ें: वकालातनामे पर फर्जी हस्ताक्षर का मामला, कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने के दिए निर्देश - forged signatures on petitions case

उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि एफआईआर नम्बर की पूर्व जानकारी के बिना, चाही गई एफआईआर डाउनलोड करना महज दुर्लभ संयोग पर निर्भर करता है. सामान्यत: कई एफआईआर डाउनलोड करने पर चाही गई एफआईआर आवेदक को मिलती है. नागरिकों को एफआईआर डाउनलोड करने से रोकना अतार्किक व अव्यावहारिक है. इससे किसी भी उदेद्श्य की पूर्ति नहीं होती है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी एफआईआर सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध करवाने के निर्देशों का उद्देश्य एफआईआर तक नागरिकों की पहुंच सुनिश्चित करना है. राज्य सरकार उसमें मनमाना प्रतिबंध लगाकर आदेश की मूल भावना और मंशा के विपरीत कार्य कर रही है.

पढ़ें: हिंडौन प्रकरण: मजिस्ट्रेट के बचाव में उतरी आरजेएस एसोसिएशन, याचिका पेश - Rajasthan High Court

अधिवक्ता ने इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता), अनुच्छेद 19(1)(ए) वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) का भी उल्लंघन बताया. प्रारम्भिक सुनवाई के बाद खण्डपीठ ने राज्य के गृह विभाग की ओर से उपस्थित हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता बंशीलाल भाटी को नोटिस थमाते हुए चार सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.