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1942 में अंग्रेजों से खुद को बलिया ने घोषित किया था आजाद, सरकार भी बनाई थी, जेल के कैदी हुए थे रिहा - Ballia Martyrdom Day

19 अगस्त 1942 को बलिया आजाद हुआ था. बलिया की स्वतंत्रता का क्या इतिहास है और तब से अब तक कैसे आजादी का जश्न मनाया जा रहा है चलिए जानते हैं.

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बलिया बलिदान दिवस (photo credit- Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 20, 2024, 11:56 AM IST

बलिया: सोमवार को बलिया बलिदान दिवस मनाया गया. इस दौरान जेल का फाटक खुला. जनपद के एक मात्र जीवित सेनानी पं. राम विचार पाण्डेय के नेतृत्व में सेनानियों का जत्था प्रतीकात्मक रूप से जेल से बाहर निकला. जेल से बाहर निकलते समय पं. राम विचार पाण्डेय के एक तरफ परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह, तो दूसरी तरफ अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री दानिश आजाद अंसारी थे.

इसके अलावा तमाम सेनानियों के परिजन, जनपद के वरिष्ठ लोगों ने इस कार्यक्रम में प्रतिभाग किया. जेल से निकलते समय भारत माता की जय, वन्देमातरम और जेल का फाटक टूटेगा,चित्तू पाण्डेय छूटेगा के नारे लगे. मंत्री, जिलाधिकारी समेत सभी लोगों ने जेल परिसर में स्थित सेनानी राजकुमार बाघ की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया. इसके बाद यह जत्था कुंवर सिंह चौराहा, टीडी चौराहा, चित्तू पांडेय चौराहा होते हुए रामलीला मैदान पहुंचा.

इसे भी पढ़े-धूमधाम से मनाया गया बलिया बलिदान दिवस, डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने सेनानियों को किया सम्मान

इस मौके पर परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा, कि बलिया के लिए यह दिन गौरव का दिन होता है. 1942 में बलिया ने खुद को आजाद किया था. कहा, कि पूरे देश में तीन जनपद आजाद हुए थे. बंगाल का मेदनीपुर, महाराष्ट्र के सातारा और उत्तर प्रदेश का बलिया जिला 1942 में ही आजाद हो गया था. बलिया की परम्परा है, इस दिन यहां के जेल का फाटक खुलता है. हमारे बलिया के क्रांतिकारी चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में लोग जेल से बाहर निकलते हैं. बलिया की जनता उनका स्वागत और अभिनन्दन करती है.

जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार ने कहा, कि 19 अगस्त 1942 को बलिया आजाद हो गया था. जिसे हम बलिया बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं. इसे बलिया विजय दिवस भी बोलते है. इस दिन अंग्रेजों से मुक्त होकर चित्तू पाण्डेय जी के नेतृत्व में सरकार बनी थी. उस दिन जेल के फाटक खोल दिये गये थे और जितने भी कैदी थे, उनको मुक्त करा लिया गया था.

यह भी पढ़े-बलिया बलिदान दिवस: आजादी से 5 साल पहले ही आजाद हुआ था बलिया

बलिया: सोमवार को बलिया बलिदान दिवस मनाया गया. इस दौरान जेल का फाटक खुला. जनपद के एक मात्र जीवित सेनानी पं. राम विचार पाण्डेय के नेतृत्व में सेनानियों का जत्था प्रतीकात्मक रूप से जेल से बाहर निकला. जेल से बाहर निकलते समय पं. राम विचार पाण्डेय के एक तरफ परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह, तो दूसरी तरफ अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री दानिश आजाद अंसारी थे.

इसके अलावा तमाम सेनानियों के परिजन, जनपद के वरिष्ठ लोगों ने इस कार्यक्रम में प्रतिभाग किया. जेल से निकलते समय भारत माता की जय, वन्देमातरम और जेल का फाटक टूटेगा,चित्तू पाण्डेय छूटेगा के नारे लगे. मंत्री, जिलाधिकारी समेत सभी लोगों ने जेल परिसर में स्थित सेनानी राजकुमार बाघ की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया. इसके बाद यह जत्था कुंवर सिंह चौराहा, टीडी चौराहा, चित्तू पांडेय चौराहा होते हुए रामलीला मैदान पहुंचा.

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इस मौके पर परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा, कि बलिया के लिए यह दिन गौरव का दिन होता है. 1942 में बलिया ने खुद को आजाद किया था. कहा, कि पूरे देश में तीन जनपद आजाद हुए थे. बंगाल का मेदनीपुर, महाराष्ट्र के सातारा और उत्तर प्रदेश का बलिया जिला 1942 में ही आजाद हो गया था. बलिया की परम्परा है, इस दिन यहां के जेल का फाटक खुलता है. हमारे बलिया के क्रांतिकारी चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में लोग जेल से बाहर निकलते हैं. बलिया की जनता उनका स्वागत और अभिनन्दन करती है.

जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार ने कहा, कि 19 अगस्त 1942 को बलिया आजाद हो गया था. जिसे हम बलिया बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं. इसे बलिया विजय दिवस भी बोलते है. इस दिन अंग्रेजों से मुक्त होकर चित्तू पाण्डेय जी के नेतृत्व में सरकार बनी थी. उस दिन जेल के फाटक खोल दिये गये थे और जितने भी कैदी थे, उनको मुक्त करा लिया गया था.

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