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बिना वेतन लिए सरकार की करोड़ों की संपत्ति की रक्षा करते हैं ये लोग, आखिर कौन हैं ये प्रहरी - Balaghat Village Forest Committees

आपार प्राकृतिक वन संपदाओं से भरपूर बालाघाट में जंगलों के संवर्धन और संरक्षण को लेकर प्रशासन के द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन वन अमले के अलावा ग्राम वन समितियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

BALAGHAT VILLAGE FOREST COMMITTEES
वनों की सुरक्षा में ग्राम वन समितियां निभाती हैं मुख्य भूमिका (Getty Images)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 24, 2024, 2:11 PM IST

बालाघाट: प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण मध्य प्रदेश विशेषकर वन व वन्य प्राणियों की विविधता के लिए जाना जाता है, जिसमें सर्वाधिक योगदान बालाघाट जिले का है. बालाघाट में 53.44 प्रतिशत भाग पर सघन वन पाए जाते हैं. जिनमें बेशकीमती सागौन, साल, तिनसा, बीजा व औषधीय और फलदार वृक्ष यहां मौजूद हैं. अपार वानिकी संपदा अपनी आगोश में समेटे बालाघाट चारों ओर से हरियाली से घिरा हुआ नजर आता है. ऐसा प्रतीत होता है कि मानों प्रकृति ने यहां हरियाली की चादर ढक रखी हो. इसके अलावा यहां पाए जाने वाले वन्यप्राणी यहां के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं. विश्व प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क भी यहां स्थित है, जहां लाखों की संख्या में देश से ही नहीं अपितु विदेशों से भी सैलानी पंहुचते हैं. इतने बड़े क्षेत्र को वन कर्मियों के अलावा ग्राम वन समितियां भी संभालती हैं.

वनों की सुरक्षा में ग्राम वन समितियां निभाती हैं मुख्य भूमिका (ETV Bharat)

ग्राम वन समितियां निभाती हैं मुख्य भूमिका

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान मुख्य वन संरक्षक एपीएस सेंगर ने बताया कि ''वन विभाग पूरी मुस्तैदी से हमारे बालाघाट जिले की वन संपदा को बचाने के लिए तत्पर रहता है, उसके लिए विभाग अपनी पूरी क्षमताओं के साथ वनों के संवर्धन, सुरक्षा और वन्यप्राणियों की सुरक्षा को लेकर काम कर ही रहा है. उसके साथ-साथ हमारी ग्राम सुरक्षा समितियां भी हैं, जिनकी सक्रिय भूमिका उसमें रहती है. जो एक सजग प्रहरी के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं और उनको भी हम लगातार वनों की सुरक्षा को लेकर प्रेरित करते हैं.

समितियों को दिया जाता है 20 प्रतिशत लाभांश

चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि ''वनों से होने वाली आय का 20 प्रतिशत लाभांश समितियों को दिया जाता है, जिस राशि को वह ग्राम विकास कार्यों पर खर्च करते हैं. साथ ही कुछ हिस्सा वन विकास पर भी लगाया जाता है. पंचायत स्तर पर गठित वन सुरक्षा समितियां विभाग से तालमेल बनाकर कार्य करती हैं जो संबंधित वनकर्मी के साथ टीम बनाकर वनों में गश्त करते हैं. इसके अलावा गर्मी के समय में इनकी सक्रिय भूमिका रहती है, जो जंगलों में लगी हुई आग को न केवल दिन में बल्कि रात में भी बुझाने के लिए तत्पर रहते हैं.''

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जिले में है बेशकीमती वन संपदा

शुक्रवार को क्षेत्र का भ्रमण करने के दौरान एपीएस सेंगर ने डिपो का निरीक्षण किया, जिसमें रिजनरेशन के ग्रेड प्वाइंट में किए गए कार्याें पर पाई गई कमियों में सुधार करने के निर्देश दिए. वहीं रात्रि गस्त करते हुए अधीनस्त कर्मचारियों के साथ जंगल का भ्रमण किया व वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर खास निर्देश दिए. वहीं उन्होंने कहा कि ''अतिक्रमण को लेकर संवेदनशील क्षेत्रों में लगातार मानसून गश्ती करने के निर्देश दिए गए हैं. जिले में अपार वानिकी संपदा है. इससे प्रत्यक्ष रूप से जलाउ व इमारती लकड़ी मिलती हैं. इसके अलावा लघु वनोपज का संग्रहण किया जाता है, जिनमें चार, चुरना, आवंला, बेल, जामुन, आम व अनेक प्रकार की वस्तुएं व औषधियां भी शामिल है.''

बालाघाट: प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण मध्य प्रदेश विशेषकर वन व वन्य प्राणियों की विविधता के लिए जाना जाता है, जिसमें सर्वाधिक योगदान बालाघाट जिले का है. बालाघाट में 53.44 प्रतिशत भाग पर सघन वन पाए जाते हैं. जिनमें बेशकीमती सागौन, साल, तिनसा, बीजा व औषधीय और फलदार वृक्ष यहां मौजूद हैं. अपार वानिकी संपदा अपनी आगोश में समेटे बालाघाट चारों ओर से हरियाली से घिरा हुआ नजर आता है. ऐसा प्रतीत होता है कि मानों प्रकृति ने यहां हरियाली की चादर ढक रखी हो. इसके अलावा यहां पाए जाने वाले वन्यप्राणी यहां के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं. विश्व प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क भी यहां स्थित है, जहां लाखों की संख्या में देश से ही नहीं अपितु विदेशों से भी सैलानी पंहुचते हैं. इतने बड़े क्षेत्र को वन कर्मियों के अलावा ग्राम वन समितियां भी संभालती हैं.

वनों की सुरक्षा में ग्राम वन समितियां निभाती हैं मुख्य भूमिका (ETV Bharat)

ग्राम वन समितियां निभाती हैं मुख्य भूमिका

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान मुख्य वन संरक्षक एपीएस सेंगर ने बताया कि ''वन विभाग पूरी मुस्तैदी से हमारे बालाघाट जिले की वन संपदा को बचाने के लिए तत्पर रहता है, उसके लिए विभाग अपनी पूरी क्षमताओं के साथ वनों के संवर्धन, सुरक्षा और वन्यप्राणियों की सुरक्षा को लेकर काम कर ही रहा है. उसके साथ-साथ हमारी ग्राम सुरक्षा समितियां भी हैं, जिनकी सक्रिय भूमिका उसमें रहती है. जो एक सजग प्रहरी के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं और उनको भी हम लगातार वनों की सुरक्षा को लेकर प्रेरित करते हैं.

समितियों को दिया जाता है 20 प्रतिशत लाभांश

चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि ''वनों से होने वाली आय का 20 प्रतिशत लाभांश समितियों को दिया जाता है, जिस राशि को वह ग्राम विकास कार्यों पर खर्च करते हैं. साथ ही कुछ हिस्सा वन विकास पर भी लगाया जाता है. पंचायत स्तर पर गठित वन सुरक्षा समितियां विभाग से तालमेल बनाकर कार्य करती हैं जो संबंधित वनकर्मी के साथ टीम बनाकर वनों में गश्त करते हैं. इसके अलावा गर्मी के समय में इनकी सक्रिय भूमिका रहती है, जो जंगलों में लगी हुई आग को न केवल दिन में बल्कि रात में भी बुझाने के लिए तत्पर रहते हैं.''

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जिले में है बेशकीमती वन संपदा

शुक्रवार को क्षेत्र का भ्रमण करने के दौरान एपीएस सेंगर ने डिपो का निरीक्षण किया, जिसमें रिजनरेशन के ग्रेड प्वाइंट में किए गए कार्याें पर पाई गई कमियों में सुधार करने के निर्देश दिए. वहीं रात्रि गस्त करते हुए अधीनस्त कर्मचारियों के साथ जंगल का भ्रमण किया व वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर खास निर्देश दिए. वहीं उन्होंने कहा कि ''अतिक्रमण को लेकर संवेदनशील क्षेत्रों में लगातार मानसून गश्ती करने के निर्देश दिए गए हैं. जिले में अपार वानिकी संपदा है. इससे प्रत्यक्ष रूप से जलाउ व इमारती लकड़ी मिलती हैं. इसके अलावा लघु वनोपज का संग्रहण किया जाता है, जिनमें चार, चुरना, आवंला, बेल, जामुन, आम व अनेक प्रकार की वस्तुएं व औषधियां भी शामिल है.''

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