बगहाः बिहार के बगहा के वाल्मीकीनगर में अमूमन प्रतिदिन भालुओं की चहलकदमी देखी जा रही है. ये भालू वीटीआर जंगल से निकल कर रिहायशी इलाकों में पहुंच रहे हैं. सवाल है कि आखिर जंगल छोड़ भालू रिहायशी इलाकों में क्यों पहुंच रहे हैं? लोगों का कहना है कि पहले भालू लोगों को देखकर डरते थे और भाग जाते थे. जानमाल को नुकसान पहुंचाते थे लेकिन अब यह पीपल प्रेंडली होते जा रहे हैं. लोगों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. स्थानीय लोग भालू को रामायण से भी जोड़ कर देखते हैं, इसलिए ये लोग उसे भगाते नहीं हैं. अब भालू आराम से चहलकदमी करते रहता है.
वीटीआर में 400 से भालूः वन्य जीवों के जानकार वीडी संजू बताते हैं की वीटीआर में 400 से अधिक स्लॉथ भालू हैं. इनमें कई गुण पाए जाते हैं लेकिन इनमें सूंघने की क्षमता अधिक है. भालू एक किमी से ज्यादा दूर के शिकार या भोजन को सूंघ लेते हैं. यहीं वजह है की कि भालू भोजन और शिकार की तलाश में कॉलोनियों तक पहुंच जा रहे हैं. वीडी संजू ने आगे बताया कि भालू जमीन पर चलने के साथ साथ पानी में तैरने और पेड़ पर चढ़ने में माहिर होते हैं. भालू इंसान की तरह सर्वाहारी होते हैं. उन्हें मांस के अलावा कंद मूल और खासकर शहद बेहद पसंद है.
"हालिया दौर के जंगल में बढ़ रही अन्य जानवरों की संख्या की वजह से भोजन मिलने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. यह खास वजह हो सकती है. जिस कारण भालू रिहायशी इलाकों का रुख कर रहे हैं. ये लोगों के बीच इतना घुलते मिलते जा रहे हैं की हमला भी नहीं कर रहे हैं. पौराणिक कथाओं में भी भालू का दोस्ताना संबंध रहा है. ऐसे में लोग इसे नहीं भगा रहे हैं." -वीडी संजू, वन्य जीव विशेषज्ञ
भालू के सम्मान में मना राष्ट्रीय टेडी बियर डेः वीडी संजू बताते हैं कि भालुओं का इंसान के साथ दोस्ताना संबंध आप इस वाक्या से समझ सकते हैं. 9 सितंबर को हर साल राष्ट्रीय टेडी बियर दिवस मनाया जाता है. वेलेंटाइन वीक के दौरान भी टेडी डे मनाने की परंपरा है. इस प्रथा का शुभारंभ 1902 में हुआ. अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने मिसिसिपी में शिकार करते समय एक भालू के बच्चे को गोली मारने से इनकार कर दिया था. इसके बाद उनके सम्मान में अमेरिका में राष्ट्रीय टेडी बियर दिवस मनाया जाता है.
इसलिए जंगल से निकल रहे भालूः वाल्मिकी नगर ई टाइप कॉलोनी के निवासी वरिष्ठ पत्रकार नसीम खान कहते हैं कि यहां काफी संख्या में पर्यटक आते हैं. चुकी यह एक पिकनिक स्पॉट है. लिहाजा उनके द्वारा फेंके गए भोजन को सूंघकर भालू कभी झुंड में तो कभी अकेले पहुंच जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि पहले तो लोगों को देखकर भालू डरते थे और जंगल का रुख कर लेते थे लेकिन अब ये भालू डरते नहीं हैं. नसीम खान बताते हैं कि उनके कॉलोनी में भी भालू आते हैं.
हमेशा से फ्रेंडली रहा है भालूः उन्होंने बताया कि भालू मानव और बंदर की तरह ही एक समझदार और सामाजिक प्राणी है. भालू और इंसान की दोस्ती लंबे समय से रही है. पहले गांव और शहर के चौक चौराहों पर डमरू बजाकर भालू का खेल दिखाते कई मदारी दिखते थे. दरअसल भालू से कलंदर समुदाय के लोगों की जीविका चलती थी. भालुओं को वे ट्रेंड करते थे जिस कारण भालू उनकी बात समझते थे, लेकिन 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू होने के उपरांत वन विभाग की जैसे-जैसे सख्ती बढ़ी, कलंदर समाज का खानादानी पेशा और पेट भरने का जरिया भी खत्म होता गया.
पुराणों में भालू का जिक्रः नसीम खान कहते हैं कि पौराणिक कथाओं में भी भालुओं के इंसान से गहरे रिश्ते का जिक्र मिलता है. रामायण काल में जामवंत इसके बहुत बड़े उदाहरण हैं. जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है. यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा. कहा जाता है कि जामवंत सतयुग और त्रेतायुग में भी थे और द्वापर में भी उनके होने का वर्णन मिलता है.
'रीछ मानव से जुड़ा है नाता': एक दूसरी मान्यता अनुसार भगवान ब्रह्मा ने एक ऐसा रीछ मानव बनाया था जो दो पैरों से चल सकता था. जो मानवों से संवाद कर सकता था. पुराणों के अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है. नसीम खान बताते हैं कि पौराणिक कथाओं के कारण ही लोग उसे रिहायशी इलाकों से भगाते नहीं है. भालू आराम से चहलकदमी करते रहते हैं.
एक किमी तक सूंघने की क्षमताः वीटीआर में स्लॉथ भालू पाए जाते हैं. इनका पसंदीदा भोजन शहद होता है लेकिन जंगल में हमेशा उनका मनपसंद भोजन मिल जाए यह संभव नहीं है. भालू की सूंघने की क्षमता एक किमी तक की होती है. इसलिए भोजन की खुशबू की तरफ आकर्षित होते हैं. नतीजतन ये लोगों के बीच चले आ रहे हैं. ये भालू जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. जंगली जानवरों के शिकारी के रूप में भी काम करते हैं.
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