कोरबा: दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे को बीते साल लगभग 7000 करोड़ रुपए का राजस्व अकेले कोरबा से मिला है. यह आमदनी साल दर साल बढ़ रही है. ऊर्जाधानी से देश के अलग-अलग हिस्सों में कोयले की आपूर्ति की जाती है. कोयला लदान के बल पर ही रेलवे को ये राजस्व मिलता है, लेकिन इतना भारी भरकम राजस्व देने के बाद भी कोरबा में यात्री सुविधाएं पूरी तरह से बेपटरी है. लंबे अरसे से यात्रियों गाड़ियों के विलंब से चलने का सिलसिल जारी है. ये स्टेशन रायपुर और बिलासपुर को जोड़ती है. ऐसी लगभग सभी ट्रेन रोजाना 2 से 3 घंटे की देरी से कोरबा पहुंचती हैं. इससे यात्रियों को खासा परेशान होना पड़ रहा है. बावजूद इसके रेलवे प्रशासन की ओर से ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. रेलवे के अधिकारी हमेशा व्यवस्था बनाने और बेहतर सुविधाएं प्रदान करने की बात कहते हैं.
कोरबा को रायपुर से जोड़ने वाली हसदेव एक्सप्रेस अक्सर लेट : रविवार को रायपुर से कोरबा आने वाली हसदेव एक्सप्रेस अक्सर रात 12 बजे के बाद ही कोरबा पहुंचती है. इससे उपनगरीय क्षेत्र के यात्रियों को रेलवे स्टेशन से अपने घर तक जाने के लिए अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है. रात के समय आटो चालकों का किराया भी दोगुना हो जाता है, जितनी राशि खर्च कर लो रायपुर या बिलासपुर से कोरबा पहुंचता है उतनी ही राशि या कई बार उससे ज्यादा भी उन्हें रेलवे स्टेशन से अपने 10 से 20 किलोमीटर घर तक पहुंचने में सार्वजनिक यात्री पहाड़ परिवहन पर खर्च करना पड़ता है.
कोरोना काल में बाद बंद हुई ट्रेन आज तक नहीं हुई शुरू: गेवरारोड रेलवे स्टेशन से पश्चिम क्षेत्र के यात्रियों से एक ट्रेन की सुविधा पूरी तरह से छिन चुकी है. इन्हें सफर करने के लिए कोई विकल्प नहीं मिल रहा है. एक मात्र ट्रेन जो उनके लिए सुविधाजनक थी, उसे रेलवे प्रशासन ने 22 माह से बंद करके रखा है. अब 2 महीने बाद इस ट्रेन की सुविधा को बंद हुए 2 साल का समय पूरा हो जाएगा. धरना प्रदर्शन, पदयात्रा, चक्काजाम आदि के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. क्षेत्र के लोग कोरबा आकर ट्रेन की सवारी करते हैं. यहां से वापस अपने घर तक सड़क मार्ग से पहुंचते हैं, जबकि पहले उन्हें गेवरारोड में ही ट्रेन मिल जाती थी. रेलवे की ओर से अप्रैल 2022 में सूचना प्रकाशित कर एक माह के लिए यात्री ट्रेनों को बंद करने को कहा था, लेकिन अब 22 माह बीत चुके हैं. ट्रेन अब भी बंद है.
बिलासपुर आते ही बिगड़ जाती है ट्रेनों की चाल: द्वि-साप्ताहिक वैनगंगा ट्रेन सुपरफास्टक एक्सप्रेस, शिवनाथ एक्सप्रेस व हसदेव एक्सप्रेस 3 घंटा से भी अधिक विलंब से कोरबा आती है. खास तौर पर जब ट्रेन रायपुर से कोरबा के लिए निकलती है. तब बिलासपुर से आते ही इनकी चाल बिगड़ जाती है. यहां से माल गाड़ियों को अपने गंतव्य तक निकालने का दबाव रहता है, जिसके कारण ट्रेनों को कोई बार आउटर में रोक दिया जाता है. ट्रेन निकलती तो समय से है, लेकिन कोरबा काफी देर से पहुंचती है. कई बार तो 5 से 6 घंटे लेट गहरी है. ऐसा शायद ही कोई दिन होगा, जब ट्रेन अपने निर्धारित समय पर कोरबा रेलवे स्टेशन पहुंचती हो. रायपुर से भाटापारा, दाधापारा से बिलासपुर और बिलासपुर से जयरामनगर के बीच ट्रेन ज्यादा लेट रहती है.
परीक्षा और इंटरव्यू में कभी समय से नहीं पहुंच पाते: इस बारे में कोरबा शहर के निवासी हिमांशु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उनका कहना है कि, "कोरबा में ट्रेनों के लेट लगती थी. वाकई में एक बड़ा मुद्दा है. कई बार हमें इमरजेंसी में निकलना होता है. परीक्षा या इंटरव्यू में शामिल होता है. ट्रेन के भरोसे हम कभी भी समय पर नहीं पहुंच सकते. कोरबा से ट्रेनिंग अक्सर लेते रहती हैं, जिसके कारण हमें परेशानी का सामना करना पड़ता है. प्रदेश में हम नहीं सरकार बनी है, जिससे हमें उम्मीद है. यह कुछ काम करेगी. कम से कम ट्रेनों की टाइमिंग सुधरी."
कुसमुंडा तक चलाई जाए ट्रेन : वहीं, इस बारे में कोयलांचल क्षेत्र के निवासी अब्दुल रऊफ खान का कहना है कि, "पहले गेवरा रोड तक ट्रेन का संचालन होता था, लेकिन अब उसे बंद कर दिया गया है, जिसके कारण हम लोगों को ट्रेन पकड़ने के लिए कोरबा तक का सफर करना पड़ता था. ट्रेन पकड़ने के लिए हम यहां आते हैं, इसके बाद हम ट्रेनों के लिए परेशान होते हैं. आज भी मैं शिवनाथ एक्सप्रेस पकड़ने के लिए यहां पहुंचा हूं, लेकिन ट्रेन अभी देर से 2 घंटा लेट है. रेलवे प्रशासन को चाहिए कि हमारी परेशानी को समझें और समस्याओं का समाधान करें. ट्रेन का संचालन फिर से गेवरा रोड रेलवे स्टेशन तक किया जाए."
व्यवस्था बनाकर लोगों को सुविधा देना प्राथमिकता: इस पूरे मामले में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के सीपीआरओ साकेत रंजन का कहना है कि,"माल ढुलाई से मिलने वाला राजस्व और यात्री सुविधाएं. दोनों ही अलग-अलग विषय हैं. दोनों की तुलना नहीं की जानी चाहिए. यात्री सुविधाओं का हम पूरा ध्यान रखते हैं. व्यवस्था बनाकर ट्रेनों का सही समय पर किया जाए, यही प्रयास रहता है. ट्रेन लेट होने के कई तकनीकी कारण भी होते हैं."
कुल मिलाकर ट्रनों की रफ्तार उर्जाधानी में धीमी है. जहां एक ओर लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वहीं, दूसरी ओर रेलवे सुविधाओं पर पूरा ध्यान देने की बात कहती है.