अजमेर. देश में स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने लगी है. वहीं लोग अब सुरक्षित चिकित्सा पद्धति को अपनाने लगे हैं. विश्व की सबसे प्राचीनतम आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की ओर लोगों का झुकाव होने लगा है. ऐसे में आयुर्वेद चिकित्सा और शिक्षकों का दायित्व भी बढ़ गया है. विश्व आयुर्वेद परिषद से संगठन चिकित्सकों और शिक्षकों के अलावा स्कॉलर्स की स्किल को बढ़ाने का काम कर रहा है. अजमेर में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पंचकर्म को लेकर प्रदेश स्तरीय सेमीनार बुधवार को रखी गई. देश के विख्यात विशेषज्ञ प्रोफेसर उमा शंकर निगम मुम्बई से सेमीनार में व्याख्यान देने आए.
बातचीत में प्रोफेसर उमाशंकर निगम ने बताया कि कोरोना काल में आयुर्वेद की ओर लोगों का झुकाव बढ़ा है. लोगों में स्वास्थ्य के प्रति खासकर आयुर्वेद के प्रति जागृति आई है. केंद्र और राज्य सरकारों ने भी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रुचि दिखाई है. इससे बेहतर माहौल तैयार हुआ है. यही कारण है कि आयुर्वेद शिक्षकों और चिकित्सकों की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है. उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार ने जीवन शैली को पाठ्यक्रम में शामिल किया है. इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से वन मेला और आयुर्वेद मेला भी लगाए जाते हैं. पंचकर्म चिकित्सा प्राइवेट आयुर्वेद अस्पताल में महंगी है. जबकि सरकारी अस्पतालों में महंगी नहीं है.
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राजस्थान में पंचकर्म सेंटर्स की कमी: प्रोफेसर निगम ने बताया कि शरीर उपकरण के समान है. जिस प्रकार वाहन की सर्विसिंग आवश्यक है, उसी प्रकार शरीर की भी सर्विसिंग जरूरी है. मानव शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है. शरीर में रोग वात, पित्त और कफ के असंतुलन से होते हैं. आयुर्वेद में रोग के मुताबिक ही पंचकर्म चिकित्सा रोगी को दी जाती है. वर्षों से चिकित्सक और शिक्षक पंचकर्म की प्रक्रिया को करना भूल गए हैं. लेकिन अब लोगों का झुकाव आयुर्वेद की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में पंचकर्म की डिमांड भी बढ़ रही है. यह सेमीनार पंचकर्म को बढ़ावा देने के साथ ही चिकित्सकों और शिक्षकों को सही तरीके से पंचकर्म की शैली समझने के उद्देश्य से सेमीनार रखी गई है. उन्होंने बताया कि पंचकर्म के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए सरकार के स्तर पर भी प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है. प्रदेश के समस्त जिलों में पंचकर्म सेंटर की कमी है. ऐसे में सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए.
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पांच प्रकार की होती है पंचकर्म विधि: प्रोफेसर उमाशंकर निगम बताते हैं कि पांच प्रकार के पंचकर्म होते हैं. पंचकर्म से पहले और पंचकर्म के बाद भी रोगी को आयुर्वेद विधि से चिकित्सा दी जाती है. पंचकर्म की पहली विधि वामन है. इसमें कफ की अधिकता होने से रोगी को औषधीय के माध्यम से उल्टी करवाई जाती है. दूसरी विधि विरेचन है. पित्त के कारण होने वाली व्याधियों के उपचार के लिए विरेचन पंचकर्म रोगी को दिया जाता है.
तीसरा अनुवासन वस्ती है. इसको स्नेह अनुवासन भी कहा जाता है. न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर और जॉइंटस में दर्द के लिए अनुवासन वस्ती का पंचकर्म किया. चौथा निरुह वस्ती पंचकर्म में काढ़ा दिया जाता है. पंचकर्म की पांचवी विधि नस्य वस्ती है. लकवा, सर्वाइकल, जुखाम आदि रोग में दवा नाक से डाली जाती है. उन्होंने बताया कि पंचकर्म में मेहनत होती है और वामन पंचकर्म विधि करवाने से चिकित्सक डरते भी हैं. उन्होंने कहा कि आयुर्वेद महंगा नहीं बल्कि हर्बल ट्रीटमेंट है. आयुर्वेद चिकित्सा वेदना के कारण को खत्म करती है. इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है.
शिक्षक, चिकित्सक और स्कॉलर्स की बढ़ाते हैं स्किल: विश्व आयुर्वेद परिषद के प्रदेश अध्यक्ष किशोरी लाल शर्मा ने बताया कि 25 राज्यों में विश्व आयुर्वेद परिषद सक्रिय है. संगठन की ओर से आयुर्वेद चिकित्सकों का स्किल बढ़ाया जाता है. शर्मा ने बताया कि पंचकर्म से जनता को लाभ मिले. इस उद्देश्य से आयुर्वेद चिकित्सकों, शिक्षकों और स्कॉलर्स को कार्यशाला और शिविर आयोजित कर विशेषज्ञों के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाता है. उन्होंने बताया कि सरकार के सामने संगठन के माध्यम से समस्याएं पहुंचाई जाती हैं. सरकार भी आयुर्वेद पद्धति को बढ़ावा दे रही है. साथ ही संगठन को भी सहयोग मिल रहा है.
आबादी के हिसाब से पंचकर्म सेंटर्स कम: नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद में पंचकर्म विभाग अध्यक्ष गोपेश मंगल बताते हैं कि पंचकर्म की विधि कुछ महंगी है. इसमें आवश्यक दवाइयां आती हैं. लेकिन बीमारी के प्रबंधन के अनुसार यह सस्ती भी हैं. उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में शोधन और शमन चिकित्सा पद्धति है. केंद्र सरकार आयुर्वेद को प्रमोट कर रही है. गोपेश मंगल का मानना है कि आबादी के अनुपात में सरकारी स्तर पर प्रदेश में पंचकर्म सेंटर्स की व्यवस्था कम है.
उन्होंने बताया कि प्रदेश में सरकारी और गैर सरकारी पंचकर्म सेंटर करीब 100 के ऊपर है. लोगों में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता बढ़ी है. जयपुर में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ आयुर्वेद के पंचकर्म विभाग में काफी संख्या में लोग पंचकर्म के लिए आते हैं. हालत यह है कि डेढ़ माह की वेटिंग वहां पर है. यहां दो से तीन घंटे पंचकर्म में लगते हैं. 1 दिन में 400 लोगों का पंचकर्म यहां किया जाता है.