आगरा : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने बारिश में ताजमहल के मुख्य मकबरे में पानी टपकने और अन्य नुकसान की जांच शुरू कर दी है. एएसआई की ओर से ताजमहल के मुख्य मकबरे में पानी के रिसाव की जांच के लिए लिडार तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे ताजमहल के मुख्य मकबरे के गुंबद और छत से एकत्र डाटा का विश्लेषण किया जा रहा है. इसके बाद ही पानी के रिसाव को बंद करने का काम होगा.
जमकर बरसात के बाद कब्रों पर टपका था पानी: बता दें कि आगरा में 10 सितंबर को 30.75 एमएम, 11 सितंबर को 38.75 एमएम, 12 सितंबर को 201.00 एमएम, 13 सितंबर को 09.00 एमएम बारिश हुई थी. जिले में 72 घंटे में 222 एमएम बारिश हुई थी. इससे ताजमहल के मुख्य मकबरे में स्थित मुगल बादशाह शाहजहां और मुमताज की कब्रों पर गुंबद से पानी टपका था. ताजमहल का गार्डन भी बारिश में लबालब हो गया था. इसका भी वीडियो वायरल हुआ था. बारिश में ताजमहल और अन्य स्मारक की जांच 13 सितंबर को एएसआई के विशेषज्ञों ने की तो कहा कि ताजमहल में पानी कलश के जरिए टपका था. तभी से ताजमहल और अन्य स्मारकों के रखरखाव और सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं.
ड्रोन से की वीडियोफी और फोटोग्राफी कराई : सपा मुखिया अखिलेश यादव और हैदराबाद के सांसद ओवैसी ने सोशल मीडिया पर ताजमहल की अव्यवस्था को लेकर सवाल उठाए. एएसआई पर करोड़ों रुपये के कार्य कराने पर सवाल उठाए. जिससे ताजमहल में पानी टपकने और अन्य स्मारकों के रखरखाव को लेकर राजनीति शुरू हुई गई. इधर, एएसआई अधिकारियों ने 20 सितंबर को ताजमहल में मुख्य मकबरे के गुंबद की पुनः गहनता से जांच की. विशेषज्ञों की टीम ने लिडार तकनीक का उपयोग कर डाटा एकत्र किया गया. इसके साथ ही ड्रोन उड़ाकर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की.
डाटा का विश्लेषण करेंगी विशेषज्ञों की टीमें : एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. राजकुमार पटेल ने बताया कि ताजमहल में टपके पानी की जांच में लिडार तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसमें लिडार तकनीक से एकत्र डाटा का विश्लेषण विशेषज्ञों की टीमें करेंगी. बारिश से ताजमहल में अभी तक किसी तरह का स्ट्रक्चरल नुकसान नजर नहीं आया है.
क्या है लिडार तकनीक: लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (लिडार) एक विशेष तकनीक है. जो सुदूर संवेदी तकनीक है. जिसमें प्रकाश का उपयोग पल्स लेजर के रूप में करके जांच की जाती है. इस तकनीक में जीपीएस और स्कैनर का भी सहयोग लिया जाता है. इस तकनीक के उपयोग से ही मैक्सिको में प्राचीन माया सभ्यता से संबंधित स्थल के बारे में नई जानकारियां मिली थीं.
बता दें कि मुगल बादशाह शहंशाहजां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में 1632 से 1648 के बीच यमुना किनारे ताजमहल का निर्माण कराया था. सन् 1983 में यूनेस्को ने ताजमहल को विश्व धरोहर घोषित किया था. आगरा के वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां की सबसे चहेती बेगम मुमताज की 17 जून 1631 को मौत हो गई थी. बुरहानपुर में मुमताज की मौत अपनी 14 वीं संतान गौहारा बेगम को जन्म देने के समय हुई थी. प्रसव पीड़ा के दौरान मुमताज की मौत होने पर उसे बुरहानपुर में तापी नदी के किनारे सुपुर्दे खाक किया गया था. मुमताज की मौत से शाहजहां बेहद दुखी था. इसलिए, उसने मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण कराया. बुरहानपुर से मुमताज का शरीर 790 किलोमीटर दूर आगरा लाया गया. इसके बाद ताजमहल में तीसरी बार सुपुर्दे खाक किया गया.
कभी था सोने का कलश: ताजमहल के जिस कलश से पानी टपकने की बात कही जा रही है, वह कभी सोने का था. राजकिशोर बताते हैं कि ताजमहल चमके और दमके इसके लिए शाहजहां ने ताजमहल की चोटी पर लगाने के लिए सोने का कलश बनवाया था. ये सोने का कलश तब करीब 40 हजार तोला सोना यानी 466 किलोग्राम का करीब 30.5 फीट ऊंचा बनवाया था. लाहौर से बुलवाए गए काजिम खान की देखरेख में ये सोने का कलश तैयार हुआ था, जो सूरज की किरणों से चमकता था.
अब तक तीन बार बदला गया कलशः राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि 'तवारीख-ए-आगरा' में ताजमहल पर सोने का कलश लगाए जाने का जिक्र है. 1803 में जब अंग्रेजों का आगरा किला पर अधिकार हुआ. अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी जोसेफ टेलर, जब ताजमहल देखने गया तो सोने का कलश की जानकारी मिलने पर उसने पहली बार सन 1810 में ताजमहल की चोटी से सोने का कलश उतरवा दिया. अंग्रेज अफसर जोसेफ टेलर ने ताजमहल की चोटी पर सोने के कलश की जगह तब सोने की पॉलिश वाला तांबे का बना कलश लगवाया था. इसके बाद सन 1876 में कलश बदला गया. अंग्रेज पुरातत्व अधिकारी के दिशा-निर्देश पर ताजमहल परिसर में मेहमान खाना के सामने चमेली फर्श पर सन 1888 में नाथूराम नाम के कारीगर ने कलश की लंबाई और चौड़ाई के हिसाब से आकृति बनाई. जिससे भविष्य में कलश की नापजोख में किसी तरह की परेशानी नहीं हो. इसके बाद सन् 1940 में ताजमहल का कलश बदला गया है. अब तक तीन बार ताजमहल का कलश बदला गया है.