वाराणसी: दीपावली का त्योहार पूरा होने के बाद भी पर्वों की श्रृंखला जारी है. वाराणसी में दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट का महापर्व मनाया जा रहा है. इसके तहत श्री काशी विश्वनाथ और अन्नपूर्णा मंदिर में भव्य अन्नकूट की झांकी सजाई गई है. 511 कुंतल अन्नपूर्णा मंदिर में तो 14 कुंतल काशी विश्वनाथ मंदिर में 56 भोग का प्रसाद चढ़ाया गया है.
अन्नपूर्णा मंदिर में तो एक लंबी चौड़ी दीवार ही लड्डू से सजा दी गई. दीवार ही अकेले 21 कुंतल लड्डू से सजाई गई. जबकि मंदिर में लगभग 5 कुंतल लड्डू इस्तेमाल किए गए हैं. वहीं, विश्वनाथ धाम में 8 कुंतल लड्डू का प्रयोग कर मंदिर तैयार किया गया है.
14 क्विटल मिष्ठान से श्रृंगारः श्री काशी विश्वनाथ धाम में अन्नकूट पर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. विशेष रूप से भगवान कृष्ण द्वारा की गई गोवर्धन पूजा की स्मृति के रूप में मनाया जाता है. अन्नकूट का अर्थ प्रचुर खाद्यान्न है. यह पर्व श्रद्धालुओं द्वारा समृद्धि एवं अन्न सुरक्षा हेतु सात्विक भक्ति और समर्पण द्वारा की जाने वाली प्रार्थना का प्रतीक है. इस वर्ष अन्नकूट पर्व के अवसर पर श्री काशी विश्वनाथ महादेव का 14 क्विटल मिष्ठान से श्रृंगार किया गया है. इस श्रृंगार में विभिन्न प्रकार की मिठाइयां शामिल हैं. मध्यान्ह भोग आरती में यह विशिष्ट भोग श्री विश्वेश्वर महादेव को अर्पित किया गया. भोग लगने के बाद प्रसाद श्रद्धालुओं को वितरित किया गया.
85 कारीगरों ने तैयार किया प्रसादः वहीं, स्वर्णमयी माता अन्नपूर्णा दर्शन 29 अक्टूबर से जारी है. ये दर्शन 2 नवंबर अन्नकूट की देर रात्रि समापन होगा. इस मौके पर पूरे मन्दिर परिषर को रंग विरंगे झालरों से सरावोर कर दिया गया है. अन्नकूट में माता दरबार मे 511 कुंतल से भोग लगा है. प्रसाद बनाने का कार्य दशहरा स्थापना से अन्नपूर्णा दरबार में शुरू हो गया था. लगभग 85 कारीगरों ने मिलकर प्रसाद तैयार किया है. मुख्य कारीगर ने बताया कि तीन पीढ़ियों से वह यहां प्रसाद बना रहे हैं. कच्चा पक्का मिला कर 511 कुंतल प्रसाद तैयार किया गया है. उन्होंने बताया कि सूरन का भी लड्डू तैयार किया गया है. इसके साथ ही 40 तरह की मिठाई और 17 तरह की नमकीन भी प्रसाद है.
ये है मान्यताः मान्यता है कि आज ही के दिन काशी में वास के लिए जब भगवान शंकर पहुंचे थे तब उन्होंने भिक्षा मांगकर माता अन्नपूर्णा से अपना और काशी वासियों का पेट भरा था. मां ने देवाधि देव महादेव को यह आशीर्वाद दिया कि अब काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोएगा. इसी मान्यता के अनुसार सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा को निभाया जा रहा है.
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