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सावन में पाली के प्राचीन शिव मंदिर में उमड़े श्रद्धालु, 1200 साल पुराना है इतिहास - Sawan Somvar 2024

Sawan Somvar 2024 सावन के महीने में भोले शंकर की आराधना का महत्व अलग होता है. देश भर में कई ऐसे जगह हैं, जहां आस्था के साथ ही पुरातात्विक धरोहर का मेल देखने को मिलता है. उन्हीं में से एक है छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में पाली स्थित प्राचीन शिव मंदिर. इस शिव मंदिर की ख्याति राज्य भर में है. आइए जानें पाली के इस शिव मंदिर के आस्था और पुरातत्व का इतिहास कैसा रहा है. ANCIENT SHIVA TEMPLE OF PALI

SHIVA TEMPLE OF KORBA
पाली का प्राचीन शिव मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 5, 2024, 4:07 AM IST

Updated : Aug 18, 2024, 2:21 PM IST

ऐतिहासिक धरोहर पाली का प्राचीन शिव मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

कोरबा : जिले के पाली का शिव मंदिर छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है. इस शिव मंदिर का निर्माण 1200 साल पहले हुआ था. जितना पुराना इस शिव मंदिर का इतिहास है, उतना ही अटूट यहां आने वाले शिव भक्तों की आस्था है. राज्य भर से लोग प्राचीन शिव मंदिर में दर्शन करने यहां आते हैं. भारतीय संस्कृति और यहां के राजा-महाराजाओं की गौरवशाली विरासत का ये प्राचीन शिव मंदिर जीता जागता प्रमाण है. खास तौर पर सावन के महीने में राज्य भर से भक्त यहां आते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं.

गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक : कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर पाली स्थित है. पाली का शिव मंदिर, यहां के शिव भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है. लोगों का मानना है कि यहां आने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. एक किवदंती के अनुसार मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं. शिवमंदिर के स्थापत्यकला के अनुसार, गर्भगृह में सिर्फ एक ही शिवलिंग होना चाहिए. ऐसे में विशेषज्ञ अनुमान यह है कि प्राचीन काल में युद्ध के समय दो मंदिर नष्ट हो गए होंगे. इसी वजह से तीन शिवलिंग एक ही मंदिर के गर्भगृह में रखा गया है.

पाली के शिव मंदिर का गौरवशाली इतिहास : आज करीब 1200 साल पहले 9वीं शताब्दी में बाणवंशीय राजा विक्रमादित्य द्वारा प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण कराया गया था.
यह राजा विक्रमादित्य की पूजा स्थली थी. इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है. जिसपर खूबसूरत मूर्ति कला का नायाब नमूना देखने को मिलता है.

राजा विक्रमादित्य ने कराया था मंदिर का निर्माण : जिले के पुरातत्व मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्री बताते हैं, "पत्थर पर उकेरी गई मूर्तियों का आर्किटेक्चर अबु पहाड़ियों के जय मंदिरों, सोहगपुर और खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर जैसा भी है. 9वीं शताब्दी में बाणवंशीय राजा विक्रमादित्य ने इसका निर्माण कराया. जबकि 11वीं शताब्दी में कलचुरी वंश के शासक जाज्वल्य देव प्रथम ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. विक्रमादित्य को महामंडलेश्वेर मालदेव के पुत्र जयमेयू के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर का लगभग 870 ईस्वी में शुरू किया गया था. इसके करीब 30 साल 900 ईस्वी में इसका काम पूरा हुआ था."

"एक कहानी यह भी है कि दोनों ही राजाओं ने युद्ध में विजय के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया. इसलिए यह मंदिर विजय के प्रतीक के तौर पर भी देखा जाता है. इस मंदिर पर दो अलग-अलग शासकों की छाप है. शासकों के दो वंश का इतिहास इस मंदिर को देखने से मिलता है. वहां कई शैलचित्र और खुदाई के दौरान मूर्तियां भी बरामद की गई हैं." - हरि सिंह क्षत्री, पुरातत्व मार्गदर्शक, कोरबा

मंदिर का हर पत्थर है बेहद खास : पाली का शिव मंदिर आस्था के लिहाज से जितना महत्वपूर्ण है. उतना ही पुरातत्व के लिहाज से भी जिज्ञासा का केन्द्र है. मंदिर के अष्टकोणीय मण्डप पर ब्रम्ह्मा, श्रीकृष्ण, माता सरस्वती, महिषासुर मर्दिनी और गजलक्ष्मी का अंकन किया गया है. पाली के शिव मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से राष्ट्रीय धरोहर के तौर पर चिन्हित किया गया है.

"कोरबा से बिलासपुर कटघोरा मुख्य मार्ग पर नौकोनिहा तालाब के पश्चिम तट पर पुर्वाभिमुख नागर शैली में स्थित यह सप्तदेव शिव मंदिर है. मंदिर के जंघा भाग पर आठ भुजाओं वाले नृत्यरत भगवान शिव, चामुण्डा, सूर्य, त्रिपुरान्तकशिव और कार्तिकेय के अलावा एक वानर द्वारा स्त्री के गीले वस्त्र खींचना, स्त्री द्वारा मांग में सिंदूर भरना और दर्पण सुंदरी का अंकन मंदिर की विशेषता है." - हरि सिंह क्षत्री, पुरातत्व मार्गदर्शक, कोरबा

शिवरात्रि पर पाली महोत्सव का आयोजन : सावन के महीने में राज्य भर से भक्त यहां अपनी आस्था लेकर पहुंचते हैं. जबकि महाशिवरात्रि पर हर साल जिला प्रशासन द्वारा यहां पाली महोत्सव का आयोजन कराया जाता है. इसमें राज्य और राज्य के बाहर से भी कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है. पाली महोत्सव में स्थानीय कलाकारों को भी मंच प्रदान किया जाता है. बीते कुछ सालों से रायगढ़ के चक्रधर महोत्सव के तर्ज पर इसका आयोजन किया जा रहा है. पाली महोत्सव भी राज्य में अब काफी प्रचलित है.

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ऐतिहासिक धरोहर पाली का प्राचीन शिव मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

कोरबा : जिले के पाली का शिव मंदिर छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है. इस शिव मंदिर का निर्माण 1200 साल पहले हुआ था. जितना पुराना इस शिव मंदिर का इतिहास है, उतना ही अटूट यहां आने वाले शिव भक्तों की आस्था है. राज्य भर से लोग प्राचीन शिव मंदिर में दर्शन करने यहां आते हैं. भारतीय संस्कृति और यहां के राजा-महाराजाओं की गौरवशाली विरासत का ये प्राचीन शिव मंदिर जीता जागता प्रमाण है. खास तौर पर सावन के महीने में राज्य भर से भक्त यहां आते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं.

गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक : कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर पाली स्थित है. पाली का शिव मंदिर, यहां के शिव भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है. लोगों का मानना है कि यहां आने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. एक किवदंती के अनुसार मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं. शिवमंदिर के स्थापत्यकला के अनुसार, गर्भगृह में सिर्फ एक ही शिवलिंग होना चाहिए. ऐसे में विशेषज्ञ अनुमान यह है कि प्राचीन काल में युद्ध के समय दो मंदिर नष्ट हो गए होंगे. इसी वजह से तीन शिवलिंग एक ही मंदिर के गर्भगृह में रखा गया है.

पाली के शिव मंदिर का गौरवशाली इतिहास : आज करीब 1200 साल पहले 9वीं शताब्दी में बाणवंशीय राजा विक्रमादित्य द्वारा प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण कराया गया था.
यह राजा विक्रमादित्य की पूजा स्थली थी. इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है. जिसपर खूबसूरत मूर्ति कला का नायाब नमूना देखने को मिलता है.

राजा विक्रमादित्य ने कराया था मंदिर का निर्माण : जिले के पुरातत्व मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्री बताते हैं, "पत्थर पर उकेरी गई मूर्तियों का आर्किटेक्चर अबु पहाड़ियों के जय मंदिरों, सोहगपुर और खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर जैसा भी है. 9वीं शताब्दी में बाणवंशीय राजा विक्रमादित्य ने इसका निर्माण कराया. जबकि 11वीं शताब्दी में कलचुरी वंश के शासक जाज्वल्य देव प्रथम ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. विक्रमादित्य को महामंडलेश्वेर मालदेव के पुत्र जयमेयू के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर का लगभग 870 ईस्वी में शुरू किया गया था. इसके करीब 30 साल 900 ईस्वी में इसका काम पूरा हुआ था."

"एक कहानी यह भी है कि दोनों ही राजाओं ने युद्ध में विजय के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया. इसलिए यह मंदिर विजय के प्रतीक के तौर पर भी देखा जाता है. इस मंदिर पर दो अलग-अलग शासकों की छाप है. शासकों के दो वंश का इतिहास इस मंदिर को देखने से मिलता है. वहां कई शैलचित्र और खुदाई के दौरान मूर्तियां भी बरामद की गई हैं." - हरि सिंह क्षत्री, पुरातत्व मार्गदर्शक, कोरबा

मंदिर का हर पत्थर है बेहद खास : पाली का शिव मंदिर आस्था के लिहाज से जितना महत्वपूर्ण है. उतना ही पुरातत्व के लिहाज से भी जिज्ञासा का केन्द्र है. मंदिर के अष्टकोणीय मण्डप पर ब्रम्ह्मा, श्रीकृष्ण, माता सरस्वती, महिषासुर मर्दिनी और गजलक्ष्मी का अंकन किया गया है. पाली के शिव मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से राष्ट्रीय धरोहर के तौर पर चिन्हित किया गया है.

"कोरबा से बिलासपुर कटघोरा मुख्य मार्ग पर नौकोनिहा तालाब के पश्चिम तट पर पुर्वाभिमुख नागर शैली में स्थित यह सप्तदेव शिव मंदिर है. मंदिर के जंघा भाग पर आठ भुजाओं वाले नृत्यरत भगवान शिव, चामुण्डा, सूर्य, त्रिपुरान्तकशिव और कार्तिकेय के अलावा एक वानर द्वारा स्त्री के गीले वस्त्र खींचना, स्त्री द्वारा मांग में सिंदूर भरना और दर्पण सुंदरी का अंकन मंदिर की विशेषता है." - हरि सिंह क्षत्री, पुरातत्व मार्गदर्शक, कोरबा

शिवरात्रि पर पाली महोत्सव का आयोजन : सावन के महीने में राज्य भर से भक्त यहां अपनी आस्था लेकर पहुंचते हैं. जबकि महाशिवरात्रि पर हर साल जिला प्रशासन द्वारा यहां पाली महोत्सव का आयोजन कराया जाता है. इसमें राज्य और राज्य के बाहर से भी कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है. पाली महोत्सव में स्थानीय कलाकारों को भी मंच प्रदान किया जाता है. बीते कुछ सालों से रायगढ़ के चक्रधर महोत्सव के तर्ज पर इसका आयोजन किया जा रहा है. पाली महोत्सव भी राज्य में अब काफी प्रचलित है.

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Last Updated : Aug 18, 2024, 2:21 PM IST
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