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कोरबा में जिस बच्चे के दिल में था होल, उसे अमेरिकी दंपति ने लिया गोद - American couple adopted Korba child

कोरबा में जिस बच्चे के दिल में होल था, उस बच्चे को अमेरिकी दंपति ने गोद लिया है. पूरे रस्मों-रिवाज के साथ बच्चे को अमेरिकी दंपति को कोरबा के मातृछाया सेवा भारती संस्था ने सौंपा.

AMERICAN COUPLE ADOPTED KORBA CHILD
कोरबा के बच्चे को अमेरिकी दंपति ने लिया गोद
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 5, 2024, 7:39 PM IST

अमेरिकी दंपति ने कोरबा के बच्चे को लिया गोद

कोरबा: एक मासूम जिसे पैदा होते ही उसकी मां और परिवार ने त्याग दिया, जिसके दिल में 4 एमएम का छेद था. उस मासूम को शिशु मातृछाया ने सहारा दिया. मासूम का इलाज रायपुर के बड़े अस्पताल में कराया गया. फिलहाल शिशु स्वस्थ है. छोटी उम्र में ही जीवन के बड़े संघर्ष के बाद अब इस बच्चे को उसके माता-पिता मिल गए हैं. अमेरिका से आए दंपति ने इस बच्चे को गोद ले लिया है. मातृछाया में गोद भराई की रस्म धूमधाम से निभाई गई. इस बच्चे को विधि-विधान से अमेरिकन दंपति का सौंपा गया है, जिस बच्चे को उसके माता-पिता ने त्याग दिया था. अब वह अमेरिका में रहेगा.

मातृछाया की परंपरा और भारतीय संस्कृति से अभीभूत: दरअसल, मातृछाया सेवा भारती का एक प्रकल्प है. यहां ऐसे बच्चों को रखा जाता है, जिन्हें पैदा होते ही उनके माता-पिता त्याग देते हैं. जो कूड़े में, नाले में या मातृछाया के ही पालने में संस्था को मिल जाते हैं. यह संस्था भारत सरकार और स्थानीय महिला एवं बाल विकास विभाग से पंजीकृत होती है. ये संस्था सरकार की देखरेख में काम करती हैं. कोरबा के एक वर्ष 11 महीने के बालक को गोद लेने अमेरिकन दंपति पहुंचे थे. जो बीते कई सालों से किसी बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया का पालन कर रहे थे. लंबी वेटिंग के बाद उन्हें अवसर मिला. भारतीयों की संस्कृति को देखकर वह अभिभूत थे. उन्होंने कहा कि हमें भारतीय संस्कृति बेहद लगाव है, इसलिए हम एक भारतीय बच्चे को ही गोद लेना चाहते थे. हमारे स्वागत में यहां जो भी कार्यक्रम किया गया, उसे देखकर हम काफी अच्छा फील कर रहे हैं.

कारा के जरिए करना होता है ऑनलाइन: लाइफलाइन चिल्ड्रन सर्विस एजेंसी अधिकारी अलेक्स सैम कोरबा पहुंचे हुए थे. यह संस्था भारत सरकार के देखरेख में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को पूरा करती है. एलेक्स ने बताया कि सेंट्रल अडोप्ट रिसोर्स ऑथरिटी (CARA) के जरिए गोद लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है. विदेशी दंपति ने शिशु को गोद लेने के लिए लगभग 3 साल पहले आवेदन किया था. वह वेटिंग में थे, उन्हें हिंदुस्तानी बच्चों को ही गोद लेना था. इसके लिए अमेरिका और भारत के दूतावास के बीच चर्चा होती है. सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं.

सभी मापदंडो में खरे उतरने पर सौंपा जाता है बच्चा: इसके साथ ही स्थानीय कलेक्टर के भी आदेश की जरूरत पड़ती है. यह भी देखा जाता है कि दंपति बच्चे का पालन पोषण ठीक तरह से कर सकते हैं या नहीं. मापदंडों पर खरा उतरने के बाद ही बच्चे को गोद लेने की अनुमति मिलती है. गोद लेने के बाद भी 2 साल तक दंपति निगरानी में रहते हैं. हर 6 महीने में एक अधिकारी उनके घर का विजिट कर यह सुनिश्चित करते हैं कि गोद लिए गए बच्चे का पालन पोषण ठीक तरह से किया जा रहा है या नहीं. अक्सर हम देखते हैं कि विदेशी जोड़े हिंदुस्तानी बच्चों को गोद लेना चाहते हैं, जिसका कारण यह भी है कि यहां गोद लेने के लिए बच्चे उपलब्ध होते हैं और प्रक्रिया में दो से ढाई साल का समय जरूर लगता है, लेकिन यह बेहद सरल और सुगम है.

खुशी के साथ थोड़ा दुख भी : इस बारे में मातृछाया संस्था के सचिव सुनील जैन ने कहा कि, "यह हमारे लिए बेहद खुशी की बात है कि हमारे संस्था की ओर से जिस बच्चे का पालन पोषण किया गया है, जिस बच्चे के दिल में छेद था. इतनी विषम परिस्थितियों के बाद भी अब वह अमेरिका जैसे देश में जाकर रहेगा. जिन बच्चों को पैदा होते ही छोड़ दिया जाता है, उन्हें हम रखते हैं. हमारे संस्था में काम करने वाली यशोदा मांऐं बच्चों का पालन-पोषण करती हैं. वह बच्चों को सिर्फ दूध नहीं पिलाती बाकी सभी तरह के देखभाल वह करते हैं. एक तरफ हमें खुशी है कि बच्चा अमेरिका जा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ यह दुख भी है कि जिस बच्चे का हमने 1 साल 11 महीने तक पालन पोषण किया. अब वह हमारे परिवार से दूर हो जाएगा. एक सदस्य कम हो जाएगा.

अमेरिकी दंपति ने कोरबा के बच्चे को लिया गोद

कोरबा: एक मासूम जिसे पैदा होते ही उसकी मां और परिवार ने त्याग दिया, जिसके दिल में 4 एमएम का छेद था. उस मासूम को शिशु मातृछाया ने सहारा दिया. मासूम का इलाज रायपुर के बड़े अस्पताल में कराया गया. फिलहाल शिशु स्वस्थ है. छोटी उम्र में ही जीवन के बड़े संघर्ष के बाद अब इस बच्चे को उसके माता-पिता मिल गए हैं. अमेरिका से आए दंपति ने इस बच्चे को गोद ले लिया है. मातृछाया में गोद भराई की रस्म धूमधाम से निभाई गई. इस बच्चे को विधि-विधान से अमेरिकन दंपति का सौंपा गया है, जिस बच्चे को उसके माता-पिता ने त्याग दिया था. अब वह अमेरिका में रहेगा.

मातृछाया की परंपरा और भारतीय संस्कृति से अभीभूत: दरअसल, मातृछाया सेवा भारती का एक प्रकल्प है. यहां ऐसे बच्चों को रखा जाता है, जिन्हें पैदा होते ही उनके माता-पिता त्याग देते हैं. जो कूड़े में, नाले में या मातृछाया के ही पालने में संस्था को मिल जाते हैं. यह संस्था भारत सरकार और स्थानीय महिला एवं बाल विकास विभाग से पंजीकृत होती है. ये संस्था सरकार की देखरेख में काम करती हैं. कोरबा के एक वर्ष 11 महीने के बालक को गोद लेने अमेरिकन दंपति पहुंचे थे. जो बीते कई सालों से किसी बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया का पालन कर रहे थे. लंबी वेटिंग के बाद उन्हें अवसर मिला. भारतीयों की संस्कृति को देखकर वह अभिभूत थे. उन्होंने कहा कि हमें भारतीय संस्कृति बेहद लगाव है, इसलिए हम एक भारतीय बच्चे को ही गोद लेना चाहते थे. हमारे स्वागत में यहां जो भी कार्यक्रम किया गया, उसे देखकर हम काफी अच्छा फील कर रहे हैं.

कारा के जरिए करना होता है ऑनलाइन: लाइफलाइन चिल्ड्रन सर्विस एजेंसी अधिकारी अलेक्स सैम कोरबा पहुंचे हुए थे. यह संस्था भारत सरकार के देखरेख में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को पूरा करती है. एलेक्स ने बताया कि सेंट्रल अडोप्ट रिसोर्स ऑथरिटी (CARA) के जरिए गोद लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है. विदेशी दंपति ने शिशु को गोद लेने के लिए लगभग 3 साल पहले आवेदन किया था. वह वेटिंग में थे, उन्हें हिंदुस्तानी बच्चों को ही गोद लेना था. इसके लिए अमेरिका और भारत के दूतावास के बीच चर्चा होती है. सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं.

सभी मापदंडो में खरे उतरने पर सौंपा जाता है बच्चा: इसके साथ ही स्थानीय कलेक्टर के भी आदेश की जरूरत पड़ती है. यह भी देखा जाता है कि दंपति बच्चे का पालन पोषण ठीक तरह से कर सकते हैं या नहीं. मापदंडों पर खरा उतरने के बाद ही बच्चे को गोद लेने की अनुमति मिलती है. गोद लेने के बाद भी 2 साल तक दंपति निगरानी में रहते हैं. हर 6 महीने में एक अधिकारी उनके घर का विजिट कर यह सुनिश्चित करते हैं कि गोद लिए गए बच्चे का पालन पोषण ठीक तरह से किया जा रहा है या नहीं. अक्सर हम देखते हैं कि विदेशी जोड़े हिंदुस्तानी बच्चों को गोद लेना चाहते हैं, जिसका कारण यह भी है कि यहां गोद लेने के लिए बच्चे उपलब्ध होते हैं और प्रक्रिया में दो से ढाई साल का समय जरूर लगता है, लेकिन यह बेहद सरल और सुगम है.

खुशी के साथ थोड़ा दुख भी : इस बारे में मातृछाया संस्था के सचिव सुनील जैन ने कहा कि, "यह हमारे लिए बेहद खुशी की बात है कि हमारे संस्था की ओर से जिस बच्चे का पालन पोषण किया गया है, जिस बच्चे के दिल में छेद था. इतनी विषम परिस्थितियों के बाद भी अब वह अमेरिका जैसे देश में जाकर रहेगा. जिन बच्चों को पैदा होते ही छोड़ दिया जाता है, उन्हें हम रखते हैं. हमारे संस्था में काम करने वाली यशोदा मांऐं बच्चों का पालन-पोषण करती हैं. वह बच्चों को सिर्फ दूध नहीं पिलाती बाकी सभी तरह के देखभाल वह करते हैं. एक तरफ हमें खुशी है कि बच्चा अमेरिका जा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ यह दुख भी है कि जिस बच्चे का हमने 1 साल 11 महीने तक पालन पोषण किया. अब वह हमारे परिवार से दूर हो जाएगा. एक सदस्य कम हो जाएगा.

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