अम्बिकापुर: अम्बिकापुर नगर निगम पिछले 9 सालों से जीरो वेस्ट की थीम पर काम कर रहा है. जिले के एसएलआरएम सेंटरों की स्थापना के भी 10 साल पूरे हो चुके हैं. समूह की महिलाएं 10वां स्थापना दिवस सेलिब्रेट कर रही हैं. जीरो वेस्ट थीम का लक्ष्य एक भी कचरा वेस्ट नहीं करना है. इसी से ये महिलाएं हर माह 9 लाख तक की कमाई कर रही हैं. जीरो वेस्ट थीम पर अम्बिकापुर की स्वच्छता दीदियों ने ऐसा काम किया है जिसे जान हर कोई कहेगा कि 'आम के आम और गुठलियों के दाम'.
साल 2015 में हुई थी शुरुआत: दरअसल साल 2015 में सरगुजा के अम्बिकापुर नगर निगम में मॉडल के रूप में पायलट प्रोजेक्ट स्वच्छ भारत मिशन का काम शुरू किया गया. महिला समूह की ओर से बनाए गये और सेल्फ सस्टेनेबल ग्रुप के माध्यम से डोर टू डोर कचरा कलेक्शन शुरू किया गया. कचरे को छांटने और उसे प्रोसेस करने का काम शुरू हुआ. धीरे-धीरे समय बीतता गया. प्रयास परवान चढ़ने लगा. नतीजा यह हुआ कि ये मॉडल पूरे प्रदेश में अपनाया गया. फिर देश भर के सैकड़ों निकायों ने इस मॉडल को देखा, सीखा और अपनाया.
अमबिकापुर में 20 एसएलआरएम सेंटरों है. पूरे जिले में हम स्वच्छता दीदियों के पास कुल 150 हाथ और ई रिक्शा है. हर घर से कलेक्टर किए कचरे को हम 4 भाग में बांटते हैं. सूखा, गीला, सेनेटरी और खतरनाक कचरा. हर दिन 50 से 51 टन कचरा कलेक्ट करके हम उसकी प्रोसेसिंग करते हैं. -ज्ञान लता कुजूर, स्वच्छता दीदी
हर चरण में होता है कचरे का उपयोग: मौजूदा समय में अम्बिकापुर शहर जीरो वेस्ट प्रोड्यूस करता है क्योंकि कचरे का हर चरण में उपयोग किया जा रहा है. अलग-अलग महिला समूहों को मिलाकर एक सिटी लेवल फेडरेशन बनाया गया है. इस फेडरेशन में 480 महिलाएं काम करती हैं. इनमें से 450 दीदी घरों से कचरा कलेक्शन का काम करती हैं. बाकी की 30 दीदियों का काम डिपो में होता है. इन दीदियों के पास 150 हाथ और ई रिक्शा है, जिनसे ये घर-घर जाकर कचरा कलेक्ट करती हैं. घरों से कचरे को 4 अलग भाग में लिया जाता है. सूखा, गीला, सेनेटरी और खतरनाक कचरा.
156 प्रकार का कचरों की होती है प्रोसेसिंग: इसके बाद ये कचरा शहर के 20 एसएलआरएम सेंटरों में लाया जाता है. यहां इन्हें छांट कर अलग किया जाता है. छंटा हुआ कचरा सेनेटरी पार्क स्थित सेग्रेगेशन सेंटर में भेजा जाता है. यहां पर कचरों की विभिन्न स्तरों में प्रोसेसिंग की जाती है. यहां 156 प्रकार के अलग-अलग कचरे डिसाइड किए जाते हैं. ज्यादातर कचरा सीधे ही बेच दिया जाता है, लेकिन प्लास्टिक, सी एंड डी वेस्ट, मेडिकल वेस्ट को प्रोसेस किया जाता है. प्लास्टिक का दाना बनाकर उसे रीजयूज किया जा रहा है. सी एंड डी वेस्ट की प्रोसेस यूनिट लगाई गई है, जिसमे इसका भी उपयोग किया जा रहा है. मेडिकल वेस्ट और बाकी प्रोसेसिंग से बचने वाला वेस्ट इंसीनरेटर में जला दिया जाता है.
कचरा कलेक्ट करके शहर के 20 एसएलआरएम सेंटरों में लाया जाता है. यहां करचा छांट कर सेनेटरी पार्क स्थित सेग्रेगेशन सेंटर में भेजा जाता है. यहां पर कचरों की प्रोसेसिंग की जाती है. यहां 156 प्रकार के अलग-अलग कचरे डिसाइड किए जाते हैं. ज्यादातर कचरा सीधे ही बेच दिया जाता है, लेकिन प्लास्टिक, सी एंड डी वेस्ट, मेडिकल वेस्ट को प्रोसेस किया जाता है. प्लास्टिक का दाना बनाकर उसे रीजयूज किया जा रहा है. सी एंड डी वेस्ट की प्रोसेस यूनिट लगाई गई है, जिसमे इसका भी उपयोग किया जा रहा है. मेडिकल वेस्ट और बाकी प्रोसेसिंग से बचने वाला वेस्ट इंसीनरेटर में जला दिया जाता है. -शशि सिन्हा, डायरेक्टर, सिटी लेबल फेडरेशन
हर माह 9 लाख की आमदनी: शहर से मिलने वाले गीले कचरे से खाद बना दिया जाता है. गाय और गोबर से गोकास्ट जलावन बनाकर बेचा जाता है. औसतन शहर से निकलने वाले लगभग कचरे का रीजयूज कर लिया जाता है. हालांकि हानिकारक जैसे मेडिकल वेस्ट ही इंसीनरेटर में जलाया जाता है. जीरो वेस्ट का एक बेहतर उदाहरण अम्बिकापुर ने पेश किया है. साथ ही यहां कलेक्ट किए कचरे से हर माह स्वच्छता दीदिया 9 लाख रुपए की आमदनी करती है.