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हाईकोर्ट ने प्राथमिक स्कूलों के विलय की सरकार की नीति को सही माना, विरोधी याचिकाएं कीं खारिज - Allahabad High Court

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 20, 2024, 9:04 PM IST

कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि वह एक कमेटी गठित कर अध्यापकों की समस्याओं का निस्तारण करें. ताकि प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति पाने के किसी के वैधानिक अधिकार का हनन न हो.

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स्कूल में प्रार्थना करते बच्चे. फाइल फोटो (क्रेडिट; Etv Bharat Archive)

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ही परिसर में चल रहे प्राथमिक और उच्च प्राथमिक परिषदीय विद्यालयों का संविलियन करने की प्रदेश सरकार की नीति को सही ठहराया है. कोर्ट ने संविलियन करने के लिए जारी शासनादेश को चुनौती देने वाली दर्जनों याचिकाएं खारिज कर दी हैं.

अदालत ने कहा कि यह सरकार का नीतिगत निर्णय है. याचिकाकर्ता ऐसा कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाए कि यह योजना किसी प्रकार से छात्रों के लिए नुकसानदेह है. योजना पिछले 5 वर्षों से चल रही है. हालांकि कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि वह एक कमेटी गठित कर अध्यापकों की समस्याओं का निस्तारण करें. ताकि प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति पाने के किसी के वैधानिक अधिकार का हनन न हो.

हिना खालिक सहित दर्जनों याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया है. याचिकाओं में 22 नवंबर 2018 को जारी शासनादेश को चुनौती दी गई थी. इस शासनादेश में सरकार ने एक ही परिसर में संचालित प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के संविलियन का निर्णय लिया.

यह व्यवस्था दी कि इन दोनों विद्यालयों का वरिष्ठतम अध्यापक प्रधानाध्यापक होगा तथा सभी वित्तीय और प्रशासनिक कार्य वही संचालित करेगा. दोनों विद्यालय एक इकाई की तरह होंगे.

याचियों का कहना था कि इस शासनादेश से उन अध्यापकों का भविष्य प्रभावित होगा जो प्राथमिक या उच्च प्राथमिक में प्रधानाध्यापक होने वाले हैं. जो पहले से प्रधानाध्यापक थे और अब जूनियर हो गए. यह भी कहा गया कि विद्यालयों को एकीकृत करने का कोई प्रावधान उपलब्ध नहीं है. मगर ऐसा कोई प्रावधान भी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सका जिसमें विद्यालयों को एकीकृत करने पर रोक हो.

कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया जा सका कि यह निर्णय सरकार ने बिना किसी आधार के लिया है और यह छात्रों के हित में नहीं है. योजना पिछले 5 वर्षों से चल रही है और ऐसी कोई शिकायत नहीं आई कि किसी वरिष्ठ अध्यापक को चार्ज नहीं दिया गया.

कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय छात्रों के हित में है और इससे उच्च प्राथमिक के अध्यापकों के अनुभव का लाभ सभी छात्रों को मिल सकेगा. कोर्ट ने कहा कि कुछ अध्यापकों का भविष्य प्रभावित होने की संभावना है. मगर मात्र इस एक संभावना के आधार पर नीतिगत निर्णय को रद्द नहीं किया जा सकता है.

विशेष करके जब यह छात्रों के हित में हो. कोर्ट ने प्रदेश सरकार को एक कमेटी गठित कर शासनादेश का सही तरीके से अनुपालन करने का निर्देश दिया है. विशेष कर पैरा 10 का जिसमें कि कहा गया है कि संविलियन के उपरांत पूर्व से सृजित अध्यापक और प्रधानाध्यापक के पद यथावत बने रहेंगे.

कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि एक कमेटी गठित करे जो अध्यापकों की वास्तविक समस्याओं पर सुनवाई कर तथा सभी पक्षों से बात कर उसका समाधान करें और जरूरत हो तो नीति में उसके अनुसार परिवर्तन करें. कोर्ट ने यह कार्य वर्ष 2025 / 26 का सत्र शुरू होने से पूर्व करने का निर्देश दिया है.

ये भी पढ़ेंः अब्बास अंसारी गैंग के नवनीत सचान के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट की FIR रद्द

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ही परिसर में चल रहे प्राथमिक और उच्च प्राथमिक परिषदीय विद्यालयों का संविलियन करने की प्रदेश सरकार की नीति को सही ठहराया है. कोर्ट ने संविलियन करने के लिए जारी शासनादेश को चुनौती देने वाली दर्जनों याचिकाएं खारिज कर दी हैं.

अदालत ने कहा कि यह सरकार का नीतिगत निर्णय है. याचिकाकर्ता ऐसा कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाए कि यह योजना किसी प्रकार से छात्रों के लिए नुकसानदेह है. योजना पिछले 5 वर्षों से चल रही है. हालांकि कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि वह एक कमेटी गठित कर अध्यापकों की समस्याओं का निस्तारण करें. ताकि प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति पाने के किसी के वैधानिक अधिकार का हनन न हो.

हिना खालिक सहित दर्जनों याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया है. याचिकाओं में 22 नवंबर 2018 को जारी शासनादेश को चुनौती दी गई थी. इस शासनादेश में सरकार ने एक ही परिसर में संचालित प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के संविलियन का निर्णय लिया.

यह व्यवस्था दी कि इन दोनों विद्यालयों का वरिष्ठतम अध्यापक प्रधानाध्यापक होगा तथा सभी वित्तीय और प्रशासनिक कार्य वही संचालित करेगा. दोनों विद्यालय एक इकाई की तरह होंगे.

याचियों का कहना था कि इस शासनादेश से उन अध्यापकों का भविष्य प्रभावित होगा जो प्राथमिक या उच्च प्राथमिक में प्रधानाध्यापक होने वाले हैं. जो पहले से प्रधानाध्यापक थे और अब जूनियर हो गए. यह भी कहा गया कि विद्यालयों को एकीकृत करने का कोई प्रावधान उपलब्ध नहीं है. मगर ऐसा कोई प्रावधान भी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सका जिसमें विद्यालयों को एकीकृत करने पर रोक हो.

कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया जा सका कि यह निर्णय सरकार ने बिना किसी आधार के लिया है और यह छात्रों के हित में नहीं है. योजना पिछले 5 वर्षों से चल रही है और ऐसी कोई शिकायत नहीं आई कि किसी वरिष्ठ अध्यापक को चार्ज नहीं दिया गया.

कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय छात्रों के हित में है और इससे उच्च प्राथमिक के अध्यापकों के अनुभव का लाभ सभी छात्रों को मिल सकेगा. कोर्ट ने कहा कि कुछ अध्यापकों का भविष्य प्रभावित होने की संभावना है. मगर मात्र इस एक संभावना के आधार पर नीतिगत निर्णय को रद्द नहीं किया जा सकता है.

विशेष करके जब यह छात्रों के हित में हो. कोर्ट ने प्रदेश सरकार को एक कमेटी गठित कर शासनादेश का सही तरीके से अनुपालन करने का निर्देश दिया है. विशेष कर पैरा 10 का जिसमें कि कहा गया है कि संविलियन के उपरांत पूर्व से सृजित अध्यापक और प्रधानाध्यापक के पद यथावत बने रहेंगे.

कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि एक कमेटी गठित करे जो अध्यापकों की वास्तविक समस्याओं पर सुनवाई कर तथा सभी पक्षों से बात कर उसका समाधान करें और जरूरत हो तो नीति में उसके अनुसार परिवर्तन करें. कोर्ट ने यह कार्य वर्ष 2025 / 26 का सत्र शुरू होने से पूर्व करने का निर्देश दिया है.

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