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हाईकोर्ट ने विचारण न्यायालय को लोअर कोर्ट कहने के चलन को बताया अनुचित - इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि विचारण न्यायालय को लोअर कोर्ट कहना उचित नहीं है. कहा कि लोअर कोर्ट के बजाय ट्रायल कोर्ट कहा जा सकता है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 14, 2024, 10:17 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालय या विचारण न्यायालय को लोअर कोर्ट अथवा अधीनस्थ न्यायालय कहे जाने का चलन उचित नहीं है. कोर्ट ने हाईकोर्ट के महानिबंधक को यह निर्देश दिया कि वह इस संबंध में एक परिपत्र जारी कर हाईकोर्ट कार्यालय को निर्देशित करें कि सेशन कोर्ट के संबंध में लोअर कोर्ट के बजाय ट्रायल कोर्ट का संबोधन करें. मेरठ के शमशाद अली की ओर से दाखिल अपराधिक पुनरीक्षण अर्जी पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति समित गोपाल ने यह आदेश दिया.

दरअसल, उक्त मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने हाईकोर्ट कार्यालय को 27 अक्टूबर 2023 को निर्देश दिया था कि उक्त मामले से संबंधित ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड मंगाया जाए. इस पर हाईकोर्ट कार्यालय ने 10 दिसंबर 2023 को अपनी रिपोर्ट में कहा कि लोअर कोर्ट का रिकॉर्ड अभी तक नहीं आया है. इस पर कोर्ट ने ऑफिस को रिमाइंडर भेजने का निर्देश दिया. मामले की सुनवाई से पूर्व 12 फरवरी को हाईकोर्ट कार्यालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि लोअर कोर्ट का रिकॉर्ड आ गया है.

कोर्ट का कहना था कि दो मौके पर जब कार्यालय को ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड मनाने का निर्देश दिया तो दोनों बार कार्यालय द्वारा दी गई रिपोर्ट में ट्रायल कोर्ट को लोअर कोर्ट कह कर संबोधित किया गया. ट्रायल कोर्ट को लोअर कोर्ट अथवा अधीनस्थ न्यायालय से संबोधित करना उचित नहीं है. कोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालय में दाखिल किसी भी मामले अपील, रिवीजन आदि के संबंध में तदानुसार ही संबोधन किया जाना चाहिए. कोर्ट ने महानिबंधक को इस संबंध में परिपत्र जारी करने का निर्देश दिया है कि लोअर कोर्ट के बजाय ट्रायल कोर्ट का संबोधन किया जाए. उपरोक्त आपराधिक पुनरीक्षण में विपक्षी राकेश कुमार की ओर से किसी अधिवक्ता के उपस्थित न होने पर अदालत ने उसके विरुद्ध जमानती वारंट जारी किया.

यह भी पढ़ें: चेक बाउंस मामला: हाईकोर्ट का निर्देश, कंपनी दिवालिया होने पर भी निर्देशक अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालय या विचारण न्यायालय को लोअर कोर्ट अथवा अधीनस्थ न्यायालय कहे जाने का चलन उचित नहीं है. कोर्ट ने हाईकोर्ट के महानिबंधक को यह निर्देश दिया कि वह इस संबंध में एक परिपत्र जारी कर हाईकोर्ट कार्यालय को निर्देशित करें कि सेशन कोर्ट के संबंध में लोअर कोर्ट के बजाय ट्रायल कोर्ट का संबोधन करें. मेरठ के शमशाद अली की ओर से दाखिल अपराधिक पुनरीक्षण अर्जी पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति समित गोपाल ने यह आदेश दिया.

दरअसल, उक्त मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने हाईकोर्ट कार्यालय को 27 अक्टूबर 2023 को निर्देश दिया था कि उक्त मामले से संबंधित ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड मंगाया जाए. इस पर हाईकोर्ट कार्यालय ने 10 दिसंबर 2023 को अपनी रिपोर्ट में कहा कि लोअर कोर्ट का रिकॉर्ड अभी तक नहीं आया है. इस पर कोर्ट ने ऑफिस को रिमाइंडर भेजने का निर्देश दिया. मामले की सुनवाई से पूर्व 12 फरवरी को हाईकोर्ट कार्यालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि लोअर कोर्ट का रिकॉर्ड आ गया है.

कोर्ट का कहना था कि दो मौके पर जब कार्यालय को ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड मनाने का निर्देश दिया तो दोनों बार कार्यालय द्वारा दी गई रिपोर्ट में ट्रायल कोर्ट को लोअर कोर्ट कह कर संबोधित किया गया. ट्रायल कोर्ट को लोअर कोर्ट अथवा अधीनस्थ न्यायालय से संबोधित करना उचित नहीं है. कोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालय में दाखिल किसी भी मामले अपील, रिवीजन आदि के संबंध में तदानुसार ही संबोधन किया जाना चाहिए. कोर्ट ने महानिबंधक को इस संबंध में परिपत्र जारी करने का निर्देश दिया है कि लोअर कोर्ट के बजाय ट्रायल कोर्ट का संबोधन किया जाए. उपरोक्त आपराधिक पुनरीक्षण में विपक्षी राकेश कुमार की ओर से किसी अधिवक्ता के उपस्थित न होने पर अदालत ने उसके विरुद्ध जमानती वारंट जारी किया.

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