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हाईकोर्ट ने निलंबन या बर्खास्तगी की कार्रवाई किए बिना वेतन रोकने का आदेश किया रद्द - High court news

जौनपुर के केशवनाथ सीनियर बेसिक स्कूल, होरैया, राम नगर विधमौवा में सहायक अध्यापक चयन मामले में कोर्ट ने वेतन रोकने के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि प्रतिकूल आदेश होने से पहले किसी कर्मचारी का वेतन नहीं रोका जा सकता है. Allahabad High Court Order

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 19, 2024, 9:38 PM IST

ALLAHABAD HIGH COURT ORDER
ALLAHABAD HIGH COURT ORDER (Photo Credit-Etv Bharat)

प्रयागराज : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कर्मचारी के खिलाफ बिना किसी अनुशासनात्मक कार्यवाही के वेतन रोकने के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल नियमावली 1978 के अनुसार प्रतिकूल कार्रवाई या सेवा समाप्ति का आदेश जब तक जारी नहीं होता है, तब तक कर्मचारी सेवा में माना जाएगा. साथ ही वह वेतन पाने का हकदार होगा. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का वेतन तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक कि उन्हें सेवा से निलंबित या बर्खास्त नहीं कर दिया जाता. यह आदेश संजय कुमार सिंह और तीन अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने दिया है.

याचिगण जौनपुर के केशवनाथ सीनियर बेसिक स्कूल, होरैया, राम नगर विधमौवा में सहायक अध्यापक चयनित हुए थे. चयन समिति ने उनके चयन की संस्तुति की थी. 21अगस्त 2003 बीएसए ने सहायक अध्यापक के पद पर चयन को अनुमोदन प्रदान किया. याचिकाकर्ताओं ने पदभार ग्रहण कर लिया और उन्हें नियमित आधार पर वेतन दिया जाने लगा. इस बीच 2008 में एक शिकायत पर की गई जांच में याचियों और व अधिकारियों की मिलीभगत से नियुक्ति पाने का आरोप लगाते हुए सभी का वेतन रोक दिया गया. उनको पदों पर काम करने से भी रोक दिया गया. जांच रिपोर्ट के आधार पर याचियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और बाद में आरोप पत्र जारी किए गए. वेतन की कटौती के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई.

कोर्ट में याची अधिवक्ता ने दलील दी कि नियुक्तियों को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, जौनपुर ने अनुमोदित किया था. नियुक्ति में कोई अनियमितता साबित नहीं की जा सकी है. दूसरी ओर परिषद और राज्य सरकार के वकीलों का कहना था कि याचिकाकर्ताओं को उनके पदों पर नियुक्त करते समय उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल (जूनियर हाई स्कूल) (शिक्षकों की भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम 1978 के विशिष्ट प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था. ऐसे में याचियों की नियुक्ति अवैध थी। इसलिए उनका वेतन रोकना उचित है.

सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं पर राज्य प्राधिकारियों के साथ मिलीभगत करने का सिर्फ आरोप लगाया गया है. इसे साबित करने के लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया था. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति को अवैध नहीं कहा जा सकता, क्योंकि चयन साक्षात्कार जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के नामित व्यक्ति की उपस्थिति में किए गए थे. यह कहा गया कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की संतुष्टि के बाद ही याचिकाकर्ताओं को 21अगस्त 2003 को स्वीकृति दी गई थी.

कोर्ट ने कहा कि याचियों के खिलाफ आज तक कोई सबूत पेश नहीं किया है. जिससे पता चले कि 24 मार्च 2008 की रिपोर्ट के अनुसार याचियों के खिलाफ किसी तरह की प्रतिकूल कार्रवाई की गई थी या नहीं. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने याचियों की नियुक्ति देने के आदेश को भी वापस नहीं लिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में अनुशासनात्मक जांच किए बिना सेवा समाप्ति नहीं की जा सकती. कोर्ट ने राज्य सरकार और परिषद् को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं को वेतन का बकाया तथा सभी परिणामी लाभ प्रदान करें, जिनके वे हकदार हैं.

यह भी पढ़ें : याचिकाओं में समय से जवाब दाखिल नहीं कर रहे राज्य के अधिकारी, हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी - High Court Order

यह भी पढ़ें : हत्या के जुर्म में सजा काटने वाले 41 साल बाद हुए बरी, हाईकोर्ट ने कहा- मामला गैर इरादतन हत्या का - Court acquitted four accused

प्रयागराज : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कर्मचारी के खिलाफ बिना किसी अनुशासनात्मक कार्यवाही के वेतन रोकने के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल नियमावली 1978 के अनुसार प्रतिकूल कार्रवाई या सेवा समाप्ति का आदेश जब तक जारी नहीं होता है, तब तक कर्मचारी सेवा में माना जाएगा. साथ ही वह वेतन पाने का हकदार होगा. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का वेतन तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक कि उन्हें सेवा से निलंबित या बर्खास्त नहीं कर दिया जाता. यह आदेश संजय कुमार सिंह और तीन अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने दिया है.

याचिगण जौनपुर के केशवनाथ सीनियर बेसिक स्कूल, होरैया, राम नगर विधमौवा में सहायक अध्यापक चयनित हुए थे. चयन समिति ने उनके चयन की संस्तुति की थी. 21अगस्त 2003 बीएसए ने सहायक अध्यापक के पद पर चयन को अनुमोदन प्रदान किया. याचिकाकर्ताओं ने पदभार ग्रहण कर लिया और उन्हें नियमित आधार पर वेतन दिया जाने लगा. इस बीच 2008 में एक शिकायत पर की गई जांच में याचियों और व अधिकारियों की मिलीभगत से नियुक्ति पाने का आरोप लगाते हुए सभी का वेतन रोक दिया गया. उनको पदों पर काम करने से भी रोक दिया गया. जांच रिपोर्ट के आधार पर याचियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और बाद में आरोप पत्र जारी किए गए. वेतन की कटौती के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई.

कोर्ट में याची अधिवक्ता ने दलील दी कि नियुक्तियों को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, जौनपुर ने अनुमोदित किया था. नियुक्ति में कोई अनियमितता साबित नहीं की जा सकी है. दूसरी ओर परिषद और राज्य सरकार के वकीलों का कहना था कि याचिकाकर्ताओं को उनके पदों पर नियुक्त करते समय उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल (जूनियर हाई स्कूल) (शिक्षकों की भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम 1978 के विशिष्ट प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था. ऐसे में याचियों की नियुक्ति अवैध थी। इसलिए उनका वेतन रोकना उचित है.

सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं पर राज्य प्राधिकारियों के साथ मिलीभगत करने का सिर्फ आरोप लगाया गया है. इसे साबित करने के लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया था. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति को अवैध नहीं कहा जा सकता, क्योंकि चयन साक्षात्कार जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के नामित व्यक्ति की उपस्थिति में किए गए थे. यह कहा गया कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की संतुष्टि के बाद ही याचिकाकर्ताओं को 21अगस्त 2003 को स्वीकृति दी गई थी.

कोर्ट ने कहा कि याचियों के खिलाफ आज तक कोई सबूत पेश नहीं किया है. जिससे पता चले कि 24 मार्च 2008 की रिपोर्ट के अनुसार याचियों के खिलाफ किसी तरह की प्रतिकूल कार्रवाई की गई थी या नहीं. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने याचियों की नियुक्ति देने के आदेश को भी वापस नहीं लिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में अनुशासनात्मक जांच किए बिना सेवा समाप्ति नहीं की जा सकती. कोर्ट ने राज्य सरकार और परिषद् को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं को वेतन का बकाया तथा सभी परिणामी लाभ प्रदान करें, जिनके वे हकदार हैं.

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