प्रयागराजः हाईकोर्ट ने मैनपुरी में सिविल जज जूनियर डिवीजन और फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसलों पर आश्चर्य जताते हुए सुझाव दिया कि दोनों न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण की आवश्यकता है. यह टिप्पणी न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र ने शैलेंद्र उर्फ शंकर वर्मा द्वारा विवादित संपत्ति मामले के संबंध में दाखिल दूसरी अपील पर सुनवाई करते हुए की.
हाईकोर्ट में दीवानी मुकदमे में मैनपुरी सिविल कोर्ट के फैसलों की समीक्षा की. हाईकोर्ट ने सिविल जज जूनियर डिवीजन द्वारा प्रतिवादों को ठीक ढंग समझने के तरीके पर स्पष्ट रूप से समझ की कमी देखी. साथ ही कहा कि यह आश्चर्यजनक था कि बचाव पक्ष ने दो गवाह पेश किए. लेकिन उनकी गवाही पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया गया, जो परीक्षण प्रक्रियाओं में संभावित चूक का संकेत देता है.
कोर्ट ने पाया कि दीवानी अदालत के फैसले में न तो वादी के दावे और न ही प्रतिवादों को ठीक से संबोधित किया गया, जिससे निष्कर्ष निरर्थक प्रतीत होते हैं. कोर्ट ने कहा कि फैसले के अनुसार प्रस्तुत तर्कों पर उचित विचार किए बिना प्रतिवादी के मुकदमे को खारिज कर दिया गया.
फास्ट ट्रैक कोर्ट कक्ष संख्या दो के पीठासीन अधिकारी का प्रदर्शन भी उतना ही आश्चर्यजनक था, जो कार्यवाही को सही ढंग से समझने में विफल रहे. हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ऐसा लगता है कि दोनों अदालत दीवानी न्यायालयों के रूप में अपने कर्तव्यों को संपादित करने में विफल रही हैं. उचित कारण के बिना केवल निर्णय लिखने की औपचारिकताएं पूरी कर रही हैं. हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ आगे की सुनवाई के लिए दूसरी अपील स्वीकार कर ली है और विपक्षियों को नोटिस जारी किया है.
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