अलीगढ़: मुस्लिम विश्वविद्यालय की तालीम और अलीगढ़ के तालों के साथ अब देश विदेश में अलीगढ़ के कारीगरों द्वारा तैयार पीतल के शंख की आवाज भी गूंज रही है. शंख बनाने वाले शिल्पकार का दावा है कि भारत में वह इकलौते ऐसे शिल्पकार हैं जो पीतल के बड़े शंख बनाते हैं. शिल्पकार की मानें तो पीतल के शंख बनाने के पीछे एक बड़ी कहानी है. पीतल के शंख बनाने में उन्होंने महारथ हासिल की है. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उनको सम्मानित किया.
पीतल शिल्पकारों की अनूठी कारीगरी ने एक बार फिर अपनी छाप छोड़ी है. महाकुंभ 2025 में अलीगढ़ के शंखों की गूंज सुनाई देगी. शहर के शिल्पकार सत्यप्रकाश प्रजापति ने पीतल के ऐसे शंख तैयार किए हैं. ये शंख पूरी तरह से हस्तशिल्प से तैयार किए गए हैं. इन पर भगवान के चित्रों की नक्काशी की गई है.
महाकुंभ से 400 शंखों का ऑर्डर : सत्यप्रकाश को महाकुंभ के लिए अब तक 400 शंखों का ऑर्डर मिल चुका है. इन शंखों को तैयार करने की प्रक्रिया एक लंबी साधना जैसी है. सत्यप्रकाश बताते हैं कि पीतल के शंख बनाने का विचार उन्हें वर्ष 2012 में आया था. इसके बाद उन्होंने इस विचार को साकार करने के लिए लगभग पांच साल तक लगातार मेहनत की. उनके घर पर कारीगर पीतल के इन अनोखे शंखों पर नक्काशी का काम करते हैं. इन शंखों की खासियत यह है कि इनमें धार्मिक भावनाओं को संजोने के लिए भगवान की प्रतिमाओं को भी उकेरा गया है.
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चार साल की तपस्या : सत्यप्रकाश ने बताया कि उन्होंने शंख बनाने की प्रक्रिया पर दिन-रात काम किया. सबसे पहले उन्होंने शंख का प्रारूप तैयार किया और फिर उसे मिट्टी से ढालने की कोशिश की. यह आसान काम नहीं था. पीतल की संरचना और उसकी गूंज को संतुलित करने में चार साल लग गए. अंततः 2012 में उन्होंने बाजार में अपना पहला बजने वाला शंख पेश किया. शुरुआत में इस शंख में कई सुधार किए गए, और धीरे-धीरे यह ग्राहकों की पसंद बन गया.
सत्यप्रकाश के बेटे रवि प्रकाश बताते हैं कि यह हमारे पिता की मेहनत और तपस्या का नतीजा है. उन्होंने अपने गुरु की बात को दिल से लिया और इस शंख में आवाज लाने के लिए 5 साल तक लगातार काम किया. यह उनके समर्पण का परिणाम है, कि आज यह शंख पूरे देश और विदेश में प्रसिद्ध है.
कैसे बनता है पीतल का शंख : पीतल के शंख को बनाने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल है. सबसे पहले पीतल को पिघलाकर उसके कई हिस्सों को अलग-अलग ढालों में तैयार किया जाता है. इसके बाद इन हिस्सों को वेल्डिंग की मदद से जोड़ा जाता है. शंख की गूंज सुनिश्चित करने के लिए उसकी संरचना में विशेष ध्यान दिया जाता है. जब शंख तैयार हो जाता है, तो उस पर भगवान के चित्रों की नक्काशी की जाती है. यह काम कारीगरों द्वारा बहुत ही सावधानी और धैर्य के साथ किया जाता है. प्रयागराज महाकुंभ की तैयारी के लिए सत्यप्रकाश और उनकी टीम दिन-रात काम कर रही है. हर शंख को विशेष ध्यान से बनाया जा रहा है, ताकि वह धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल हो सकें. इन शंखों का वजन एक किलो 300 ग्राम से लेकर एक किलो 600 ग्राम तक होता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान : इन शंखों की मांग न केवल भारत में बल्कि दक्षिण भारत और अन्य देशों में भी है. सत्यप्रकाश के बनाए शंख दक्षिण भारत के मंदिरों में बजाए जाते हैं. इसके अलावा, यह शंख अमेरिका, हॉन्ग कोंग, दुबई, सऊदी और यूरोप जैसे देशों में भी निर्यात किए जाते हैं.
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