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Air Pollution : इस गांव में सांस की बीमारी से पीड़ित हो रहे लोग, कोई नहीं करना चाहता बेटी की शादी - BIKANER KHARA VILLAGE

प्रदूषण का साइड इफेक्ट. बीकानेर के खारा गांव में सांस की बीमारी से पीड़ित हो रहे लोग. कोई नहीं करना चाहता अपनी बेटी की शादी.

Air Pollution Effect
प्रदूषण से सांसों पर संकट (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 23, 2024, 5:53 PM IST

बीकानेर : देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य इलाकों में प्रदूषण को लेकर चर्चा हो रही है और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. लेकिन राजस्थान में एक ऐसा गांव है, जहां प्रदूषण का मानक इन सबसे कहीं ज्यादा है. प्रदूषण से गांव का हर घर पीड़ित है. इतना ही नहीं, अब तो लोग यहां अपनी बेटी की शादी करने से भी परहेज करने लगे हैं. बावजूद इसके, अभी तक जिम्मेदारों की आंखें नहीं खुली हैं.

बदलते समय के साथ औद्योगिक विकास का पहिया चलना जरूरी है, लेकिन ऐसे विकास से मानव जीवन के साथ खिलवाड़ हो या उसे खतरे में डाला जाय तो ऐसा औद्योगिक विकास किस काम का. कुछ ऐसा ही हो रहा है बीकानेर जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा खारा गांव में. यहां रहने वाले लोगों के लिए अब यह औद्योगिक विकास जान पर बन आया है.

प्रदूषण पर किसने क्या कहा, सुनिए... (ETV Bharat Bikaner)

यह शरीर के लिए नुकसानदेह : औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों को लेकर पीबीएम अस्पताल के श्वसन रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र सौगत ने कहा कि निश्चित रूप से खारा गांव में AQI (Air Quality Index) लेवल बहुत ज्यादा है. उन्होंने कहा कि यहां प्रदूषण में पीएम 10-कण पाए गए हैं, जिससे खांसी, सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में संक्रमण और यहां तक कि कैंसर का खतरा रहता है. उन्होंने कहा कि पीएम-10 की अधिक मात्रा का श्वसन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इससे खांसी के दौरे, घबराहट और अस्थमा से लोगों को समस्या होती है. उन्होंने बताया कि अस्पताल में आउटडोर में खारा से आने वाले मरीजों में इस तरह की दिक्कत देखी गई है.

रोजगार, लेकिन बीमारी के साथ : बीकानेर से गंगानगर जाने वाले मार्ग पर बसे इस गांव में कभी औद्योगिक विकास के नाम पर रीको एरिया का डेवलपमेंट किया गया और यहां मिनरल और जनरल जोन बनाकर फैक्ट्रियां लगाई गईं. इन फैक्ट्रियों के कारण यहां के लोगों को रोजगार तो मिला, लेकिन अब यही फैक्ट्रियां इन लोगों के लिए बीमारी का कारण बन गईं हैं.

प्रदूषण के चलते हालत खराब : दरअसल, यहां स्थापित वूलन और पीओपी फैक्ट्री की संख्या ज्यादा है और अधिकांश प्रदूषण पीओपी फैक्ट्री के चलते होता है, क्योंकि गांव से कुछ ही दूरी पर रीको इंडस्ट्रियल एरिया है. यहां करीब 40 पीओपी फैक्ट्रियां हैं, जिनसे निकलने वाला धुआं रूपी पाउडर यहां के लोगों की बीमारी का कारण बन गया है. ग्रामीण गजे सिंह का कहना है कि गांव की कुल आबादी के 40 प्रतिशत लोग बीमार हैं और हर घर में सांस और दमा के मरीज हैं.

पढ़ें : खतरनाक हुई अलवर व भिवाड़ी की आबोहवा, 400 के पार पहुंचा AQI लेवल, आखों मेें होने लगी जलन

खारा गवर्नमेंट स्कूल की प्रिंसिपल सुमनलता सेठी कहती हैं कि निश्चित रूप से हालात यहां पर गंभीर है और स्कूल से सटते हुए ही POP की फैक्ट्रियां हैं, जिसके चलते स्कूल में भी बच्चों को परेशानी होती है और घरों में तो बच्चों को परेशानी है ही. वे कहती हैं कि स्कूल में कई बच्चे सांस की बीमारी से पीड़ित होने की शिकायत करते हैं और मास्क लगाकर ही आते हैं. वहीं, स्कूली विद्यार्थियों का कहना है कि गांव में प्रदूषण का स्तर बहुत खराब है. इसके चलते गांव में अधिकांश लोग इस समस्या से पीड़ित हैं और उन्हें भी सांस लेने में तकलीफ होती है.

मानक स्तर से कई गुना प्रदूषण : खारा गांव में पीओपी की फैक्ट्रियों के कारण वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चीफ इंजीनियर प्रेमालाल ने अपनी टीम के साथ यहां 3 दिन तक हालात का जायजा लिया और अब सरकार को उसकी रिपोर्ट सौंपी जाएगी. उन्होंने भी माना कि पीएम-10 (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा मानक से कई गुना तक ज्यादा पाई गई. आम दिनों में इसकी मात्रा 1528 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रही, जबकि मानक 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है.

हालांकि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम की आने की सूचना के बाद यहां POP की सारी फैक्ट्रियां 3 दिन तक बंद रहीं. ईटीवी भारत की टीम ने जब ग्राउंड रिपोर्ट पर लोगों से बात की तो लोगों का कहना था कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम के सामने हालात सामान्य नजर आए. इसके लिए फैक्ट्रियों को बंद रखा गया और सड़कों पर भी फैक्ट्री के बाहर पानी गिराया गया, ताकि धूल-मिट्टी नहीं उड़े और हकीकत कुछ और ही दिखे. वहीं, उपसरपंच प्रतिनिधि गजे सिंह का कहना है कि हमने हर जगह अपनी बात पहुंचा दी, लेकिन जिम्मेदारों की आंख नहीं खुल रही है और अब हमें हमारी लड़ाई खुद लड़नी होगी. समय रहते हमारी बात जिम्मेदारों ने मानी तो ठीक, नहीं तो आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी, लेकिन अब इस बीमारी की वजह से मुक्ति जरूर लेकर रहेंगे.

कोई नहीं करना चाहता अपनी बेटी का ब्याह : ग्रामीण उम्मेद सिंह कहते हैं कि यह समस्या अब हमारे लिए धीरे-धीरे बहुत गंभीर होती जा रही है, क्योंकि गांव के हर घर में इस प्रदूषण के चलते सांस और फेफड़ों में संक्रमण की बीमारी के मरीज सामने आ रहे हैं. अब तो कोई रिश्तेदार अपनी बहन-बेटी की शादी हमारे गांव में करना नहीं चाहता और यदि कोई एक दिन यहां आकर रुकता है तो वह अगले दिन जल्दी से जल्दी निकलने की कोशिश करता है. उन्होंने कहा कि इस प्रदूषण के चलते गांव में लड़कों की शादी होना अब मुश्किल हो रहा है.

बीकानेर : देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य इलाकों में प्रदूषण को लेकर चर्चा हो रही है और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. लेकिन राजस्थान में एक ऐसा गांव है, जहां प्रदूषण का मानक इन सबसे कहीं ज्यादा है. प्रदूषण से गांव का हर घर पीड़ित है. इतना ही नहीं, अब तो लोग यहां अपनी बेटी की शादी करने से भी परहेज करने लगे हैं. बावजूद इसके, अभी तक जिम्मेदारों की आंखें नहीं खुली हैं.

बदलते समय के साथ औद्योगिक विकास का पहिया चलना जरूरी है, लेकिन ऐसे विकास से मानव जीवन के साथ खिलवाड़ हो या उसे खतरे में डाला जाय तो ऐसा औद्योगिक विकास किस काम का. कुछ ऐसा ही हो रहा है बीकानेर जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा खारा गांव में. यहां रहने वाले लोगों के लिए अब यह औद्योगिक विकास जान पर बन आया है.

प्रदूषण पर किसने क्या कहा, सुनिए... (ETV Bharat Bikaner)

यह शरीर के लिए नुकसानदेह : औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों को लेकर पीबीएम अस्पताल के श्वसन रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र सौगत ने कहा कि निश्चित रूप से खारा गांव में AQI (Air Quality Index) लेवल बहुत ज्यादा है. उन्होंने कहा कि यहां प्रदूषण में पीएम 10-कण पाए गए हैं, जिससे खांसी, सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में संक्रमण और यहां तक कि कैंसर का खतरा रहता है. उन्होंने कहा कि पीएम-10 की अधिक मात्रा का श्वसन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इससे खांसी के दौरे, घबराहट और अस्थमा से लोगों को समस्या होती है. उन्होंने बताया कि अस्पताल में आउटडोर में खारा से आने वाले मरीजों में इस तरह की दिक्कत देखी गई है.

रोजगार, लेकिन बीमारी के साथ : बीकानेर से गंगानगर जाने वाले मार्ग पर बसे इस गांव में कभी औद्योगिक विकास के नाम पर रीको एरिया का डेवलपमेंट किया गया और यहां मिनरल और जनरल जोन बनाकर फैक्ट्रियां लगाई गईं. इन फैक्ट्रियों के कारण यहां के लोगों को रोजगार तो मिला, लेकिन अब यही फैक्ट्रियां इन लोगों के लिए बीमारी का कारण बन गईं हैं.

प्रदूषण के चलते हालत खराब : दरअसल, यहां स्थापित वूलन और पीओपी फैक्ट्री की संख्या ज्यादा है और अधिकांश प्रदूषण पीओपी फैक्ट्री के चलते होता है, क्योंकि गांव से कुछ ही दूरी पर रीको इंडस्ट्रियल एरिया है. यहां करीब 40 पीओपी फैक्ट्रियां हैं, जिनसे निकलने वाला धुआं रूपी पाउडर यहां के लोगों की बीमारी का कारण बन गया है. ग्रामीण गजे सिंह का कहना है कि गांव की कुल आबादी के 40 प्रतिशत लोग बीमार हैं और हर घर में सांस और दमा के मरीज हैं.

पढ़ें : खतरनाक हुई अलवर व भिवाड़ी की आबोहवा, 400 के पार पहुंचा AQI लेवल, आखों मेें होने लगी जलन

खारा गवर्नमेंट स्कूल की प्रिंसिपल सुमनलता सेठी कहती हैं कि निश्चित रूप से हालात यहां पर गंभीर है और स्कूल से सटते हुए ही POP की फैक्ट्रियां हैं, जिसके चलते स्कूल में भी बच्चों को परेशानी होती है और घरों में तो बच्चों को परेशानी है ही. वे कहती हैं कि स्कूल में कई बच्चे सांस की बीमारी से पीड़ित होने की शिकायत करते हैं और मास्क लगाकर ही आते हैं. वहीं, स्कूली विद्यार्थियों का कहना है कि गांव में प्रदूषण का स्तर बहुत खराब है. इसके चलते गांव में अधिकांश लोग इस समस्या से पीड़ित हैं और उन्हें भी सांस लेने में तकलीफ होती है.

मानक स्तर से कई गुना प्रदूषण : खारा गांव में पीओपी की फैक्ट्रियों के कारण वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चीफ इंजीनियर प्रेमालाल ने अपनी टीम के साथ यहां 3 दिन तक हालात का जायजा लिया और अब सरकार को उसकी रिपोर्ट सौंपी जाएगी. उन्होंने भी माना कि पीएम-10 (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा मानक से कई गुना तक ज्यादा पाई गई. आम दिनों में इसकी मात्रा 1528 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रही, जबकि मानक 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है.

हालांकि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम की आने की सूचना के बाद यहां POP की सारी फैक्ट्रियां 3 दिन तक बंद रहीं. ईटीवी भारत की टीम ने जब ग्राउंड रिपोर्ट पर लोगों से बात की तो लोगों का कहना था कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम के सामने हालात सामान्य नजर आए. इसके लिए फैक्ट्रियों को बंद रखा गया और सड़कों पर भी फैक्ट्री के बाहर पानी गिराया गया, ताकि धूल-मिट्टी नहीं उड़े और हकीकत कुछ और ही दिखे. वहीं, उपसरपंच प्रतिनिधि गजे सिंह का कहना है कि हमने हर जगह अपनी बात पहुंचा दी, लेकिन जिम्मेदारों की आंख नहीं खुल रही है और अब हमें हमारी लड़ाई खुद लड़नी होगी. समय रहते हमारी बात जिम्मेदारों ने मानी तो ठीक, नहीं तो आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी, लेकिन अब इस बीमारी की वजह से मुक्ति जरूर लेकर रहेंगे.

कोई नहीं करना चाहता अपनी बेटी का ब्याह : ग्रामीण उम्मेद सिंह कहते हैं कि यह समस्या अब हमारे लिए धीरे-धीरे बहुत गंभीर होती जा रही है, क्योंकि गांव के हर घर में इस प्रदूषण के चलते सांस और फेफड़ों में संक्रमण की बीमारी के मरीज सामने आ रहे हैं. अब तो कोई रिश्तेदार अपनी बहन-बेटी की शादी हमारे गांव में करना नहीं चाहता और यदि कोई एक दिन यहां आकर रुकता है तो वह अगले दिन जल्दी से जल्दी निकलने की कोशिश करता है. उन्होंने कहा कि इस प्रदूषण के चलते गांव में लड़कों की शादी होना अब मुश्किल हो रहा है.

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