देवघर: जिले में किसानों के फसल की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए जिला कृषि कार्यालय और जिला प्रशासन की तरफ से विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें यह बताया जाएगा कि किस प्रकार से किसान अपने फसल की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं.
देवघर के मोहनपुर प्रखंड के किसानों को प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षक गोकुल यादव बताते हैं कि देवघर जिले के ही मार्गो मुंडा प्रखंड के पास अर्जुनपुर नाम के गांव में आज भी आदिवासी किसान उच्च गुणवत्ता के फसलों को उपजाते हैं. इसलिए उस गांव से इस बीज को लाया गया है, जो देवघर एवं विभिन्न राज्यों के सभी क्षेत्रों में रहने वाले किसानों के बीच वितरित की जाएगी और उन्हें भी अपने फसल की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा. गोकुल ने बताया कि अर्जुनपुर गांव से लाए गए बीज को पहले जिला कृषि पदाधिकारी से अधिकृत कराने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. इसके बाद किसानों के बीच इस बीज को वितरण कर उन्हें अपने फसल की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.
इस बीज से लोगों में बीमारियों की होगी कमी
वहीं, जिला कृषि पदाधिकारी अशोक सम्राट बताते हैं कि यह बीज इसलिए उच्चतम क्वॉलिटी की मानी जाती है क्योंकि इस बीज से होने वाले फसल की क्वालिटी भी बेहतर होती है. जिसे लेकर जिला प्रशासन और कृषि विभाग द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है, ताकि किसान अच्छी क्वालिटी के फसल उगा सकें और लोगों तक अच्छे खाद्य पदार्थ पहुंच सकें. अशोक सम्राट ने कहा कि आज जो फसल उपज रहे हैं, वह कहीं न कहीं केमिकल और खाद्य युक्त है. लेकिन अर्जुनपुर गांव से लाए गए बीज से होने वाले फसल को खाने के बाद लोगों में बीमारियां कम होंगी और झारखंड में रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर हो पाएगा.
अशोक सम्राट ने कहा कि किसानों को प्रोत्साहित करते हुए उनके हौसले को भी बढ़ाया जाएगा. ताकि जो अच्छे बीज उपजा रहे हैं, वह ज्यादा से ज्यादा खेती कर सकें. जिससे झारखंड के खेतों में उच्चतम क्वालिटी की फसल उपज हो सके. गौरतलब है कि देवघर जिले के जिला कृषि कार्यालय एवं किसानों के द्वारा किए जा रहे प्रयास कहीं न कहीं राज्य के किसानों को लाभ पहुंचाएगा और उनके फसल की गुणवत्ता को भी बढ़ाने का काम किया जाएगा.
इन फसलों के बीज का किया जाएगा वितरण
- स्वर्णा धान और गंगा सार धान: झारखंड के आदिवासी आज से 50 साल पहले इस बीज का उपयोग करते थे. लेकिन अब झारखंड में स्वर्णा धान और गंगा सार धान की उपज नहीं होती है. इसकी जगह पर हाइब्रिड बीज का उपयोग होता है, जो लोगों के लिए देसी धान की तुलना में लाभदाई नहीं है.
- ढिबरी मकई: इसे देशी मकई भी कहते हैं. हालांकि अब यह बीज बाजार में नहीं मिलता है. झारखंड में ही कुछ ऐसे किसान है, जो ऐसे उच्च क्वालिटी वाले मकई को उपजाते हैं.
- सिरवा बाजरा और मडुवा: आज जो बाजरा और मडुवा की फसल हो रहे हैं, उसमें केमिकल का इस्तेमाल होता है. जिससे फसल की क्वांटिटी तो अच्छी होती है, लेकिन गुणवत्ता खराब हो रही है. इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.
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