जयपुर. हिंगोनिया गौशाला में देश का अपने तरह का पहला बायो सीएनजी गैस प्लांट बनाया गया था . करीब 32 करोड़ की लागत से तैयार इस प्रोजेक्ट में 100 मीट्रिक टन गोबर से 6 मीट्रिक टन तक सीएनजी गैस तैयार की जा सकती है. इससे गौशाला आत्मनिर्भर बन सकती है. लेकिन अब तक 28 महीने हुए प्लांट संचालन में यहां महज 30 हजार किलो गोबर से 1.6 मीट्रिक टन गैस ही बन पा रही थी. ऐसे में ऑपरेशनल खर्चा ज्यादा होने के चलते फिलहाल इस प्लांट को बंद कर दिया गया है. हालांकि अब हिंगोनिया गौशाला का काम देख रही श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट ने सरकार और आईओसीएल से मदद की गुहार लगाई है.
बीते करीब 28 महीने से गौशाला में काम आने वाली गाड़ियों और छात्रों के लिए बनाए जाने वाले मिड डे मील में इस्तेमाल होने वाली बायोगैस हिंगोनिया गौशाला में बने बायोगैस प्लांट में ही तैयार हो रही थी. लेकिन बायोगैस प्लांट के संचालन में हो रहे नुकसान के चलते फिलहाल इस प्लांट को बंद कर दिया गया है. जिसकी वजह से श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट पर गैस की आपूर्ति के लिए अब आर्थिक भार बढ़ गया है. यही वजह है कि ट्रस्ट ने सरकार से इस बायोगैस प्लांट को दोबारा शुरू कराने में मदद की गुहार लगाई है.
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सरकार से मदद की गुहार: श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट के प्रवक्ता सिद्ध स्वरूप दास ने बताया कि संस्था को 28 महीने के संचालन में करीब 1.70 करोड रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ है. अब तक ट्रस्ट इस बायोगैस प्लांट के संचालन के लिए प्रयासरत थी. लेकिन हर महीने बढ़ते आर्थिक भार के चलते फिलहाल इस प्रोजेक्ट को बंद किया गया है. उन्होंने बताया कि ये भारत का सबसे पहला बायोगैस प्लांट है, जिसे आइओसीएल की मदद से तैयार किया गया था. यदि यहां सोलर प्लांट लगाया जाए तो बिजली आपूर्ति हो सकेगी. इससे ये बायो गैस प्लांट पूरी हिंगोनिया गौशाला को आत्मनिर्भर बना सकता है. लेकिन कुछ तकनीकी खामियों की वजह से प्लांट को बंद कर दिया गया है. उम्मीद है कि भारत सरकार और इंडियन ऑयल की मदद से इस बायोगैस प्लांट की सुध ली जाएगी. उन्होंने कहा कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्वालियर में और अन्य जगहों पर भी बायोगैस प्लांट शुरू किए हैं. उम्मीद है कि जल्द ये बायोगैस प्लांट भी शुरू होगा और गौ माता की सेवा में ये प्लांट मील का पत्थर साबित होगा.
ये है गोबर से बायो गैस बनाने की प्रकिया : शुरुआत में मिक्सिंग पिट में गोबर डाल कर 1:1 अनुपात में गोबर और पानी को मिलाया जाता है, फिर इस सॉल्यूशन को प्री डाइजेस्टर टैंक में डाला जाता है. यहां बैक्टीरिया के जरिए गोबर से गैस बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. अगले स्टेप में प्लांट में मौजूद एसएलएस शेड के जरिए सॉलिड और लिक्विड को अलग-अलग कर लिया जाता है. प्लांट से खाद को एसएलएस शेड से ही प्राप्त कर, लिक्विड फॉर्म मेन डाइजेस्टर टैंक में डाल दिया जाता है, जहां गैस तैयार होगी. उसके बाद बैलेंस गैस दो बड़े गैस होल्डिंग टैंक में स्टोर किया जाता है. आखिर में प्यूरीफिकेशन शेड में रॉ गैस को फिल्टर कर गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाली सीएनजी गैस लेवल तक प्यूरीफाई किया जाता है. यहां से सिलेंडर में गैस को भरकर वितरित किया जाता है.