जोधपुर : शहर के मथुरादास माथुर अस्पताल में सर्जरी कर एक महिला के पेट से 3 किलोग्राम बालों का गुच्छा निकाला गया. सर्जरी विभाग के डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने 28 वर्षीय महिला के पेट में दर्द की शिकायत पर पहले तो जांच की और फिर पेट में बालों के गुच्छे होने की पुष्टि के बाद सर्जरी कर उसे बाहर निकाला गया. डॉ. शर्मा ने बताया कि महिला पिछले तीन साल से पेट दर्द, उल्टी, भूख नहीं लगने और पेट में भारीपन की शिकायत से परेशानी थी.
इस पर गैस्ट्रोलॉजिस्ट डॉ. सुनील दाधीच ने उसका एंडोस्कोपी किया, जिसमें पता चला कि उसके आमाशय में बालों का गुच्छा है. ऐसे में उसे अविलंब निकालने की जरूरत थी और आखिरकार ऑपरेशन कर महिला के पेट से 3 किलोग्राम बालों का गुच्छा निकाला गया. वहीं, केस हिस्ट्री में पता चला कि महिला को बाल खाने की आदत थी. साथ ही उसके सिर पर भी कम बाल थे. साथ ही एंडोस्कोपी के दौरान आमाशय में भारी मात्रा में बाल नजर आए, जिसकी वजह से मरीज को भूख नहीं लगती थी और कुछ भी खाने पर उसे उल्टी हो जाती थी. इसके अलावा मरीज का तेजी से वजन भी गिर रहा था.
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इन सब के बावजूद सबसे अहम बात यह रही कि महिला पूरी तरह से मानसिक रूप से स्वस्थ थी. ऐसे में सवाल यह था कि आखिरकार वो बाल क्यों खाती थी. डॉ. शर्मा ने बतया कि मरीज का यह ऑपरेशन मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना के तहत निःशुल्क किया गया. ऑपरेशन करने वाली टीम में डॉ. पारंग आसेरी, डॉ. विशाल यादव, डॉ. कुणाल चितारा, डॉ. अक्षय, डॉ. श्वेता और एनेस्थीसिया टीम से डॉ. गीता सिंगारिया, डॉ. गायत्री तंवर, डॉ. ऋषभ, डॉ. प्रेक्षा, नर्सिंग से रेखा पंवार, सुमित्रा चौधरी और रोहिणी शामिल थे.
डॉ. दिनेश दत्त शर्मा और उनकी टीम ने इस जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक संपन्न किया. इस ऑपरेशन में जटिलता यह रही कि बालों का गुच्छा इतना ज्यादा था कि आमाशय में छोटे से चीरे से उसे बाहर निकालना एक बड़ी चुनौती थी. इस बाल के गुच्छे ने आमाशय और छोटी आंत के शुरुआती भाग डियोडेनम को पूरा ब्लॉक कर रखा था.
जानें क्या है ट्राइकोफेजिया : डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने बताया कि मरीजों में एक बीमारी होती है, जिसे ट्राइकोफेजिया कहा जाता है. इसमें मरीज को बाल खाने की आदत लग जाती है. ऐसे में बाल मरीज की आहरनाल में इकट्ठे होने शुरू हो जाते हैं, जिससे आमाशय में बालों का गुच्छा बन जाता है और इसे ही ट्राइको बैजोर कहा जाता है.
मनुष्य की आहारनाल में बालों को पचाने की क्षमता नहीं होती है, जिसकी वजह से ये बाल एकत्र होकर बड़े गुच्छे में तब्दील हो जाते हैं. यह बीमारी सामान्यत मानसिक रूप से कमजोर, विक्षिप्त व असामान्य व्यवहार करने वाली महिलाओं में ज्यादा होती है, जिनकी उम्र 15 से 25 साल के बीच होती है.