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मातृभाषा को लेकर आजादी के समय के नेतृत्व में थी भाव की कमी - देवनानी - DISCUSSION ON MOTHER TOUGUE PRIDE

जयपुर की राजस्थान विश्वविद्यालय में 'विकसित भारत के लिए मातृभाषा गौरव' विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई.

discussion on mother tougue pride
मातृभाषा गौरव विषय पर परिचर्चा (ETV Bharat Jaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 24, 2024, 7:15 PM IST

Updated : Dec 24, 2024, 8:37 PM IST

जयपुर: मातृभाषा को लेकर आजादी के समय के नेतृत्व में भाव की कमी होने से हम केवल आर्थिक विकास की दौड़ में दौड़ते रहे. हमारी मानसिकता अंग्रेजी भाषा को स्टेटस सिंबल बनाने तक रह गई. जबकि जर्मनी और जापान जैसे देशों ने अपनी मातृभाषा के साथ युवा पीढ़ी को तैयार किया. ये कहना था विधानसभा अध्यक्ष प्रो वासुदेव देवनानी का. वे मंगलवार को राजस्थान विश्वविद्यालय में 'विकसित भारत के लिए मातृभाषा गौरव' विषय पर परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे.

विधानसभा अध्यक्ष प्रो वासुदेव देवनानी (ETV Bharat Jaipur)

उन्होंने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें हिंदी मीडियम स्कूलों को परिवर्तित करने की बजाय, नए इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलकर उनकी नई बिल्डिंग और नए शिक्षक नियुक्त करने चाहिए थे. राजस्थान विश्वविद्यालय के यूजीसी सामाजिक अपवर्जन और समावेशी नीति अध्ययन केंद्र और विद्या भारती ने मिलकर ये परिचर्चा रखी थी. उन्होंने कहा कि 1100-1200 वर्षों में देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था.

पढ़ें:हिंदी के लिए राजस्थान ने बलिदान दिया, लेकिन अपनी भाषा के लिए आज तक कर रहा संघर्ष

उन्होंने कहा कि हमारे यहां अंग्रेजी को स्टेटस सिंबल माना गया है. इस कारण व्यक्ति के अंदर की क्षमता उभर कर नहीं आ पाई, लेकिन अब इस पर प्रयास होने लगा है. उन्होंने कहा कि सिर्फ हिंदी ही मातृभाषा नहीं, हिंदी राष्ट्रभाषा-राजभाषा जरूर है, लेकिन तमिल-तेलुगू जैसी भाषा भी स्थानीय लोगों के लिए मातृभाषा है. इससे जुड़े लोग कम से कम अपने घरों पर तो इस भाषा में बोलें. क्योंकि स्वभाषा से ही स्व संस्कार मिलता है. इससे देश के प्रति भावना जागृत होती है. मां, मातृभूमि और मातृभाषा को कोई भी अलग नहीं कर सकता. जब तीनों का समावेश होगा तब देश एक श्रेष्ठ भारत बनकर उभरेगा.

यह भी पढ़ें:अल्लाह जिलाई बाई का वो मांड गायन जो बन गया कालजयी, लेकिन राजस्थानी भाषा को आज भी नहीं मिला संवैधानिक दर्जा - राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जे की मांग

नए अंग्रेजी स्कूल खोलने चाहिए थे: उन्होंने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि हिंदी मीडियम के स्कूलों को परिवर्तित करने की तुलना में यदि नए इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने हैं और उनके लिए नई बिल्डिंग, नए शिक्षक नियुक्त करते तो ज्यादा बेहतर होता. आज वह विद्यार्थी न तो अंग्रेजी सीख पा रहा है, ना हिंदी सीख पा रहा है. इस पर सरकार को पुनः विचार करना चाहिए. वो खुद अंग्रेजी विरोधी नहीं, अंग्रेजी भी एक भाषा है, जरूर सीखनी चाहिए और ज्ञानवर्धन करना चाहिए, लेकिन मूल मातृभाषा का ज्ञान, व्यवहार और आचरण की आज आवश्यकता है. मध्य प्रदेश सरकार ने तो मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा भी हिंदी में उपलब्ध कराई है. नेशनल लेवल पर भी इस पर चर्चा चल पड़ी है. राजस्थान के विश्वविद्यालय और स्कूलों में भी इसकी पहल की जानी चाहिए.

राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की वकालत: इस दौरान देवनानी ने राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए संकल्प पारित करने की बात कही. साथ ही कहा कि उम्मीद है कि जो भी प्रक्रिया है उसके तहत केंद्र में भी राजस्थानी को प्राथमिकता मिलेगी. विशिष्ट अतिथि जयपुर के जिला कलेक्टर डॉ जितेंद्र सोनी थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो अल्पना कटेजा ने की. मुख्य वक्ता विद्या भारती के संगठन मंत्री शिवप्रसाद थे.

जयपुर: मातृभाषा को लेकर आजादी के समय के नेतृत्व में भाव की कमी होने से हम केवल आर्थिक विकास की दौड़ में दौड़ते रहे. हमारी मानसिकता अंग्रेजी भाषा को स्टेटस सिंबल बनाने तक रह गई. जबकि जर्मनी और जापान जैसे देशों ने अपनी मातृभाषा के साथ युवा पीढ़ी को तैयार किया. ये कहना था विधानसभा अध्यक्ष प्रो वासुदेव देवनानी का. वे मंगलवार को राजस्थान विश्वविद्यालय में 'विकसित भारत के लिए मातृभाषा गौरव' विषय पर परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे.

विधानसभा अध्यक्ष प्रो वासुदेव देवनानी (ETV Bharat Jaipur)

उन्होंने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें हिंदी मीडियम स्कूलों को परिवर्तित करने की बजाय, नए इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलकर उनकी नई बिल्डिंग और नए शिक्षक नियुक्त करने चाहिए थे. राजस्थान विश्वविद्यालय के यूजीसी सामाजिक अपवर्जन और समावेशी नीति अध्ययन केंद्र और विद्या भारती ने मिलकर ये परिचर्चा रखी थी. उन्होंने कहा कि 1100-1200 वर्षों में देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था.

पढ़ें:हिंदी के लिए राजस्थान ने बलिदान दिया, लेकिन अपनी भाषा के लिए आज तक कर रहा संघर्ष

उन्होंने कहा कि हमारे यहां अंग्रेजी को स्टेटस सिंबल माना गया है. इस कारण व्यक्ति के अंदर की क्षमता उभर कर नहीं आ पाई, लेकिन अब इस पर प्रयास होने लगा है. उन्होंने कहा कि सिर्फ हिंदी ही मातृभाषा नहीं, हिंदी राष्ट्रभाषा-राजभाषा जरूर है, लेकिन तमिल-तेलुगू जैसी भाषा भी स्थानीय लोगों के लिए मातृभाषा है. इससे जुड़े लोग कम से कम अपने घरों पर तो इस भाषा में बोलें. क्योंकि स्वभाषा से ही स्व संस्कार मिलता है. इससे देश के प्रति भावना जागृत होती है. मां, मातृभूमि और मातृभाषा को कोई भी अलग नहीं कर सकता. जब तीनों का समावेश होगा तब देश एक श्रेष्ठ भारत बनकर उभरेगा.

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नए अंग्रेजी स्कूल खोलने चाहिए थे: उन्होंने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि हिंदी मीडियम के स्कूलों को परिवर्तित करने की तुलना में यदि नए इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने हैं और उनके लिए नई बिल्डिंग, नए शिक्षक नियुक्त करते तो ज्यादा बेहतर होता. आज वह विद्यार्थी न तो अंग्रेजी सीख पा रहा है, ना हिंदी सीख पा रहा है. इस पर सरकार को पुनः विचार करना चाहिए. वो खुद अंग्रेजी विरोधी नहीं, अंग्रेजी भी एक भाषा है, जरूर सीखनी चाहिए और ज्ञानवर्धन करना चाहिए, लेकिन मूल मातृभाषा का ज्ञान, व्यवहार और आचरण की आज आवश्यकता है. मध्य प्रदेश सरकार ने तो मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा भी हिंदी में उपलब्ध कराई है. नेशनल लेवल पर भी इस पर चर्चा चल पड़ी है. राजस्थान के विश्वविद्यालय और स्कूलों में भी इसकी पहल की जानी चाहिए.

राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की वकालत: इस दौरान देवनानी ने राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए संकल्प पारित करने की बात कही. साथ ही कहा कि उम्मीद है कि जो भी प्रक्रिया है उसके तहत केंद्र में भी राजस्थानी को प्राथमिकता मिलेगी. विशिष्ट अतिथि जयपुर के जिला कलेक्टर डॉ जितेंद्र सोनी थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो अल्पना कटेजा ने की. मुख्य वक्ता विद्या भारती के संगठन मंत्री शिवप्रसाद थे.

Last Updated : Dec 24, 2024, 8:37 PM IST
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