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ओडिशा पुरी रथ यात्रा के 7 दिन बाद राजस्थान के इस शहर में निकाली जाती है जगन्नाथ की बारात, यह है मान्यता - Alwar Jagannath Temple

राजस्थान के अलवर में ओडिशा के पुरी में निकलने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा के 7 दिन बाद भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालने की परंपरा है. भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा करीब 170 सालों से ज्यादा समय से अलवर शहर में निकाली जाती रही है. यहां जानिए पुरानी मान्यता...

ALWAR JAGANNATH TEMPLE
अलवर में जगन्नाथ रथ यात्रा (PHOTO : ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 15, 2024, 3:13 PM IST

जगन्नाथ मंदिर के महंत (VIDEO : ETV BHARAT)

अलवर. सालभर में सिर्फ एक बार निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए देशवासी एक साल का इंतजार करते हैं. हर साल भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, तिथि अनुसार तो आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की दोज के दिन ओजिशा के पुरी में निकलती है. इसी दिन के देश भर के कई अन्य इलाकों में पुरी की तर्ज पर भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा धूमधाम के साथ निकाली जाती है, लेकिन राजस्थान में एक शहर ऐसा भी है, जहां पुरी में निकलने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा के 7 दिन बाद भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालने की परंपरा है.

राजस्थान के अलवर में सैकड़ों सालों से इस परंपरा का निर्वहन भी किया जा रहा है. बताया जाता है कि यह परंपरा अलवर में राजाशाही जमाने से बनी हुई है. इतिहासकार हरिशंकर गोयल बताते हैं कि रजवाड़ों के समय जगन्नाथ जी का मंदिर अलवर में न होकर राजगढ़ में हुआ करता था, उस समय स्टेट भी राजगढ़ था. अलवर जिले के राजगढ़ कस्बे में आज भी जगन्नाथ जी का काफी प्राचीन मंदिर है.

अलवर जगन्नाथ मंदिर के महंत धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि राजशाही समय में अलवर का राज्य राजगढ़ क्षेत्र से चला करता था, जिसके चलते वहां भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर से रथ यात्रा राजा के सानिध्य में निकाली जाती थी. राजगढ़ में पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा निकालने की परंपरा है. जिस दिन पूरी में रथ यात्रा निकलती हैं, उसी दिन राजगढ़ में भी रथ यात्रा निकाली जाती हैं. शर्मा ने बताया कि अलवर शहर की स्थापना होने पर यहां भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालनी शुरू हुई. उस समय तत्कालीन राजाओं का मानना था कि एक ही समय दो जगहों पर रथ यात्रा में शामिल होना सभी के लिए नामुमकिन है.

इसके चलते राजाओं ने अलवर शहर में 7 दिन बाद भडलिया नवमी को रथ यात्रा निकालने की घोषणा की. तभी से यह अलवर की परंपरा बन गई, जिसे हर साल निभाया जा रहा है. उस समय राजा के खर्चे पर ही रथयात्रा निकली जाती थीं. राजाओं का मानना था कि राजगढ़ की तरह ही अलवर में भी भगवान जगन्नाथ मेले को स्टेट मेले के रूप में भव्य तरीके से मनाया जाए. अलवर में निकलने वाली रथयात्रा में राजा भी शामिल होते थे. यहां तक कि अलवर रियासत के राजाओं ने अपने पसंदीदा इंद्र विमान को भी जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के लिए समर्पित कर दिया.

इसे भी पढ़ें : आस्था हो तो ऐसी ! 63 साल का बुजुर्ग लगा रहा 8 किलोमीटर की दंडवत परिक्रमा - Dandavat Parikrama

सैंकड़ों सालों से निकल रही रथ यात्रा : मंदिर के महंत धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा करीब 170 सालों से ज्यादा समय से अलवर शहर में निकाली जाती रही है. मंदिर से चल प्रतिमा जो चंदन की लकड़ी से निर्मित है. उस प्रतिमा को रथ में विराजित कर शहर के मुख्य मार्ग से होकर रूप हरि मंदिर तक लेकर जाया जाता है. रथ यात्रा के रवाना होने से पहले पुलिस की ओर से गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है.

राजगढ़ में आज भी है रथ यात्रा की परंपरा : महंत धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि राजशाही जमाने से निकल जा रही रथ यात्रा आज के समय में भी राजगढ़ में पूरे धूमधाम व लवाजमें के साथ निकाली जाती है. यहां गंगा बाग मंदिर परिसर में भगवान जगन्नाथ जानकी जी को ब्याहने के लिए पहुंचते हैं. भगवान जगन्नाथ विवाह के बाद गंगा बाग मंदिर से जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं. इसके बाद अलवर शहर में रथ यात्रा निकाली जाती है.

जगन्नाथ मंदिर के महंत (VIDEO : ETV BHARAT)

अलवर. सालभर में सिर्फ एक बार निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए देशवासी एक साल का इंतजार करते हैं. हर साल भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, तिथि अनुसार तो आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की दोज के दिन ओजिशा के पुरी में निकलती है. इसी दिन के देश भर के कई अन्य इलाकों में पुरी की तर्ज पर भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा धूमधाम के साथ निकाली जाती है, लेकिन राजस्थान में एक शहर ऐसा भी है, जहां पुरी में निकलने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा के 7 दिन बाद भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालने की परंपरा है.

राजस्थान के अलवर में सैकड़ों सालों से इस परंपरा का निर्वहन भी किया जा रहा है. बताया जाता है कि यह परंपरा अलवर में राजाशाही जमाने से बनी हुई है. इतिहासकार हरिशंकर गोयल बताते हैं कि रजवाड़ों के समय जगन्नाथ जी का मंदिर अलवर में न होकर राजगढ़ में हुआ करता था, उस समय स्टेट भी राजगढ़ था. अलवर जिले के राजगढ़ कस्बे में आज भी जगन्नाथ जी का काफी प्राचीन मंदिर है.

अलवर जगन्नाथ मंदिर के महंत धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि राजशाही समय में अलवर का राज्य राजगढ़ क्षेत्र से चला करता था, जिसके चलते वहां भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर से रथ यात्रा राजा के सानिध्य में निकाली जाती थी. राजगढ़ में पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा निकालने की परंपरा है. जिस दिन पूरी में रथ यात्रा निकलती हैं, उसी दिन राजगढ़ में भी रथ यात्रा निकाली जाती हैं. शर्मा ने बताया कि अलवर शहर की स्थापना होने पर यहां भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालनी शुरू हुई. उस समय तत्कालीन राजाओं का मानना था कि एक ही समय दो जगहों पर रथ यात्रा में शामिल होना सभी के लिए नामुमकिन है.

इसके चलते राजाओं ने अलवर शहर में 7 दिन बाद भडलिया नवमी को रथ यात्रा निकालने की घोषणा की. तभी से यह अलवर की परंपरा बन गई, जिसे हर साल निभाया जा रहा है. उस समय राजा के खर्चे पर ही रथयात्रा निकली जाती थीं. राजाओं का मानना था कि राजगढ़ की तरह ही अलवर में भी भगवान जगन्नाथ मेले को स्टेट मेले के रूप में भव्य तरीके से मनाया जाए. अलवर में निकलने वाली रथयात्रा में राजा भी शामिल होते थे. यहां तक कि अलवर रियासत के राजाओं ने अपने पसंदीदा इंद्र विमान को भी जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के लिए समर्पित कर दिया.

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सैंकड़ों सालों से निकल रही रथ यात्रा : मंदिर के महंत धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा करीब 170 सालों से ज्यादा समय से अलवर शहर में निकाली जाती रही है. मंदिर से चल प्रतिमा जो चंदन की लकड़ी से निर्मित है. उस प्रतिमा को रथ में विराजित कर शहर के मुख्य मार्ग से होकर रूप हरि मंदिर तक लेकर जाया जाता है. रथ यात्रा के रवाना होने से पहले पुलिस की ओर से गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है.

राजगढ़ में आज भी है रथ यात्रा की परंपरा : महंत धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि राजशाही जमाने से निकल जा रही रथ यात्रा आज के समय में भी राजगढ़ में पूरे धूमधाम व लवाजमें के साथ निकाली जाती है. यहां गंगा बाग मंदिर परिसर में भगवान जगन्नाथ जानकी जी को ब्याहने के लिए पहुंचते हैं. भगवान जगन्नाथ विवाह के बाद गंगा बाग मंदिर से जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं. इसके बाद अलवर शहर में रथ यात्रा निकाली जाती है.

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