पटनाः पारंपरिक कला और शिल्प को थोड़ा-सा सँवार दिया जाए, थोड़ा बाजार दे दिया जाए तो वे कलाकारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. सालों पुरानी सुजनी कला भी आजकल कई महिला कलाकारों के लिए रोजगार का साधन बन रही है.भारत की समृद्ध कला-परंपरा की एक कड़ी सुजनी कला के बारे में आज की पीढ़ी भी जान सके और समझ सके, इस उद्देश्य के साथ राजधानी पटना के बिहार ललित कला अकादमी में 6 दिवसीय प्रदर्शनी लगाई गयी है.
सीबै सजयबै साथे साथः बिहार सरकार के कला-संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित इस 6 दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने किया. इस प्रदर्शनी में प्रदेश भर से महिला कलाकार अपने हाथों से बनाए सामान के साथ हिस्सा ले रही हैं. प्रदर्शनी का टैग लाइन है-सीबै सजयबै साथे साथ. बदलते जमाने के साथ इसमें प्रयोग होनेवाले सामान में थोड़ा बदलाव जरूर आया है लेकिन तरीका वही पारंपरिक है. सूई-धागे से कपड़े के टुकड़े जुड़ते जाते हैं और अनोखा संसार साकार हो जाता है.
सुजनी कला से तैयार होते हैं तरह-तरह के सामानः प्रदर्शनी में आईं पटना की मंजु देवी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि वे सुजनी आर्ट से कई समान बनाती हैं, जैसे-गुड़िया, चिड़िया, चादर, तकिया. एक दिन में तीन से चार चिड़िया सुई धागा से बनाती हैं और फिर उसको सिलने का काम किया जाता है. मंजु देवी ने बताया कि लग्न के सीजन में इनकी काफी मांग रहती है. बेटी की विदाई के समय लोग इस कला से तैयार किए गए पर्दे ,तकिया के कवर सहित कई सजावटी सामान भी देते हैं.
रोजगार का साधन बन रही सुजनी कला: प्रदर्शनी में शामिल कलाकारों का कहना है कि सुजनी कला अब उनके लिए रोजगार का बडा साधन बनती जा रही है. जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने प्रदर्शनी में आए कलाकारों के कामों की प्रशंसा की और कहा कि बिहार सरकार की कोशिश है कि पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा मिले ताकि ये कलाकारों के लिए रोजी-रोटी का जरिया बन सके.
पहले घर-घर प्रचलित थी सुजनी कलाः कुछ सालों पहले तक ये कसीदाकारी बहुत ही आम थी और शायद ही कोई घर था जहां सुजनी कला से बने बिस्तर नहीं होते थे. नये जमाने में गद्देदार बिस्तर लोगों की पसंद भले ही बनते जा रहे हैं लेकिन अपनापन का अनुभव हाथ से बने बिस्तर में ही होता है. बदलते समय के साथ सुजनी कला में कलरफुल धागों का इस्तेमाल हो रहा है और ये लोगों को काफी आकर्षित कर रहा है.
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