गयाः बिहार के गया जिले में बोधगया मठ कई ऐतिहासिक और धार्मिक इतिहास को समेटे हुए है. बोधगया मठ काफी प्राचीन है, लेकिन इसका लिखित इतिहास सन 1590 से मिलना शुरू हो जाता है, तब महंत घमंडी गिरी ने पहली बार बोधगया मठ के बारे में लिखा और उसके बाद इसका इतिहास काफी लंबा मिलता है. बोधगया मठ शिव की उपासना स्थली के रूप में प्रसिद्ध रहा है. यहां पौराणिक काल से ही शिव की साधना और आराधना होती रही है, जो आज भी बरकरार है.
शिव आराधना की स्थली बोधगया मठः महाशिवरात्रि के मौके पर यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. बोधगया मठ की शिव की आराधना को लेकर दूर-दूर तक काफी प्रसिद्धी है. देश के विभिन्न हिस्सों से लोग आते हैं, तो यहां भगवान भोलेनाथ के मंदिर में पहुंचकर शिवलिंग का दर्शन करना नहीं भूलते. यहां की मान्यता है, कि यहां पूजा अर्चना करने से भक्तों की मन्नतें पूरी होती है. बोधगया मठ भगवान शिव की आराधना- साधना की स्थली है. मान्यता है कि यहां जो भी भक्त अपनी मुरादे लेकर आते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है.
भगवान भोलेनाथ के एक साथ कई मंदिरः बोधगया मठ में एक साथ 19 शिवालय और एक बड़ा शिवालया है. सभी शिवालय और शिवालया में शिवलिंग स्थापित है. प्राचीन काल से ही शिव भक्त यहां रहा करते थे. तब भ्रमण कर धन संग्रह होता था. धन संग्रह कर मंदिर बनाए जाते थे. एक बड़ा शिवालया भी बनाया गया. सभी शिवालय और शिवालया में भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग स्थापित है. यहां बनाए गए शिव मंदिर काफी प्राचीन है. यहां एक नहीं, बल्कि 19 शिव मंदिर है और एक बड़ा शिवालया भी है. सभी में शिवलिंग स्थापित है. विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी है.
बोधगया मठ में 400 संन्यासियों का शिवलिंगः बोधगया मठ की प्राचीन परंपरा रही है. बोधगया मठ यानी जिसे शिव मठ कहा जाता है. यहां शिव भक्त प्राचीन काल से ही रहे हैं. वही 400 संन्यासियों का शिवलिंग की बात करें, तो इसकी अनूठी कहानी है. बोधगया मठ से थोड़ी दूर पर ही रहे महाबोधि मंदिर के समीप 400 संन्यासियों का शिवलिंग स्थापित है. बोधगया मठ के जो भी संत-महंथ, सन्यासी समाधि लेते हैं, पंचभूत में विलीन होते हैं, उनकी समाधि के ऊपर शिवलिंग बनाया जाता है. वही उनका जो नाम होता है, उसके अंत में नाम के साथ महादेव जोड़ दिया जाता है. इस तरह 400 के करीब संन्यासियों का शिवलिंग बोधगया में स्थापित है.
कैसे बना 400 संन्यासियों का शिवलिंग?: इस संबंध में बोधगया मठ के महंथ स्वामी सत्यानंद गिरी बताते हैं कि बोधगया मठ भगवान शिव की आराधना स्थली, साधना स्थली के रूप में देशभर में प्रसिद्ध है. यहां की एक परंपरा यह भी है, कि यहां जो भी संन्यासी पंचभूत में विलीन होते हैं, उनकी समाधि होती है और समाधि के ऊपर शिवलिंग स्थापित किया जाता है. शिवलिंग के पास उनका नाम लिखा जाता है, जिसके अंत में महादेव जरुर लिखा जाता है. इसका कारण यह है कि उसे समाधि में एक प्रतिबिंब के लिए शिवलिंग बनाया जाता है. संत हो या महंत या सन्यासी हर किसी की समाधि बनती है और उसके ऊपर शिवलिंग बनाया जाता है.
"बोधगया मठ में इन समाधियों को भगवान के प्रतिबिंब के रूप में देखा जाता है. इसका कारण है कि यह अपना जो शरीर है, वह निर्गुण- निराकार से सगुण हुआ है. इसे आध्यात्मिक दृष्टि से समझने वाले समझ सकते हैं और यह एक परंपरा चल रही है, जो जारी है. यहां महंत घमंडी गिरी और चैतन्य गिरी की भी समाधि है. इस परंपरा का 1590 से लिखित इतिहास मिलता है. हालांकि यह परंपरा प्राचीन काल से है"- स्वामी सत्यानंद गिरी, महंत, बोधगया मठ
1590 में घमंडी नाथ बाबा थे मठ के महंतः स्वामी सत्यानंद गिरी बताते हैं कि महंत घमंडी नाथ बाबा 1590 में बोधगया मठ के महंत थे. वह बहुत ही सिद्ध पुरुष थे. उस समय जंगल था. एक बालक की मौत हो गई थी. घमंडी बाबा ने रोका और लोगों से कहा कि इसे मुझे दे दो. इसके बाद लोगों ने घमंडी बाबा गिरी को मृत बालक को दे दिया. बाबा ने चेतो चेतो कर पानी छिड़का तो वह जीवित हो उठा. लोग इसे चुपके से देख रहे थे. इस चमत्कार को देखकर वे बाबा के पास पहुंचे और बालक की मांग करने लगे, लेकिन घमंडी बाबा ने कहा कि जब हमें सौंप चुके हो, तो इसे मैं क्यों दूं. बाद में वही बालक चैतन्य गिरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और बड़े शिव भक्त हुए.
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