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काशी में 40 लोग कर रहे अपनी मौत का इंतजार, अलग-अलग राज्यों से घर-परिवार को छोड़कर पहुंचे, जानिए क्यों?

धर्मनगरी वाराणसी कई मायनो में खास है. यहां काशी विश्वनाथ सहित अन्य मंदिरों में दर्शन और घूमने के साथ कुछ लोग मरने भी आते हैं

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मुमुक्षु भवन में रह रहे वृद्ध. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

वाराणसी: 'काश्याम मरण्याम मुक्ति', यानी काशी में मृत्यु मोक्ष है. 'मरणं मंगलम यत्र', यानी काशी में मृत्यु मंगल है. जी हां यह, उस काशी के बारे में कहा जाता है, जिसे भगवान भोलेनाथ की नगरी वाराणसी के रूप में हर कोई जानता है. इस पावन नगरी में भोलेनाथ स्वयं मरने वाले के कानों में तारक मंत्र देकर उसे शिवलोक ले जाते हैं और वह बार-बार के पुनर्जन्म के बंधनों से मुक्त हो जाता है. यहां मरने वाले इंसान को मुक्ति के साथ शिवलोक की प्राप्ति होती है. इसलिए लोग अपने जीवन के अंतिम समय में काशी के इसी पवित्र स्थल पर आकर अपने प्राणों को देना चाहते हैं. वर्तमान समय में 40 लोग अपनी मृत्यु का इंतजार काशी में कर रहे हैं.

मौत पर मनाया जाता है जश्नः काशी विश्वनाथ धाम परिसर में मौजूद मुमुक्षु भवन अलग-अलग समय से रह रहे 40 वृद्ध अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहे हैं. अपना घर परिवार संपत्ति अपनों को छोड़कर यह लोग काशी के इस स्थान पर लंबे वक्त से रह रहे हैं. सभी की बस एक ही इच्छा है मृत्यु आए तो काशी में ताकि मोक्ष तो मिल जाए. काशी ही ऐसी इकलौती नगरी है जहां पर मृत्यु को उत्सव के रूप में मनाया जाता है. यहां पर आज भी शव लेकर श्मशान जा रहे लोग शव के आगे बैंड बाजे के साथ नाचते गाते मिल जाएंगे. ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि काशी में मृत्यु को दुख नहीं बल्कि उत्सव माना जाता है. यहां पर मरना मतलब मोक्ष की प्राप्ति करना और इसी मोक्ष की चाहत के साथ काशी में सदियों से ऐसे स्थान का निर्माण होता रहा है.

काशी के मुमुक्षु भवन से रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

मुमुक्षु भवन में सभी सुविधाएं निशुल्कः वाराणसी के अस्सी इलाके का मुमुक्षु भवन और लक्सा इलाके में संचालित होने वाला मुक्ति भवन पहले से ही ऐसे लोगों का स्थान ही है. जहां मृत्यु का इंतजार लोग करते हैं. यहां आज भी दो दर्जन से ज्यादा लोग काशीवास कर रहे हैं. ऐसे ही स्थान और परंपराओं को जीवित रखते हुए काशी विश्वनाथ धाम के नवनिर्माण के साथ ही यहां पर भी एक मुमुक्षु भवन की स्थापना की गई थी. लगभग ढाई साल पहले शुरू हुआ यह स्थान तारा संस्थान और नारायण सेवा संस्थान उदयपुर की तरफ से निशुल्क खोला गया है. पर 40 लोगों की व्यवस्था के साथ ही 3 फ्लोर में रहने खाने-पीने और इलाज तक की व्यवस्था की गई है. प्रबंधन का कहना है कि तारा संस्थान दान पुण्य के बल पर चलता है. यहां पर रहने वाले लोगों से किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. बस कुछ नियम कानून है जिनका पालन करना होता है.

मुमुक्षु भवन में डॉक्टर और नर्स 24 घंटे उपलब्धः मुमुक्षु भवन की मैनेजर सुनैना खरे ने बताया कि इस भवन में एक बार में 40 लोगों के रुकने की व्यवस्था है. यदि 65 वर्ष तक की अवस्था किसी की है और वह स्वस्थ है तो उसे यहां पर बेड उपलब्ध करवाया जाता है. उन्होंने बताया कि डॉरमेट्री के रूप में यहां पर एक साथ सारे लोग रहते हैं. छोटे से किचन में खाना पीना भी बना सकते हैं. इसके अलावा सभी को सुबह की चाय नाश्ता खाना शाम की चाय और खाना भी उपलब्ध करवाया जाता है यह सभी निशुल्क है. इसके अलावा दो डॉक्टर के साथ ही नर्स और काउंसलर की टीम इन सभी के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहती है. सुनैना खरे ने बताया कि काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर समूह का अंतिम संस्कार भी होता है और लोग यहां पर मोक्ष के लिए पहुंचते हैं. इन्हीं पौराणिक मान्यताओं को ध्यान में रखकर विश्वनाथ धाम गंगा तट से महेश 100 मीटर की दूरी पर बैद्यनाथ भवन में मुख्य भवन का निर्माण हुआ है. ऐसे बुजुर्ग जो काशी में अंतिम सांस लेना चाहते हैं. उन्हें यहां पर स्थान दिया जाता है.

अब तक मुमुक्षु भवन में रहकर 4 लोगों ने प्राप्त किया मोक्षः मैनेजर ने बताया कि काशी वास करने लिए मुमुक्षु भवन के संपर्क नंबर 723007331 पर कॉल करके यह जानकारी ली जा सकती है कि स्थान उपलब्ध है कि नहीं. इसके अलावा संस्थान की वेबसाइट www.tarasansthan.org पर भी वेटिंग के बाद भी अपनी बुकिंग कराई जा सकती है. जैसे ही वेटिंग कम होती है वैसे ही संस्था खुद यहां रुकने की इच्छा रखने वाले लोगों से संपर्क करती है. जैसे-जैसे लोग यहां से जाते हैं या फिर उनका शरीर छूटता है तो दूसरों की वेटिंग कम करके उन्हें स्थान दिया जाता है. 2 साल पहले यह स्थान बुजुर्गों के लिए शुरू हुआ और अब तक चार लोगों ने यहां रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति भी की है, यानी उनकी मृत्यु हो चुकी है. वर्तमान समय में यहां पर हर राज्य से लोग रह रहे हैं.

राजस्थान के 92 वर्षीय बद्री 2 साल से कर रहे मौत का इंतजारः राजस्थान के चूरू के रहने वाले 92 वर्ष के बद्री प्रसाद का कहना है कि जीवन का अंतिम समय चल रहा है. लगभग 2 वर्षों से मैं यहीं पर आ रहा हूं. बस अब इंतजार है तो मौत का ताकि काशी में रहकर मृत्यु मिले और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए बद्री प्रसाद का कहना है कि उनके परिवार में कोई भी नहीं है वह अकेले हैं. अपने समय में माइनिंग इंजीनियर के तौर पर विदेश में काम करने वाले बद्दी प्रसाद अपने जीवन का अंतिम समय काशी के इसी स्थान पर बिताना चाह रहे हैं और यहीं पर रहते हैं.

पूरा परिवार खत्म होने से टूट चुकी हैं गिरिजा देवीः कश्मीर छोड़कर 17 साल पहले प्रयागराज पहुंची 86 वर्ष की गिरिजा देवी भी अपने जीवन का अंतिम समय बिताने के लिए काशी के इसी स्थान पर आ गईं हैं. इनकी कहानी थोड़ा परेशान करने वाली जरूर है. पति, बड़े बेटे, बड़ी बहू की मृत्यु के बाद पूरी तरह से टूट चुकी गिरिजा देवी ने अपने जीवन का अंतिम समय में काशी में ही बिताने के लिए मुमुक्षु भवन में रह रही हैं. अब वह अपनी मृत्यु का इंतजार कर रही है.

दक्षिण भारत की 4 महिलाओं को मौत का इंतजार
तमिलनाडु से वाराणसी में अपनी बहन के साथ आई उमा चंद्रशेखर अब अकेली हैं. एक साल पहले उनकी बहन का इसी स्थान पर निधन हो गया और अब वह अपनी मृत्यु का इंतजार कर रही हैं. दक्षिण भारत की पद्मा राव 87 वर्ष की है. पति के साथ परिवार के अन्य लोगों की मृत्यु होने के बाद वह अकेली हो गई. एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली पदमा अब काशी में पूजन पाठ और भगवान की आराधना करके अपने जीवन के अंतिम समय को काट रही हैं और मृत्यु का इंतजार कर रही है.

परिवार से ली जाती है स्वीकृतिः सुनैना खरे का कहना है कि यह स्थान भगवान विश्वनाथ के आशीर्वाद सही संचालित होता है. रहने के लिए निशुल्क व्यवस्था भोजन दवा सब कुछ उपलब्ध रहता है. यहां आने से पहले परिवार जनों से एक पत्र लिया जाता है. जिसमें वह यह स्पष्ट कर देते हैं कि व्यक्ति या मुक्त महिला को यहां पर रखा जा रहा है और उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. इस दौरान यहां रहते हुए अगर किसी की मृत्यु होती है. उनके परिजनों को सूचना दे दी जाती है, परिजन आते हैं तो दाह संस्कार स्वयं करते हैं. यदि वह नहीं आते तो अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी भी संस्थान की होती है और पूरे रीति रिवाज और सही तरीके से अंतिम संस्कार प्रक्रिया पूर्ण की जाती है.

इसे भी पढ़ें-बाबा विश्वनाथ के धाम में मोक्ष का भवन हुआ फुल, मोक्ष पाने के लिए वृद्ध कर रहे इंतजार

वाराणसी: 'काश्याम मरण्याम मुक्ति', यानी काशी में मृत्यु मोक्ष है. 'मरणं मंगलम यत्र', यानी काशी में मृत्यु मंगल है. जी हां यह, उस काशी के बारे में कहा जाता है, जिसे भगवान भोलेनाथ की नगरी वाराणसी के रूप में हर कोई जानता है. इस पावन नगरी में भोलेनाथ स्वयं मरने वाले के कानों में तारक मंत्र देकर उसे शिवलोक ले जाते हैं और वह बार-बार के पुनर्जन्म के बंधनों से मुक्त हो जाता है. यहां मरने वाले इंसान को मुक्ति के साथ शिवलोक की प्राप्ति होती है. इसलिए लोग अपने जीवन के अंतिम समय में काशी के इसी पवित्र स्थल पर आकर अपने प्राणों को देना चाहते हैं. वर्तमान समय में 40 लोग अपनी मृत्यु का इंतजार काशी में कर रहे हैं.

मौत पर मनाया जाता है जश्नः काशी विश्वनाथ धाम परिसर में मौजूद मुमुक्षु भवन अलग-अलग समय से रह रहे 40 वृद्ध अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहे हैं. अपना घर परिवार संपत्ति अपनों को छोड़कर यह लोग काशी के इस स्थान पर लंबे वक्त से रह रहे हैं. सभी की बस एक ही इच्छा है मृत्यु आए तो काशी में ताकि मोक्ष तो मिल जाए. काशी ही ऐसी इकलौती नगरी है जहां पर मृत्यु को उत्सव के रूप में मनाया जाता है. यहां पर आज भी शव लेकर श्मशान जा रहे लोग शव के आगे बैंड बाजे के साथ नाचते गाते मिल जाएंगे. ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि काशी में मृत्यु को दुख नहीं बल्कि उत्सव माना जाता है. यहां पर मरना मतलब मोक्ष की प्राप्ति करना और इसी मोक्ष की चाहत के साथ काशी में सदियों से ऐसे स्थान का निर्माण होता रहा है.

काशी के मुमुक्षु भवन से रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

मुमुक्षु भवन में सभी सुविधाएं निशुल्कः वाराणसी के अस्सी इलाके का मुमुक्षु भवन और लक्सा इलाके में संचालित होने वाला मुक्ति भवन पहले से ही ऐसे लोगों का स्थान ही है. जहां मृत्यु का इंतजार लोग करते हैं. यहां आज भी दो दर्जन से ज्यादा लोग काशीवास कर रहे हैं. ऐसे ही स्थान और परंपराओं को जीवित रखते हुए काशी विश्वनाथ धाम के नवनिर्माण के साथ ही यहां पर भी एक मुमुक्षु भवन की स्थापना की गई थी. लगभग ढाई साल पहले शुरू हुआ यह स्थान तारा संस्थान और नारायण सेवा संस्थान उदयपुर की तरफ से निशुल्क खोला गया है. पर 40 लोगों की व्यवस्था के साथ ही 3 फ्लोर में रहने खाने-पीने और इलाज तक की व्यवस्था की गई है. प्रबंधन का कहना है कि तारा संस्थान दान पुण्य के बल पर चलता है. यहां पर रहने वाले लोगों से किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. बस कुछ नियम कानून है जिनका पालन करना होता है.

मुमुक्षु भवन में डॉक्टर और नर्स 24 घंटे उपलब्धः मुमुक्षु भवन की मैनेजर सुनैना खरे ने बताया कि इस भवन में एक बार में 40 लोगों के रुकने की व्यवस्था है. यदि 65 वर्ष तक की अवस्था किसी की है और वह स्वस्थ है तो उसे यहां पर बेड उपलब्ध करवाया जाता है. उन्होंने बताया कि डॉरमेट्री के रूप में यहां पर एक साथ सारे लोग रहते हैं. छोटे से किचन में खाना पीना भी बना सकते हैं. इसके अलावा सभी को सुबह की चाय नाश्ता खाना शाम की चाय और खाना भी उपलब्ध करवाया जाता है यह सभी निशुल्क है. इसके अलावा दो डॉक्टर के साथ ही नर्स और काउंसलर की टीम इन सभी के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहती है. सुनैना खरे ने बताया कि काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर समूह का अंतिम संस्कार भी होता है और लोग यहां पर मोक्ष के लिए पहुंचते हैं. इन्हीं पौराणिक मान्यताओं को ध्यान में रखकर विश्वनाथ धाम गंगा तट से महेश 100 मीटर की दूरी पर बैद्यनाथ भवन में मुख्य भवन का निर्माण हुआ है. ऐसे बुजुर्ग जो काशी में अंतिम सांस लेना चाहते हैं. उन्हें यहां पर स्थान दिया जाता है.

अब तक मुमुक्षु भवन में रहकर 4 लोगों ने प्राप्त किया मोक्षः मैनेजर ने बताया कि काशी वास करने लिए मुमुक्षु भवन के संपर्क नंबर 723007331 पर कॉल करके यह जानकारी ली जा सकती है कि स्थान उपलब्ध है कि नहीं. इसके अलावा संस्थान की वेबसाइट www.tarasansthan.org पर भी वेटिंग के बाद भी अपनी बुकिंग कराई जा सकती है. जैसे ही वेटिंग कम होती है वैसे ही संस्था खुद यहां रुकने की इच्छा रखने वाले लोगों से संपर्क करती है. जैसे-जैसे लोग यहां से जाते हैं या फिर उनका शरीर छूटता है तो दूसरों की वेटिंग कम करके उन्हें स्थान दिया जाता है. 2 साल पहले यह स्थान बुजुर्गों के लिए शुरू हुआ और अब तक चार लोगों ने यहां रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति भी की है, यानी उनकी मृत्यु हो चुकी है. वर्तमान समय में यहां पर हर राज्य से लोग रह रहे हैं.

राजस्थान के 92 वर्षीय बद्री 2 साल से कर रहे मौत का इंतजारः राजस्थान के चूरू के रहने वाले 92 वर्ष के बद्री प्रसाद का कहना है कि जीवन का अंतिम समय चल रहा है. लगभग 2 वर्षों से मैं यहीं पर आ रहा हूं. बस अब इंतजार है तो मौत का ताकि काशी में रहकर मृत्यु मिले और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए बद्री प्रसाद का कहना है कि उनके परिवार में कोई भी नहीं है वह अकेले हैं. अपने समय में माइनिंग इंजीनियर के तौर पर विदेश में काम करने वाले बद्दी प्रसाद अपने जीवन का अंतिम समय काशी के इसी स्थान पर बिताना चाह रहे हैं और यहीं पर रहते हैं.

पूरा परिवार खत्म होने से टूट चुकी हैं गिरिजा देवीः कश्मीर छोड़कर 17 साल पहले प्रयागराज पहुंची 86 वर्ष की गिरिजा देवी भी अपने जीवन का अंतिम समय बिताने के लिए काशी के इसी स्थान पर आ गईं हैं. इनकी कहानी थोड़ा परेशान करने वाली जरूर है. पति, बड़े बेटे, बड़ी बहू की मृत्यु के बाद पूरी तरह से टूट चुकी गिरिजा देवी ने अपने जीवन का अंतिम समय में काशी में ही बिताने के लिए मुमुक्षु भवन में रह रही हैं. अब वह अपनी मृत्यु का इंतजार कर रही है.

दक्षिण भारत की 4 महिलाओं को मौत का इंतजार
तमिलनाडु से वाराणसी में अपनी बहन के साथ आई उमा चंद्रशेखर अब अकेली हैं. एक साल पहले उनकी बहन का इसी स्थान पर निधन हो गया और अब वह अपनी मृत्यु का इंतजार कर रही हैं. दक्षिण भारत की पद्मा राव 87 वर्ष की है. पति के साथ परिवार के अन्य लोगों की मृत्यु होने के बाद वह अकेली हो गई. एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली पदमा अब काशी में पूजन पाठ और भगवान की आराधना करके अपने जीवन के अंतिम समय को काट रही हैं और मृत्यु का इंतजार कर रही है.

परिवार से ली जाती है स्वीकृतिः सुनैना खरे का कहना है कि यह स्थान भगवान विश्वनाथ के आशीर्वाद सही संचालित होता है. रहने के लिए निशुल्क व्यवस्था भोजन दवा सब कुछ उपलब्ध रहता है. यहां आने से पहले परिवार जनों से एक पत्र लिया जाता है. जिसमें वह यह स्पष्ट कर देते हैं कि व्यक्ति या मुक्त महिला को यहां पर रखा जा रहा है और उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. इस दौरान यहां रहते हुए अगर किसी की मृत्यु होती है. उनके परिजनों को सूचना दे दी जाती है, परिजन आते हैं तो दाह संस्कार स्वयं करते हैं. यदि वह नहीं आते तो अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी भी संस्थान की होती है और पूरे रीति रिवाज और सही तरीके से अंतिम संस्कार प्रक्रिया पूर्ण की जाती है.

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