अलवर. जिले के नीमूचाना में आज से ठीक 99 साल पहले किसानों ने विद्रोह का बिगुल बजाया था. उस समय अंग्रेजों के शासन में किसानों से कई तरह के कर जबरन वसूले जा रहे थे. इन करों की वसूली के खिलाफ 14 मई, 1925 को किसानों ने विद्रोह कर आंदोलन शुरू किया. किसानों के विद्रोह को कुचलने के लिए तत्कालीन अलवर रियासत की फौज ने नीमूचाना में किसानों पर अंधाधुंध फायरिंग की. इसमें करीब 250 किसान मारे गए. इतना ही नहीं किसानों के घरों को आग लगा दी गई. बाद में किसानों का यह आंदोलन तो शांत हो गया, लेकिन नीमूचाना कांड की बर्बरता की कहानी वहां की दीवारों पर अमिट हो गई. लोगों के जहन में आज भी नरसंहार की वह दास्तान कायम है. नीमूचाना में हर साल गोलियों से मरे किसानों को श्रद्धांजलि दी जाती है. इस बार 14 मई को नीमूचाना कांड की 99वीं बरसी मनाई जा रही है.
लगान नहीं चुका पाए किसान: अलवर के इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने बताया कि अलवर के तत्कालीन शासक राजा जय सिंह ने 14 मई, 1925 को रियासत की सेना ने किसानों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी. इस गोलीकांड में 250 किसानों की जान गई थी. तत्कालीन राजा द्वारा भेजे गए सैनिकों ने गांव को आग लगा दी, जिससे किसानों के मवेशी जिंदा जल गए. गोयल ने बताया कि उस दौरान किसानों पर 40 फीसदी कर लगाया था. लगान अधिक होने पर किसान उसे देने में असमर्थ थे. कारण था कि जंगली सुअरों से फसलों को बड़ा नुकसान होता था. इस कारण किसानों को फसल की पैदावार पूरी नहीं मिल पाती थी. इससे किसान लगान चुकाने में असमर्थ थे.
अंग्रेजों के शासन में जबरन कर वसूली के विरोध में थानागाजी व बानसूर के किसानों की बड़ी बैठक 14 मई, 1925 को बुलाई गई थी. किसान एकांत में बैठकर कर वसूली को लेकर सभा कर रहे थे. तभी गुप्तचर ने राजा को गलत सूचना दी. जिसके चलते तत्कालीन राजा के सैनिकों ने किसानों पर गोली, बारूद व मशीनगनों से धावा बोल दिया. इस घटना में 250 से अधिक किसानों की मौत हो गई.
गांधी ने बताया था जलियांवाला बाग से भी बड़ी घटना: गोयल के अनुसार अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई कर रहे महात्मा गांधी को नीमूचाना कांड की जानकारी लगी, तो उन्होंने इस घटना को जलियांवाला बाग कांड से भी भयानक घटना बताया था. इस घटना को देखने के लिए स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी ने पैदल यात्रा की थी. उन्होंने भी इस कांड की भर्त्सना की थी. स्थानीय ग्रामीण राकेश दायमा ने कहा कि नीमूचाना कांड की बरसी पर गांव वालों की ओर से शहीद किसानों को कैंडल मार्च निकालकर श्रद्धांजलि दी जाएगी. राजस्थान के आरएसएस संघ प्रचारक निम्बाराम एवं स्थानीय विधायक देवी सिंह शेखावत एवं आरएसएस और अन्य हिंदू संगठनों के नेता भी किसानों को श्रद्धांजलि देने नीमूचाना गांव आ रहे हैं.
अलवर में हुए थे जमकर आंदोलन: गोयल ने बताया कि नीमूचाना में किसानों के नरसंहार के बाद स्वतंत्रता सेनानियों का गांव में पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ. आजादी के लिए गांव-गांव में किसान लामबंद होने लगे. सभाएं बगावत का रूप लेने लगी. नीमूचाना की खबरें पढ़ कर देशभर से स्वतंत्रता सेनानी व क्रांतिकारी अलवर पहुंचे और 1930 से 1947 तक खेड़ा मंगलसिंह, बहरोड के पदमाडा, रेणी व नारायणपुर सहित दर्जनों गांव में किसान आंदोलन हुए.
आज भी हैं गोलियों के निशान: नीमूचाना में किसानों की मीटिंग वाले स्थान के आसपास की घरों की दीवारों पर आज भी गोलियों के निशान दिखाई पड़ते हैं. गोयल के अनुसार नीमूचाना के बाद 1933 में गोविंदगढ़ में कस्टम ड्यूटी लगाने के विरोध में किसानों की सभा हुई. बाद में 1946 में खेड़ा मंगल सिंह में प्रजामंडल की सभा बुलाई गई. इसकी भनक लगते ही पुलिस ने रातों रात छापामारी शुरू कर दर्जनों स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर लिया. 1938 में अलवर राज्य में छात्रों पर फीस लगा दी गई. इसका भी जमकर विरोध हुआ था.