अयोध्या: कार्तिक माह प्रारंभ होने के साथ ही तीर्थ नगरी अयोध्या में कल्पवास करने वाले बड़ी संख्या में भक्त पहुंच गए हैं. ये सरयू के तट स्थित दर्जनों मंदिरों में एक माह तक रह कर आराधना करेंगे और अयोध्या की परिक्रमा कर कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू नदी में स्नान कर इस अनुष्ठान की पूर्ण आहुति करेंगे.
साल के 12 महीनों में हर मास का अपना धार्मिक महत्व है. अलग-अलग तीर्थों में अलग-अलग मास में कल्पवास का विधान है. इस परम्परा में तीर्थ नगरी अयोध्या में कार्तिक कल्पवास की परम्परा सनातन काल से है. इस परम्परा के निर्वहन के लिए यहां लाखों श्रद्धालु पहुंच चुके हैं. जिन्होंने विभिन्न आश्रमों में आश्रय लिया है.
आश्विन पूर्णिमा से जप अनुष्ठान व दर्शन-पूजन के साथ सत्संग की दिनचर्या शुरू हो गी है. प्रातःकाल श्रद्धालुओं ने मां सरयू के पुण्य सलिल में डुबकी लगाई और तुलसी व आंवला का पूजन कर दीपदान किया. मंदिरों में दर्शन के साथ कथाओं में सत्संग का भी पुण्य चातुर्मास का यह अंतिम मास, श्रीहरि योगनिद्रा से जागेंगे.
कार्तिक मास में तुलसी पौध का रोपण और उनके विवाह का विशेष महात्म्य है. इस महीने दान करने से अक्षय शुभ फल की प्राप्ति होती है. विशेष तौर पर दीप दान करने से बड़ा लाभ मिलता है. इस वर्ष राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद कार्तिक परिक्रमा में अत्यधिक भीड़ होने की संभावना है.
12 नवंबर को देवोत्थानी एकादशी पर पंचकोसी परिक्रमा की जाएगी. बीते वर्ष में यह परिक्रमा करने वालों की संख्या 25 से 30 लाख भक्तों के द्वारा की जाने की जानकारी बताई गई थी. इस बार यह संख्या और बढ़ने की संभावना जताई जा रही है. 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा स्नान के साथ अयोध्या में रहने वाली भक्तों का कल्पवास पूर्ण होगा.
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