लखनऊ : तहजीब के शहर-ए-लखनऊ का हर रंग निराला है. यहां की मेहमाननवाजी और दरियादिली के सभी कायल हैं. इसी क्रम में हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से शाही रसोई का इंतजाम किया जाता है. इसमें गरीब परिवारों को इफ्तारी और खाना निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है. इस साल रमजान 12 मार्च मंगलवार से शुरू हुए हैं, इसी के साथ शाही रसोई भी शुरू हो गई है, जिसमें गरीब परिवारों को इफ्तारी और खाने की सुविधा मिलेगी.
500 गरीब परिवारों को इफ्तार प्रदान करने की परंपरा : 183 साल पुरानी नवाबी रसोई बीच में कोरोना की वजह दो साल बंद रही थी. लेकिन, उससे पहले और उसके बाद लगातार ये चल रही है. नवाबी रसोई में एक ट्रस्ट के तहत 13 मस्जिदों और लगभग 500 गरीब परिवारों को इफ्तार प्रदान करने की परंपरा है, जो रोजा रखने वालों को दिया जाने वाला भोजन है. बड़ा इमामबाड़ा स्थित असफी मस्जिद, छोटा इमामबाड़ा स्थित शाही मस्जिद, शाहनजफ इमामबाड़ा स्थित मस्जिद और हुसैनाबाद स्थित जामा मस्जिद उन 13 मस्जिदों में से एक है, जिन्हें 'शाही बावर्ची खाना' से इफ्तार भोजन मिलता है. छोटा इमामबाड़ा से करीब 500 गरीब परिवारों को 30 दिनों तक रात में खाना दिया जाता है. सूत्रों के मुताबिक, इस परंपरा की शुरुआत 1839 में अवध के तीसरे राजा मुहम्मद अली शाह ने की थी और राजा द्वारा लगाए गए ट्रस्ट फंड के तहत सैकड़ों गरीब परिवारों को लगातार भोजन उपलब्ध कराया जाता रहा है.
इस साल भी निकाला गया टेंडर : ट्रस्ट के अधिकारी हबीबुल हसन ने कहा कि हर साल रसोई के लिए टेंडर निकाला जाता है, जिसे जिलाधिकारी तय करते है. इस साल भी टेंडर निकाला गया है. टेंडर करीब 30 लाख के आसपास का है. इफ्तारी में बन बटर, पैटीज, समोसा, केक, पकौड़े, चिप्स, फल आदि शामिल होते हैं. जबकि, रात में दिए जाने वाले भोजन में दो तंदूरी रोटी और दाल या एक अवधी व्यंजन जिसे तले हुए आलू का सालन कहा जाता है, वैकल्पिक रूप से शामिल होता है. रमजान के दौरान हर दिन सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक रसोई काम करती है.
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