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देवशयनी एकादशी से एक दिन पहले और व्रत के दिन भूलकर भी ना करें ये काम, जानें महत्व और पौराणिक कथाएं - Devshayani Ekadashi - DEVSHAYANI EKADASHI

Devshayani Ekadashi 2024: देवशयनी एकादशी के मौके पर कई लोग व्रत रखते हैं. इस दौरान कई बातों का ख्याल रखना होता है. ऐसे में पटना के आचार्य मनोज मिश्रा ने व्रत के बारे में खास जानकारी दी. उन्होंने इसके महत्व के बारे में बताया. जानिए इस दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?

देवशयनी एकादशी
देवशयनी एकादशी (Concept Image)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 1, 2024, 7:56 AM IST

पटनाः देवशयनी एकादशी आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत भी हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सारी इच्छाओं की पूर्ति होती है और भगवान प्रसन्न होते हैं. आचार्य मनोज मिश्रा ने बताया कि धार्मिक शास्त्रों में वर्णन है कि भगवान विष्णु को जगत का पालनहार कहा जाता है. देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं.

17 जुलाई को देवशयनी एकादशीः देवशयनी एकादशी जुलाई को भगवान विष्णु जब योग निद्रा में होते हैं तो संसार का संचालन भोले नाथ के हाथ में होता है. उन्होंने बताया कि इस वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 जुलाई को रात्रि 8:40 पर शुरू हो रही है. इसका समापन 17 जुलाई को रात 9:05 पर होगा. उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए इस बार देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को मनाई जाएगी.

क्या करें क्या ना करेंः आचार्य मनोज मिश्रा ने बताया कि एकादशी व्रत उपवास के कई नियम है. दसवीं के दिन मांस, लहसुन, प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए. रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग विलास से दूर रहना चाहिए. इस दिन घर में झाड़ू नहीं लगना चाहिए क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है. इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए ना ही अधिक बोलना चाहिए. अधिक बोलने से मुख से ना बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं. इसलिए इस बात का बेहद ध्यान देने की जरूरत रहती है.

"एकादशी के दिन प्रातः उठकर लकड़ी का दातुन ना करें आम नींबू जामुन आम के पत्ते लेकर अंगुली से दात साफ कर लें. ध्यान रखे कि पत्ता स्वयं नहीं तोड़े. गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें. इसके बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहित ब्राह्मण से गीता पाठ का श्रवण करें. प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करे कि आज मैं पाखंडी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा. ना ही किसी का दिल दुखाऊंगा और रात्रि में जागरण कर कीर्तन करें. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश मंत्र का जाप करें." -आचार्य मनोज कुमार

जानें पौराणिक कथाः देवशयनी एकादशी से पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है. भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को स्वर्ग पर पुनः अधिकार दिलाने के लिए वामन अवतार लिया था. असुरों के राजा बलि ने तीनों लोक पर अधिकार स्थापित कर लिया था. तब वामन भगवान राजा बलि के पास पहुंचे और उनसे तीन पग भूमि का दान मांगा. राजा बलि ने इसे स्वीकार कर लिया. तब वामन भगवान ने एक पग में संपूर्ण धरती आकाश और सभी दिशाओं को नाप लिया. दूसरे पग में उन्होंने स्वर्ग लोक को नाप लिया और इसके बाद उन्होंने बलि से पूछा कि अब तीसरा पग कहां रखूं तब राजा बलि ने अपना सर आगे कर दिया.

4 माह भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम करते हैंः भगवान ने राजा बलि से प्रसन्न हो गए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा. तब राजा बलि ने कहा कि आप मेरे साथ मेरे महल में रहे और मुझे अपनी सेवा का सौभाग्य प्रदान करें. माता लक्ष्मी इस बात से विचलित हो गई और उन्होंने राजा बलि को अपना भाई बनाकर उन्हें विष्णु को वचन मुक्त करने को कहा. तब भगवान विष्णु ने कहा कि वह चार माह के लिए पाताल लोक में सशयन करेंगे और इस दौरान सृष्टि का संचालन सुचारु रूप से चलता रहे इसलिए नारायण भगवान ने भगवान शिव को 4 महीने के लिए पूरे संसार का संचालन की जिम्मेदारी सौंप दी. इसलिए चातुर्मास के दौरान संसार का संचालन भगवान शिव के द्वारा किया जाता है और इसे चातुर्मास कहते हैं.

यह भी पढ़ेंः 5 राशि वालों के लिए बड़ी भविष्यवाणी, जुलाई का महीना करेगा 'मंगल' या होगा 'अमंगल', एक क्लिक में जानें सब कुछ - july horoscope 2024

पटनाः देवशयनी एकादशी आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत भी हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सारी इच्छाओं की पूर्ति होती है और भगवान प्रसन्न होते हैं. आचार्य मनोज मिश्रा ने बताया कि धार्मिक शास्त्रों में वर्णन है कि भगवान विष्णु को जगत का पालनहार कहा जाता है. देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं.

17 जुलाई को देवशयनी एकादशीः देवशयनी एकादशी जुलाई को भगवान विष्णु जब योग निद्रा में होते हैं तो संसार का संचालन भोले नाथ के हाथ में होता है. उन्होंने बताया कि इस वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 जुलाई को रात्रि 8:40 पर शुरू हो रही है. इसका समापन 17 जुलाई को रात 9:05 पर होगा. उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए इस बार देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को मनाई जाएगी.

क्या करें क्या ना करेंः आचार्य मनोज मिश्रा ने बताया कि एकादशी व्रत उपवास के कई नियम है. दसवीं के दिन मांस, लहसुन, प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए. रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग विलास से दूर रहना चाहिए. इस दिन घर में झाड़ू नहीं लगना चाहिए क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है. इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए ना ही अधिक बोलना चाहिए. अधिक बोलने से मुख से ना बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं. इसलिए इस बात का बेहद ध्यान देने की जरूरत रहती है.

"एकादशी के दिन प्रातः उठकर लकड़ी का दातुन ना करें आम नींबू जामुन आम के पत्ते लेकर अंगुली से दात साफ कर लें. ध्यान रखे कि पत्ता स्वयं नहीं तोड़े. गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें. इसके बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहित ब्राह्मण से गीता पाठ का श्रवण करें. प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करे कि आज मैं पाखंडी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा. ना ही किसी का दिल दुखाऊंगा और रात्रि में जागरण कर कीर्तन करें. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश मंत्र का जाप करें." -आचार्य मनोज कुमार

जानें पौराणिक कथाः देवशयनी एकादशी से पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है. भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को स्वर्ग पर पुनः अधिकार दिलाने के लिए वामन अवतार लिया था. असुरों के राजा बलि ने तीनों लोक पर अधिकार स्थापित कर लिया था. तब वामन भगवान राजा बलि के पास पहुंचे और उनसे तीन पग भूमि का दान मांगा. राजा बलि ने इसे स्वीकार कर लिया. तब वामन भगवान ने एक पग में संपूर्ण धरती आकाश और सभी दिशाओं को नाप लिया. दूसरे पग में उन्होंने स्वर्ग लोक को नाप लिया और इसके बाद उन्होंने बलि से पूछा कि अब तीसरा पग कहां रखूं तब राजा बलि ने अपना सर आगे कर दिया.

4 माह भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम करते हैंः भगवान ने राजा बलि से प्रसन्न हो गए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा. तब राजा बलि ने कहा कि आप मेरे साथ मेरे महल में रहे और मुझे अपनी सेवा का सौभाग्य प्रदान करें. माता लक्ष्मी इस बात से विचलित हो गई और उन्होंने राजा बलि को अपना भाई बनाकर उन्हें विष्णु को वचन मुक्त करने को कहा. तब भगवान विष्णु ने कहा कि वह चार माह के लिए पाताल लोक में सशयन करेंगे और इस दौरान सृष्टि का संचालन सुचारु रूप से चलता रहे इसलिए नारायण भगवान ने भगवान शिव को 4 महीने के लिए पूरे संसार का संचालन की जिम्मेदारी सौंप दी. इसलिए चातुर्मास के दौरान संसार का संचालन भगवान शिव के द्वारा किया जाता है और इसे चातुर्मास कहते हैं.

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