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गुरु पूर्णिमा पर गुरु और प्रभु दोनों की पूजन के हैं अलग तौर तरीके, जान लें पूरी डिटेल - Guru Purnima 2024

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jun 23, 2024, 5:06 PM IST

Updated : Jun 23, 2024, 6:10 PM IST

जुलाई का महीना आते ही व्रत और भक्ति की शुरूआत हो जाएगी. जुलाई में सावन महीने की शुरुआत के साथ ही गुरु पूर्णिमा भी है. पंडित आत्माराम शास्त्री से जानिए गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु की पूजा कैसे करें.

GURU PURNIMA 2024
गुरु की पूजा करने से खुश होते हैं भगवान (ETV Bharat)

GURU PURNIMA 2024: गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:...शास्त्रों में गुरु को भी भगवान के सक्षम माना गया है. इसी के चलते भारतवर्ष में गुरु की पूजा का महत्व है और गुरुओं की पूजा आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में की जाती है. इस दिन गुरु और अपने प्रभु की पूजा की जाती है, लेकिन दोनों के अलग-अलग तरीके हैं. इस लेख में जानते हैं गुरु और प्रभु की पूजा के तरीके.

कब है गुरु पूर्णिमा क्यों है विशेष महत्व

साल 2024 में गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को मनाई जाएगी. पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों में महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ माह की पूर्णिमा को बताया गया है. महर्षि वेदव्यास महाभारत पुराणों और वेदों के रचयिता भी माने जाते हैं. पहली बार मानव जाति को महर्षि वेदव्यास ने ही वेदों के बारे में बताकर उनसे परिचय कराया था. इसलिए इन्हें प्रथम गुरु माना जाता है, उनके जन्मदिन के मौके पर गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है. इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने-अपने गुरुओं की पूजा कर गुरुओं के प्रति आस्था प्रकट करते हैं, क्योंकि कहा गया है कि गुरु प्रभु के सामान हैं. कहा भी गया है कि 'गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाए बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए'. इसका मतलब है कि प्रभु से व्यक्ति का साक्षात कराने वाले गुरु ही होते हैं. गुरु ही भगवान के बारे में जानकारी देते हैं, इसलिए गुरु को भगवान के समान माना गया है.

इस दिन भगवान विष्णु या शालिग्राम की भी करें पूजा

गुरु का मतलब होता है अंधकार से उजाले की ओर ले जाना. जो भी आपको बुराई रूपी अंधकार से अच्छाई की तरफ ले जाता है, उसे भी अपना गुरु कहा जा सकता है. बताया गया है कि महर्षि वेदव्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेद का ज्ञान दिया था और इनसे परिचय कराया था. वेदव्यास को भगवान विष्णु का भी अवतार माना जाता है. इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा के साथ-साथ भगवान विष्णु या भगवान शालिग्राम की भी पूजा की जाती है, ताकि गुरु के रूप में भगवान विष्णु भी प्रसन्न हो सकें.

गुरु पूर्णिमा पर कैसे करें पूजा जानिए विधि

पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि गुरु पूर्णिमा के मौके पर ब्रह्म मुहूर्त में जाकर स्नान करने के साथ ही व्रत भी रखा जा सकता है. जिसने गुरु दीक्षा ली हो वह अपने गुरु के पास जाकर गुरु को अपनी क्षमता अनुसार वस्त्र फल और उपहार देकर गुरु की पूजा करें. इससे गुरु पूर्णिमा का विशेष लाभ प्राप्त होता है. जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है, वे गुरु के रूप में महर्षि वेदव्यास की पूजा अपने घर के पूजा घर में ही इसी विधि से कर सकते हैं.

भगवान विष्णु की पूजा करने से भी गुरुदेव होते हैं प्रसन्न

गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु या शालिग्राम की पूजा का भी विशेष महत्व है. जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है. वे भगवान विष्णु या शालिग्राम के साथ-साथ महर्षि वेदव्यास की पूजा विधि विधान से करें, तो उन्हें गुरु पूर्णिमा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है. इसमें व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के साथ ही पूजा घर में भगवान विष्णु की तस्वीर के साथ ही महर्षि वेदव्यास की तस्वीर को केले के पत्ते के ऊपर विराजित कर विधि विधान से पूजा करें. इसके साथ ही गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम: अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, का जाप करें.'

GURU PURNIMA 2024: गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:...शास्त्रों में गुरु को भी भगवान के सक्षम माना गया है. इसी के चलते भारतवर्ष में गुरु की पूजा का महत्व है और गुरुओं की पूजा आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में की जाती है. इस दिन गुरु और अपने प्रभु की पूजा की जाती है, लेकिन दोनों के अलग-अलग तरीके हैं. इस लेख में जानते हैं गुरु और प्रभु की पूजा के तरीके.

कब है गुरु पूर्णिमा क्यों है विशेष महत्व

साल 2024 में गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को मनाई जाएगी. पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों में महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ माह की पूर्णिमा को बताया गया है. महर्षि वेदव्यास महाभारत पुराणों और वेदों के रचयिता भी माने जाते हैं. पहली बार मानव जाति को महर्षि वेदव्यास ने ही वेदों के बारे में बताकर उनसे परिचय कराया था. इसलिए इन्हें प्रथम गुरु माना जाता है, उनके जन्मदिन के मौके पर गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है. इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने-अपने गुरुओं की पूजा कर गुरुओं के प्रति आस्था प्रकट करते हैं, क्योंकि कहा गया है कि गुरु प्रभु के सामान हैं. कहा भी गया है कि 'गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाए बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए'. इसका मतलब है कि प्रभु से व्यक्ति का साक्षात कराने वाले गुरु ही होते हैं. गुरु ही भगवान के बारे में जानकारी देते हैं, इसलिए गुरु को भगवान के समान माना गया है.

इस दिन भगवान विष्णु या शालिग्राम की भी करें पूजा

गुरु का मतलब होता है अंधकार से उजाले की ओर ले जाना. जो भी आपको बुराई रूपी अंधकार से अच्छाई की तरफ ले जाता है, उसे भी अपना गुरु कहा जा सकता है. बताया गया है कि महर्षि वेदव्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेद का ज्ञान दिया था और इनसे परिचय कराया था. वेदव्यास को भगवान विष्णु का भी अवतार माना जाता है. इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा के साथ-साथ भगवान विष्णु या भगवान शालिग्राम की भी पूजा की जाती है, ताकि गुरु के रूप में भगवान विष्णु भी प्रसन्न हो सकें.

गुरु पूर्णिमा पर कैसे करें पूजा जानिए विधि

पंडित आत्माराम शास्त्री ने बताया कि गुरु पूर्णिमा के मौके पर ब्रह्म मुहूर्त में जाकर स्नान करने के साथ ही व्रत भी रखा जा सकता है. जिसने गुरु दीक्षा ली हो वह अपने गुरु के पास जाकर गुरु को अपनी क्षमता अनुसार वस्त्र फल और उपहार देकर गुरु की पूजा करें. इससे गुरु पूर्णिमा का विशेष लाभ प्राप्त होता है. जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है, वे गुरु के रूप में महर्षि वेदव्यास की पूजा अपने घर के पूजा घर में ही इसी विधि से कर सकते हैं.

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भगवान विष्णु की पूजा करने से भी गुरुदेव होते हैं प्रसन्न

गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु या शालिग्राम की पूजा का भी विशेष महत्व है. जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है. वे भगवान विष्णु या शालिग्राम के साथ-साथ महर्षि वेदव्यास की पूजा विधि विधान से करें, तो उन्हें गुरु पूर्णिमा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है. इसमें व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के साथ ही पूजा घर में भगवान विष्णु की तस्वीर के साथ ही महर्षि वेदव्यास की तस्वीर को केले के पत्ते के ऊपर विराजित कर विधि विधान से पूजा करें. इसके साथ ही गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम: अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, का जाप करें.'

Last Updated : Jun 23, 2024, 6:10 PM IST
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