नई दिल्ली: नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने के चीन के एक और प्रयास के तहत चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) रविवार को काठमांडू में एक पार्टी बैठक आयोजित करेगी. इसमें नेपाली राजनीतिक नेताओं को आमंत्रित किया गया है.
काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार सीपीसी ने नेपाल की संसद में प्रतिनिधि सभा में सीट रखने वाले सभी राजनीतिक दलों के 15-15 नेताओं को आमंत्रित किया है. इसे 'दुर्लभ पार्टी ब्रीफिंग' कहा जा रहा है. इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि सीपीसी ने काठमांडू के एक होटल में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए नेपाल सरकार से औपचारिक अनुमति नहीं ली, बल्कि केवल देश के विदेश मंत्रालय को सूचित किया. इसने बिना किसी परामर्श के इसे आगे बढ़ा दिया.
दरअसल, नेपाल की संसद की नेशनल असेंबली के चेयरमैन नारायण दहल को इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है. 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 14 राजनीतिक दलों की सीटें हैं.
पोस्ट की रिपोर्ट में एक राष्ट्रीय पार्टी को भेजे गए आमंत्रण पत्र का हवाला देते हुए कहा गया, 'चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (आईडीसीपीसी) की केंद्रीय समिति का अंतरराष्ट्रीय विभाग और सीपीसी किंघई प्रांतीय समिति आपकी पार्टी को अपनी शुभकामनाएं देती है. साथ ही सलाह देने का सम्मान करती है. आईडीसीपीसी और सीपीसी किंघई प्रांतीय समिति 20 अक्टूबर को दोपहर 14:30 बजे नेपाल के काठमांडू में होटल याक एंड यति में 20वीं सीपीसी केंद्रीय समिति के तीसरे पूर्ण अधिवेशन पर ब्रीफिंग की सह-मेजबानी करने की योजना बना रही है.'
रविवार की ब्रीफिंग का विषय है 'चीनी आधुनिकीकरण द्वारा लाए गए अवसरों को साझा करना और ट्रांस-हिमालय सहयोग को गहरा करना'. पोस्ट द्वारा प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी को भेजे गए निमंत्रण पत्र में लिखा, 'हम आपकी पार्टी/संगठन के 15 प्रतिनिधियों को इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं.' इसमें यह उल्लेख नहीं किया गया है कि आईडीसीपीसी और सीपीसी किंगहाई प्रांतीय समिति से कौन-कौन लोग बैठक को संबोधित करेंगे.
यहां तक कि कम्युनिस्ट नेताओं समेत नेपाली सांसदों ने भी इस आयोजन पर आश्चर्य जताया है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या किसी दूसरे देश की राजनीतिक पार्टी को नेपाल में बैठक करने की इजाजत दी जा सकती है. पोस्ट की रिपोर्ट में सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार में शामिल नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-यूनाइटेड मार्क्सवादी लेनिनवादी (CPN-UML) के नेता के हवाले से कहा गया, 'हम नेपाल में पहली बार इस तरह की प्रथा के बारे में सुन रहे हैं. चूंकि उन्होंने हमें आमंत्रित किया है, इसलिए हमें इस कार्यक्रम में शामिल होना ही होगा. लेकिन यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह तय करे कि किसी दूसरे देश की राजनीतिक पार्टी को हमें पार्टी की आंतरिक बैठकों के लिए आमंत्रित करना चाहिए या नहीं. यह विदेश मंत्रालय को तय करना है.'
जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल के अंतरराष्ट्रीय विभाग के प्रमुख अर्जुन थापा ने इस आयोजन को एक तरह की प्रचार बैठक बताया. थापा के हवाले से कहा गया, 'पार्टी के आधा दर्जन नेताओं सहित कोई न कोई व्यक्ति ब्रीफिंग में भाग लेगा.' हालांकि, नेपाल के विदेश मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव ने सीपीसी को ऐसी बैठक आयोजित करने की अनुमति देने को उचित ठहराते हुए कहा कि यह एक अलग राजनीतिक प्रणाली है. पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त सचिव ने कहा कि चूंकि सीपीसी चीन में एकतरफा सरकार चलाती है, इसलिए विदेश मंत्रालय ने उसे बैठक आयोजित करने से नहीं रोका.
हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि चीन ने नेपाल की राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश की है. नेपाल में चीन के प्रभाव को उसकी बड़ी भू-राजनीतिक रणनीति, खासकर भारत के साथ उसकी प्रतिद्वंद्विता और दक्षिण एशिया पर प्रभाव डालने के प्रयासों के संदर्भ में समझा जाना चाहिए. चीन ने नेपाल के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कई तरह की रणनीति अपनाई है. इसमें राजनीतिक पहुंच, आर्थिक निवेश और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए समर्थन शामिल है. चीन की भागीदारी का एक प्रमुख पहलू नेपाल को भारत के साथ बहुत अधिक निकटता से जुड़ने या चीन विरोधी गतिविधियों, खासकर तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित गतिविधियों के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल होने से रोकना है.
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाने का एक बड़ा जरिया रही है. हालांकि नेपाल 2017 में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल हो गया था. लेकिन कर्ज के जाल में फंसने के डर से उसने अभी तक बीजिंग द्वारा रखी गई शर्तों को स्वीकार नहीं किया है.
नेपाल के साथ चीन की राजनीतिक भागीदारी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ उसके संबंधों से और मजबूत हुई है. जब 2015 में नेपाल ने संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान अपनाया, तो दो प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों - सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओवादी सेंटर - ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. चीन ने इन पार्टियों के साथ संबंधों को मजबूत करने का अवसर देखा, खासकर 2018 में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में एकीकृत कम्युनिस्ट सरकार के गठन के बाद.
हालाँकि, आश्चर्य की बात यह है कि सीपीसी रविवार को नेपाल की राजधानी में बैठक आयोजित करने के लिए खुलेआम आगे बढ़ रही है. रविवार को होने वाले इस कार्यक्रम को 'काफी असाधारण' बताते हुए किंग्स कॉलेज लंदन में किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टैंक में उपाध्यक्ष (अध्ययन और विदेश नीति) हर्ष वी पंत ने कहा कि यह दो देशों के बीच संबंधों से कहीं आगे की बात है.
पंत ने ईटीवी भारत से कहा, 'आप दूसरे देशों की पार्टियों के साथ वैचारिक समानता रख सकते हैं. लेकिन सीपीसी नेपाल को अपने विस्तार के रूप में नहीं देख सकते है. उन्होंने कहा कि चीन नेपाल के साथ बातचीत के लिए सीपीसी को केंद्रीय साधन के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा, 'चीन यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि नेपाल की राजनीति में साम्यवाद हावी हो रहा है.
पंत के अनुसार, चीन जानता है कि नेपाल में वह जो भी करेगा, वह भारत के सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई संबंधों जैसी सॉफ्ट पावर की बराबरी नहीं कर सकता. इसलिए, वे एक अलग खेल खेलने की कोशिश कर रहे हैं, जो उल्टा पड़ सकता है. हालांकि, साथ ही उन्होंने कहा, 'भारत के लिए, यह (रविवार की बैठक) चिंता का विषय होगी. नेपाल में चीन की सक्रिय कूटनीति के अलावा, बीजिंग अब सीपीसी को एक लीवर के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.'
दरअसल, इस महीने की शुरुआत में नेपाल में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद चीनी सरकार के बजाय सीपीसी ने ही इस हिमालयी देश को राहत सामग्री मुहैया कराई थी. उस समय भी यह सामग्री नेपाल के राजनीतिक दलों को दी गई थी ताकि प्रभावित लोगों में बांटी जा सके. नेपाल में विभिन्न हलकों से इसकी आलोचना भी हुई थी. उस समय एक राजनीतिक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर पोस्ट से कहा था कि विदेशी राजनीतिक दलों द्वारा दूसरे देश के राजनीतिक दलों को सीधे समर्थन देना बहुत ही खराब प्रथा है.
नेता ने कहा, 'हमें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कहा था, इसलिए हम वहां गए लेकिन हममें से कोई भी समर्थन पाकर सहज नहीं था.' दूसरी ओर भारत ने नेपाल को राहत सामग्री केवल आधिकारिक चैनलों के माध्यम से ही उपलब्ध कराई है, जैसा कि नियम है. भारत में नेपाल के मुद्दों पर करीबी नजर रखने वाले एक जानकार के अनुसार इस तथ्य पर ध्यान देना होगा कि चीन इस हिमालयी देश में बिजली संयंत्रों और हवाई अड्डों में निवेश कर रहा है और नेपाली नागरिकों को छात्रवृत्ति दे रहा है.
नाम न बताने की शर्त पर जानकार ने कहा, 'अब, चीन नेपाल में राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन कर रहा है. यह तथ्य कि सीपीसी रविवार की बैठक को गोपनीय तरीके से आयोजित नहीं कर रही है, यह दर्शाता है कि वह चाहता है कि यह घटना समाचारों में रहे.' 20वीं सीपीसी केंद्रीय समिति का तीसरा पूर्ण अधिवेशन इस वर्ष जुलाई में आयोजित किया गया था.
अन्य बातों के अलावा सत्र के दौरान किए गए प्रस्तावों में वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खुलने, विदेशी व्यापार सुधार के लिए तंत्र को मजबूत करने, निवेश प्रबंधन प्रणालियों में सुधार करने और बीआरआई के तहत उच्च गुणवत्ता वाले सहयोग को बढ़ावा देने की चीन की प्रतिबद्धता शामिल है. सवाल यह है कि काठमांडू में सीपीसी 'पार्टी ब्रीफिंग' को इतने खुले तौर पर आयोजित करने के पीछे बीजिंग का एजेंडा क्या है? इस स्थान पर नजर रखें.