नई दिल्ली: नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' को उस समय बड़ा झटका लगा जब वह संसद में विश्वास मत हार गए और उन्हें पद छोड़ना पड़ा. दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा की अगुवाई वाली सीपीएन-यूएमएल द्वारा प्रचंड की सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद उनको विश्वास मत हासिल करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. अब नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) और नेपाली कांग्रेस की एक नई गठबंधन सरकार सत्ता संभालने के लिए तैयार है.
नेपाल की राजनीति में प्रचंड गए, ओली आए देउबा इंतजार में
2008 में नेपाल में राजशाही की समाप्ति के बाद सत्ता संभालने वाली सीपीएन-यूएमएल की यह 14वीं सरकार होगी. बता दें कि, जून के अंत और इस महीने की शुरुआत में नेपाल की राजनीति में बड़ा और महत्वपूर्ण उलटफेर हुआ है. पूर्वप्रधान मंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और पूर्व प्रधानमंत्री और सीपीएन-यूएमएल के नेता केपी शर्मा ओली ने नई गठबंधन सरकार बनाने के लिए 1 और 2 जुलाई की मध्यरात्रि को काठमांडू में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. समझौते के मुताबिक, केपी ओली और फिर देउबा वर्तमान सरकार के बचे साढ़े तीन साल के कार्यकाल के दौरान बारी-बारी से प्रधानमंत्री के रूप में काम करेंगे.
प्रचंड फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाए
इसके बाद नेपाल में एकाएक राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं, सीपीएन-यूएमएल ने देश के संविधान के अनुच्छेद 76 (2) के अनुसार दहल को 3 जुलाई को पद छोड़ने के लिए कहा. अनुच्छेद 76 (2) के अनुसार, राष्ट्रपति सदन के एक सदस्य को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करेगा जो दो या दो से अधिक दलों के समर्थन से बहुमत प्राप्त कर सकता है.
ओली ने साथ छोड़ा तो विश्वास मत हासिल करने का किया फैसला
वहीं राजनीतिक उठापटक के बीच सीपीएन-माओवादी केंद्र के पदाधिकारियों की एक बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रचंड पद नहीं छोड़ेंगे और इसके बजाय प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत के लिए जाएंगे. संविधान के अनुच्छेद 100 (2) के अनुसार, यदि प्रधान मंत्री जिस राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करते हैं वह विभाजित हो जाता है या गठबंधन में कोई राजनीतिक दल अपना समर्थन वापस ले लेता है, तो प्रधान मंत्री विश्वास मत के लिए प्रतिनिधि सभा में 30 दिनों के अंदर एक प्रस्ताव पेश करेंगे. इससे पुष्पकमल को पद पर बने रहने के लिए सिर्फ एक महीने का समय और मिल गया. हालांकि, दहल ने अपने पास मौजूद 30 दिन की समय सीमा से काफी पहले 12 जुलाई को शक्ति परीक्षण कराने का विकल्प चुना. दिसंबर 2022 में प्रधान मंत्री बनने के बाद से यह पांचवां फ्लोर टेस्ट था जिसे दहल ने फेस करने का विकल्प चुना.
ओली ओर देउबा साथ-साथ, अब आगे क्या
गौरतलब है कि नेपाली कांग्रेस पहले केंद्र में दहल के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा थी. हालांकि, इस साल मार्च में, सीपीएन-माओवादी सेंटर ने नेपाली कांग्रेस के साथ सभी संबंध तोड़ दिए और सीपीएन-यूएमएल को गठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. इस नए गठबंधन में अन्य शुरुआती साझेदार राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) और जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) थे. हालांकि, जनता समाजबादी पार्टी ने सीपीएन-माओवादी सेंटर के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए इस साल मई में गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया.
शुरुआत से प्रचंड ओली खुश नहीं थे!
वहीं, प्रचंड और ओली दोनों कथित तौर पर नई व्यवस्था से नाखुश थे. प्रचंड ने यह स्वीकार किया था कि, देश की मौजूदा राजनीति टिकाऊ नहीं है. उन्हें शायद ज्ञात था कि वे कम समय के लिए पीएम पद रहेंगे. साथ ही मंत्रियों में फेरबदल की भी बात उन्होंने कही थी. केपी ओली नेपाल की नई राजनीतिक व्यवस्था से शायद खुश नजर नहीं आ रहे थे. यह तब स्पष्ट हो गया जब उन्होंने सरकार द्वारा पेश किए गए वार्षिक बजट को माओवादी बजट बताया.
अविश्वास का एक प्रमुख कारण
इन सबके कारण सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओवादी सेंटर के बीच अविश्वास पैदा हुआ. सीपीएन-यूएमएल के उप महासचिव प्रदीप ग्यावली के अनुसार, दहल राष्ट्रीय सर्वसम्मति सरकार बनाने के लिए पिछले एक महीने से अधिक समय से नेपाली कांग्रेस के संपर्क में थे। यह सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओवादी सेंटर के बीच अविश्वास का एक प्रमुख कारण बन गया. हालांकि, जब नेपाली कांग्रेस ने दहल के प्रस्ताव को खारिज कर दिया, तो सीपीएन-यूएमएल ने चीजों को अपने हाथों में लेने का फैसला किया.
ओली और देउबा ने बंद कमरे में बैठक की
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट में ग्यावली के हवाले से कहा गया है, 'यूएमएल और कांग्रेस ने बातचीत शुरू की और राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक अभ्यास के लिए एक साथ आगे बढ़ने का फैसला किया.' 29 जून को ओली और देउबा ने बंद कमरे में बैठक की. 1 जुलाई को ओली ने दहल के साथ अलग से बैठक की थी. इसके बाद ओली और देउबा ने डील पक्की कर ली. शुक्रवार के शक्ति परीक्षण में, संसद के 275 सदस्यीय निचले सदन में केवल 63 सांसदों ने दहल के पक्ष में मतदान किया, जबकि 194 ने विपक्ष में मतदान किया, जबकि एक सदस्य अनुपस्थित रहे.
पहली बार देउबा और ओली गठबंधन सरकार बनाएंगे
यह पहली बार होगा जब देउबा और ओली गठबंधन सरकार बनाएंगे, हालांकि दोनों ने 2015 में देश के नए संविधान को अपनाने के लिए राष्ट्रीय सर्वसम्मति सरकार का नेतृत्व किया था. नेपाल के अस्थिर राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए, ऐसी सरकार की स्थिरता के बारे में सवाल उठते हैं क्योंकि नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल वैचारिक रूप से अलग-अलग पार्टियां हैं.
नई सरकार में इसको लेकर मतभेद
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई सरकार में विभागों के बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों के बीच पहले से ही मतभेद हैं. पोस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ओली, जो प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं लेकिन एक डिप्टी पीएम नियुक्त करने को राजी नहीं हैं. दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के अनुसार, नेपाली कांग्रेस को 11 मंत्रालय और सीपीएन-यूएमएल को 10 मंत्रालय मिलेंगे. जहां नेपाली कांग्रेस को गृह और विदेश मंत्रालय मिलने की उम्मीद है, वहीं सीपीएन-यूएमएल के पास वित्त और रक्षा विभाग होंगे. हालांकि, कई अन्य दलों द्वारा नई गठबंधन सरकार को समर्थन देने के साथ-साथ उप प्रधान मंत्री की नियुक्ति के मुद्दे के साथ, पोर्टफोलियो आवंटन पहले से ही एक चुनौती बनती जा रही है.
क्या बोले नेपाल की राजनीति में महारत रखने वाले विशेषज्ञ
नेपाल की वर्तमान राजनीति के विषय में मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के रिसर्च फेलो और नेपाल के मुद्दों के विशेषज्ञ निहार आर नायक ने ईटीवी भारत को बताया कि, नई गठबंधन सरकार व्यक्तिगत और पार्टी हितों का एक संयोजन है. नायक के अनुसार, नई सरकार के गठन से राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री रबी लामिछाने का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा, जो निवर्तमान गठबंधन सरकार का हिस्सा थे. लामिछाने कथित तौर पर नेपाली कांग्रेस से जुड़े कुछ भ्रष्टाचार के मामलों को खोलने की कोशिश कर रहे थे.दूसरी ओर, ओली प्रधानमंत्री बनकर पूर्व राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के उत्थान को रोक सकते हैं जो उनके खिलाफ सीपीएन-यूएमएल के भीतर एक गुट का नेतृत्व कर रही हैं.
नेपाल में प्रचंड सरकार का क्यों हुआ पतन?
नायक ने कहा, 'प्रधानमंत्री बनने के बाद ओली भंडारी के उत्थान को प्रभावी ढंग से रोक सकते हैं.' गौरतलब है कि भंडारी का चीन समर्थक रुख है. दहल सरकार के हटने के बाद सीपीएन-माओवादी सेंटर के बरशा मान पुन को देश के वित्त मंत्री के पद से भी बाहर होना पड़ेगा. पुन एक ऐसे व्यक्ति हैं जो नेपाल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रिय बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर जोर दे रहे हैं. नायक ने कहा कि नेपाल में बीआरआई परियोजनाओं का कार्यान्वयन भारत और अमेरिका दोनों के हितों के खिलाफ होगा. भारत नेपाल का सबसे बड़ा विकास सहायता भागीदार है और नई दिल्ली और काठमांडू का व्यापक द्विपक्षीय सहयोग एजेंडा है. नायक ने आगे बताया कि,इसी वजह से, नेपाल में प्रचंड सरकार के पतन ने एक तरह से कुछ बाहरी शक्तियों के हितों की रक्षा की है.
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