बेरूत: इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच युद्ध के खतरे ने लेबनानी मिलिशिया समूह, उसकी भूमिका और समर्थन पर ध्यान केंद्रित किया है. सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के जॉन अल्टरमैन ने वॉक्स को बताया कि हिजबुल्लाह को अपने अगले कदमों पर निर्णय लेने के लिए कई चिंताओं को ध्यान में रखना होगा.
उन्होंने कहा कि हिजबुल्लाह को ईरानी समर्थन बनाए रखना होगा. साथ ही उसे ईरान के आकलन और क्षेत्रीय रणनीति के साथ तालमेल बनाए रखना होगी. इतना ही नहीं लेबनान के 85 फीसदी लोग अब गरीबी रेखा से पहुंच गए हैं. ऐसे में समूह का इसका भी ख्याल रखना होगा.
ऑल्टरमैन ने कहा, "देश आर्थिक रूप से लड़खड़ा रहा है और अगर हिजबुल्लाह लेबनान पर विनाशकारी इजराइली हमलों के लिए आमंत्रित करता है, तो कुछ लेबनानी इसे लापरवाही और नुकसानदेह मानेंगे."
सबसे ताकतवर गैर-सरकारी सैन्य बल
बीबीसी का कहना है कि हिजबुल्लाह दुनिया में सबसे भारी हथियारों से लैस, गैर-सरकारी सैन्य बलों में से एक है. ईरान द्वारा वित्तपोषित और सुसज्जित, शिया समूह को अमेरिका और अन्य पश्चिमी सरकारों के साथ-साथ इजराइल, खाड़ी अरब देशों और अरब लीग द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है.
हालांकि, लेबनान के भीतर यह एक कानूनी राजनीतिक दल और एक सुरक्षा बल के रूप में काम करता है. यह दक्षिण और पूर्व में देश के बड़े हिस्से पर प्रभावी रूप से शासन करता है.
राजनीतिक और सामाजिक शक्ति
द गार्जियन के मुताबिक हिजबुल्लाह तीन दशकों में लेबनान में एक राजनीतिक और सामाजिक शक्ति बन गया है यह हॉस्पिटल, स्कूल, एक क्षेत्रीय टेलीविजन नेटवर्क और यहां तक कि एक हिलटॉप म्यूजियम भी चला रहा है, जो यूरोपीय पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है.
सांप्रदायिक आधार पर बहुत विभाजित लोकप्रियता
वाशिंगटन इंस्टीट्यूट थिंक टैंक के इस वर्ष की शुरुआत में किए गए सर्वे के अनुसार लेबनानी नागरिकों के बीच हिजबुल्लाह की लोकप्रियता सांप्रदायिक आधार पर बहुत विभाजित हुई है. सर्वे में 93 प्रतिशत शियाओं ने हिजबुल्लाह के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त किया. 89 फीसदी लोगों ने कहा कि उनकी राय बहुत सकारात्मक है. वहीं, अगर बात करें सुन्नी और ईसाइयों की तो सिर्फ 34 प्रतिशत सुन्नियों और 29 प्रतिशत ईसाइयों ने हिजबुल्ला को लेकर पॉजिटिव व्यूज दिए.
अरब बैरोमीटर द्वारा फरवरी और अप्रैल 2024 के बीच किए गए एक राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वे ने भी इसी तरह का निष्कर्ष निकाला. देश में हिजबुल्लाह के महत्वपूर्ण प्रभाव के बावजूद केवल 30 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्हें संगठन पर काफी या बहुत अधिक भरोसा है.
2019 में हिजबुल्लाह के खिलाफ प्रदर्शन
अक्टूबर 2019 में हिजबुल्लाह बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का टारगेट बन गया था, क्योंकि सरकारी कुप्रबंधन और वर्षों की धीमी वृद्धि ने लेबनान को दुनिया के सबसे अधिक कर्ज वालों देशों की लिस्ट में शामिल कर दिया था.
काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस ने कहा कि आर्थिक मंदी से निराश लाखों लेबनानी नागरिकों ने सरकार से जिसमें हिजबुल्लाह भी शामिल है, एक नए और तकनीकी नेतृत्व को सत्ता सौंपने का आह्वान किया." हालांकि, गाजा में युद्ध ने समूह के बारे में लोगों की धारणा बदल दी है.
हमास हमले के बाद बढ़ा समर्थन
वाशिंगटन इंस्टीट्यूट पोल और अरब बैरोमीटर सर्वे दोनों ने लेबनान के हालिया आर्थिक और राजनीतिक संकटों के बावजूद, क्रमशः 2020 और 2022 में किए गए अंतिम सर्वे के बाद से अनुमोदन में उछाल दर्ज किया. यहां उल्लेखनीय रूप से हिजबुल्लाह के लिए समर्थन बढ़ा है. खासकर क्षेत्रीय राजनीति में इसकी भूमिका को लेकर. यह समर्थन न केवल शिया आबादी में बल्कि देश के अन्य प्रमुख संप्रदायों में भी बढ़ा है.
हालांकि, यह समर्थन समूह के बजाय इजराइल के प्रति हिजबुल्लाह के रुख के प्रति सहानुभूति को दर्शाता है. फिर भी अगर इजराइल हिजबुल्लाह पर हमला करने के लिए लेबनान पर आक्रमण करता है, तो संगठन के लिए समर्थन और भी बढ़ सकता है.
स्वीडन में लुंड विश्वविद्यालय के एक एसोसिएट प्रोफेसर रोला एल-हुसैनी ने द कन्वर्सेशन पर कहा कि लेबनान के प्रमुख समुदाय काफी हद तक संयम बरतने का आग्रह करते रहे हैं और वे चाहते हैं कि हिजबुल्लाह इजराइल के साथ युद्ध से बचे, लेकिन अगर युद्ध छिड़ जाता है, तो विभिन्न लेबनानी संप्रदाय हिजबुल्लाह के इर्द-गिर्द एकजुट हो जाएंगे, जैसा कि 2006 में हुआ था.