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नवजात शिशु रात में नहीं सोते इसके पीछे है बहुत बड़ा कारण, जानकर हो जाएंगे हैरान, फिर न करेंगे यह गलती - Why dont babies sleep at night

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By ETV Bharat Health Team

Published : Aug 31, 2024, 7:00 PM IST

Updated : Aug 31, 2024, 7:10 PM IST

Why don't babies sleep at night? आप सभी ने देखा होगा कि सभी बच्चे पूरे दिन आराम से सोते हैं और पूरी रात जागते हैं. उनके सोने के घंटे बड़ों के विपरीत होते हैं. इस संदर्भ में कई लोगों के मन में बहुत से सवाल उठते हैं, जैसे कि बच्चे रात में क्यों नहीं सोते हैं, उनके ना सोने की वजह क्या हैं? और भी बहुत कुछ...अगर आप इन सारे सवालों का जवाब जानना चाहते हैं तो पढ़ें पूरी खबर...

Why don't babies sleep at night?
नवजात शिशु रात में नहीं सोते इसके पीछे है बहुत बड़ा कारण (CANVA)

हैदराबाद: नवजात बच्चों का कोई टाइम टेबल नहीं होता है, जब मन होगा तब दूध पीते हैं. वो ज्यादा देर तक सोते हैं और कम समय तक जागते हैं, खासकर रात में नवजात बच्चे बहुत कम ही सोते हैं, जिसके चलते शिशुओं के माता पिता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. नवजात बच्चों का ये स्लीपिंग पैटर्न जन्म के बाद लगभग 6 महीने तक ऐसा ही चलता है. वो अपनी मर्जी से सोते है और अपनी मर्जी से ही जगते हैं. वहीं, कुछ शिशु तो ऐसे भी होते हैं जो रात में बिल्कुल भी नहीं सोते हैं. जिसकी वजह से मां की भी नींद पूरी नहीं हो पाती है और वो पूरे दिन चिड़चिड़ा महसूस करती रहती है.

शिशुओं और छोटे बच्चों में सोने में कठिनाई होना और रात में कई बार जागना बहुत आम बात है. यह उनके माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए बहुत ही परेशान करने वाला और थका देने वाला हो सकता है. ऐसी कई रणनीतियां हैं जो शिशु और छोटे बच्चों की नींद को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं. बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. का कहना है कि नवजात बच्चे को रात में नींद न आने के पीछे कई छोटे-छोटे कारण होते हैं, जिसमें शामिल है...

अधिक दूध पिलाना: डॉ. शर्मिला का कहना है कि बच्चों को रात में नींद न आने का एक कारण अधिक दूध पिलाना भी हो सकता है. ज्यादा दूध के सेवन से नवजात बच्चों में कब्ज और दस्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ऐसा कहा जाता है कि रात के समय में ना सोने की समस्या उन बच्चों में अधिक आम है जो डिब्बाबंद दूध पीते हैं.

कम दूध पिलाना: डॉ. शर्मिला का कहना है कि अगर बच्चा दूध नहीं पीता है या पेट की जरूरत के मुताबिक खाना नहीं खाता है, तो भी रात में नींद में खलल पड़ सकता है. दरअसल, शिशु का पेट छोटा होता है और मां का दूध जल्दी डाइजेस्ट हो जाता है जिसकी वजह से उसे जल्दी भूख लग जाती है, और भूख के कारण भी उसे नींद नहीं आती है इसके साथ ही वो रोने लगता है. इसलिए अगर आप बच्चे को थोड़े थोड़े देर में फीड कराते रहे तो वो आराम से सो सकेगा.

अत्यधिक उत्तेजना: यह भी एक कारण है जिसके चलते बच्चे रात में जल्दी सो नहीं पाते हैं. शिशु संवेदनशील होते हैं. बहुत अधिक उत्तेजना उन्हें उनकी नींद के खेल से दूर कर सकती है.

दर्द के कारण: नवजात बच्चे काफी सेंसिटिव होते हैं जिसकी वजह से उन्हें हमेशा कोई ना कोई दिक्कत महसूस होती रहती है. कफ, कोल्ड और पेट में दर्द की वजह से भी शिशु रात में सो नहीं पाता है, ऐसे में शिशु का ध्यान रखें की आखिर उसे क्या दिक्कत हो रही है, उसकी परेशानी को समझें और डॉक्टर को दिखाएं.

गीलापन: रात के समय में कई बार बच्चे बिस्तर गीला कर देता है और हमे पता भी नहीं होता है, इस गीलेपन की वो रात में सो नहीं पाते और रोने लगते हैं इसलिए सोने से पहले बच्चे के लिए डायपर का इस्तेमाल करें इससे शिशु को गीलापन नहीं लगेगा और वो आराम से सो सकेगा.

थकान: शिशु पूरे दिन हाथ पैर चलाता है और खेलता है जिसकी वजह से उसे थकान महसूस होती है, और इस थकान के कारण उसे रात के समय सोने में दिक्कत होती है। इसके अलावा एक नवजात शिशु को 11 से 12 घंटे की नींद चाहिए होती है, और जब उसे ये नींद ना मिले तब वह थका हुआ महसूस करता है. जिसके कारण उसे नींद नहीं आती है.

इसी तरह, जब बच्चा गर्भ में होता है, तो मां पूरे दिन इधर-उधर घूमती रहती है और कुछ न कुछ करती रहती है. तब पेट में पल रहे बच्चे को ऐसा महसूस होता है जैसे पालने में एमनियोटिक द्रव आगे-पीछे झूल रहा है और वह गहरी नींद में सो जाता है. रात के समय में जब मां सो रही होती है. तब सब कुछ शांत रहता है, इसलिए कोई हलचल न होने के कारण शिशु पूरी रात जागते रहते है. बच्चे नौ महीने मां के गर्भ में बिताते हैं. वहीं, डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे जन्म के बाद भी कुछ महीनों तक यही तरीका अपनाते हैं. इसलिए वे रात को सो नहीं पाते.

वहीं, जब बच्चा 3 से 4 महीने का हो जाता है तो वह दिन और रात के बीच अंतर पहचानने लगता है और रात में सोना और दिन में खेलना शुरू कर देता है. बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शर्मिला ने आगे कहा कि इसलिए जन्म के बाद लगभग 3, 4 महीनों तक शिशु जब चाहें तब उठते और सोते हैं, क्योंकि उन्हें दिन और रात का अंतर नहीं ज्ञात रहता. मां के गर्भ में जिस तरह वे वक्त बिताते, बाहर भी कुछ महिनों उन्हें वहीं आदत रहती है. यह नेचुरल है. इसके अलावा बच्चों की नींद को बड़ी समस्या मानकर चिंता करने की जरूरत नहीं है.

शिशु का नींद चक्र कितना लम्बा होता है?
बड़े बच्चों और वयस्कों में हर 90-110 मिनट में रैपिड आई मूवमेंट (REM) और नॉन-REM नींद चक्र होता है. लेकिन नवजात शिशु का नींद चक्र लगभग आधा होता है, हर 50 मिनट में. REM नींद अपेक्षाकृत सक्रिय होती है, और कभी-कभी बच्चा मुस्कुराता है, चूसता है, भौहें सिकोड़ना है या हाथ और पैर थोड़ा हिल सकते हैं. नींद के चक्र के अंत में, कभी-कभी थोड़ी देर के लिए जागता है. लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि बच्चा वास्तव में जाग नहीं रहा है. कभी-कभी माता-पिता सोचते हैं कि यह व्यवहार उनके बच्चे के जागने का है और फिर वे उन्हें उठाते हैं और वास्तविक जागृति पैदा करते हैं.

इसके अलावा, अपने बच्चे का स्वास्थ्य जांच भी समय-समय पर करते रहें, कई बार ऐसी बीमारियां भी हो सकती हैं जो बच्चों की नींद में खलल पैदा करती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बेहतर होगा कि चिकित्सीय परीक्षणों की मदद से तुरंत इनका निदान किया जाए और उचित सावधानियां बरती जाएं.

नोट: यहां आपको दी गई सभी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और सुझाव केवल आपके समझने के लिए हैं। हम यह जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन, चिकित्सा और स्वास्थ्य पेशेवर सलाह के आधार पर प्रदान कर रहे हैं. लेकिन, बेहतर होगा कि इन पर अमल करने से पहले आप अपने निजी डॉक्टर की सलाह ले लें.

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हैदराबाद: नवजात बच्चों का कोई टाइम टेबल नहीं होता है, जब मन होगा तब दूध पीते हैं. वो ज्यादा देर तक सोते हैं और कम समय तक जागते हैं, खासकर रात में नवजात बच्चे बहुत कम ही सोते हैं, जिसके चलते शिशुओं के माता पिता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. नवजात बच्चों का ये स्लीपिंग पैटर्न जन्म के बाद लगभग 6 महीने तक ऐसा ही चलता है. वो अपनी मर्जी से सोते है और अपनी मर्जी से ही जगते हैं. वहीं, कुछ शिशु तो ऐसे भी होते हैं जो रात में बिल्कुल भी नहीं सोते हैं. जिसकी वजह से मां की भी नींद पूरी नहीं हो पाती है और वो पूरे दिन चिड़चिड़ा महसूस करती रहती है.

शिशुओं और छोटे बच्चों में सोने में कठिनाई होना और रात में कई बार जागना बहुत आम बात है. यह उनके माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए बहुत ही परेशान करने वाला और थका देने वाला हो सकता है. ऐसी कई रणनीतियां हैं जो शिशु और छोटे बच्चों की नींद को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं. बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. का कहना है कि नवजात बच्चे को रात में नींद न आने के पीछे कई छोटे-छोटे कारण होते हैं, जिसमें शामिल है...

अधिक दूध पिलाना: डॉ. शर्मिला का कहना है कि बच्चों को रात में नींद न आने का एक कारण अधिक दूध पिलाना भी हो सकता है. ज्यादा दूध के सेवन से नवजात बच्चों में कब्ज और दस्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ऐसा कहा जाता है कि रात के समय में ना सोने की समस्या उन बच्चों में अधिक आम है जो डिब्बाबंद दूध पीते हैं.

कम दूध पिलाना: डॉ. शर्मिला का कहना है कि अगर बच्चा दूध नहीं पीता है या पेट की जरूरत के मुताबिक खाना नहीं खाता है, तो भी रात में नींद में खलल पड़ सकता है. दरअसल, शिशु का पेट छोटा होता है और मां का दूध जल्दी डाइजेस्ट हो जाता है जिसकी वजह से उसे जल्दी भूख लग जाती है, और भूख के कारण भी उसे नींद नहीं आती है इसके साथ ही वो रोने लगता है. इसलिए अगर आप बच्चे को थोड़े थोड़े देर में फीड कराते रहे तो वो आराम से सो सकेगा.

अत्यधिक उत्तेजना: यह भी एक कारण है जिसके चलते बच्चे रात में जल्दी सो नहीं पाते हैं. शिशु संवेदनशील होते हैं. बहुत अधिक उत्तेजना उन्हें उनकी नींद के खेल से दूर कर सकती है.

दर्द के कारण: नवजात बच्चे काफी सेंसिटिव होते हैं जिसकी वजह से उन्हें हमेशा कोई ना कोई दिक्कत महसूस होती रहती है. कफ, कोल्ड और पेट में दर्द की वजह से भी शिशु रात में सो नहीं पाता है, ऐसे में शिशु का ध्यान रखें की आखिर उसे क्या दिक्कत हो रही है, उसकी परेशानी को समझें और डॉक्टर को दिखाएं.

गीलापन: रात के समय में कई बार बच्चे बिस्तर गीला कर देता है और हमे पता भी नहीं होता है, इस गीलेपन की वो रात में सो नहीं पाते और रोने लगते हैं इसलिए सोने से पहले बच्चे के लिए डायपर का इस्तेमाल करें इससे शिशु को गीलापन नहीं लगेगा और वो आराम से सो सकेगा.

थकान: शिशु पूरे दिन हाथ पैर चलाता है और खेलता है जिसकी वजह से उसे थकान महसूस होती है, और इस थकान के कारण उसे रात के समय सोने में दिक्कत होती है। इसके अलावा एक नवजात शिशु को 11 से 12 घंटे की नींद चाहिए होती है, और जब उसे ये नींद ना मिले तब वह थका हुआ महसूस करता है. जिसके कारण उसे नींद नहीं आती है.

इसी तरह, जब बच्चा गर्भ में होता है, तो मां पूरे दिन इधर-उधर घूमती रहती है और कुछ न कुछ करती रहती है. तब पेट में पल रहे बच्चे को ऐसा महसूस होता है जैसे पालने में एमनियोटिक द्रव आगे-पीछे झूल रहा है और वह गहरी नींद में सो जाता है. रात के समय में जब मां सो रही होती है. तब सब कुछ शांत रहता है, इसलिए कोई हलचल न होने के कारण शिशु पूरी रात जागते रहते है. बच्चे नौ महीने मां के गर्भ में बिताते हैं. वहीं, डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे जन्म के बाद भी कुछ महीनों तक यही तरीका अपनाते हैं. इसलिए वे रात को सो नहीं पाते.

वहीं, जब बच्चा 3 से 4 महीने का हो जाता है तो वह दिन और रात के बीच अंतर पहचानने लगता है और रात में सोना और दिन में खेलना शुरू कर देता है. बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शर्मिला ने आगे कहा कि इसलिए जन्म के बाद लगभग 3, 4 महीनों तक शिशु जब चाहें तब उठते और सोते हैं, क्योंकि उन्हें दिन और रात का अंतर नहीं ज्ञात रहता. मां के गर्भ में जिस तरह वे वक्त बिताते, बाहर भी कुछ महिनों उन्हें वहीं आदत रहती है. यह नेचुरल है. इसके अलावा बच्चों की नींद को बड़ी समस्या मानकर चिंता करने की जरूरत नहीं है.

शिशु का नींद चक्र कितना लम्बा होता है?
बड़े बच्चों और वयस्कों में हर 90-110 मिनट में रैपिड आई मूवमेंट (REM) और नॉन-REM नींद चक्र होता है. लेकिन नवजात शिशु का नींद चक्र लगभग आधा होता है, हर 50 मिनट में. REM नींद अपेक्षाकृत सक्रिय होती है, और कभी-कभी बच्चा मुस्कुराता है, चूसता है, भौहें सिकोड़ना है या हाथ और पैर थोड़ा हिल सकते हैं. नींद के चक्र के अंत में, कभी-कभी थोड़ी देर के लिए जागता है. लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि बच्चा वास्तव में जाग नहीं रहा है. कभी-कभी माता-पिता सोचते हैं कि यह व्यवहार उनके बच्चे के जागने का है और फिर वे उन्हें उठाते हैं और वास्तविक जागृति पैदा करते हैं.

इसके अलावा, अपने बच्चे का स्वास्थ्य जांच भी समय-समय पर करते रहें, कई बार ऐसी बीमारियां भी हो सकती हैं जो बच्चों की नींद में खलल पैदा करती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बेहतर होगा कि चिकित्सीय परीक्षणों की मदद से तुरंत इनका निदान किया जाए और उचित सावधानियां बरती जाएं.

नोट: यहां आपको दी गई सभी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और सुझाव केवल आपके समझने के लिए हैं। हम यह जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन, चिकित्सा और स्वास्थ्य पेशेवर सलाह के आधार पर प्रदान कर रहे हैं. लेकिन, बेहतर होगा कि इन पर अमल करने से पहले आप अपने निजी डॉक्टर की सलाह ले लें.

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Last Updated : Aug 31, 2024, 7:10 PM IST
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