पटनाः गिलोय एक प्रकार की लता है जो आमतौर पर पेड़ों और झाड़ियों पर उगती है. इसे अंग्रेजी में टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया (Tinospora cordifolia) कहते हैं. आयुर्वेद में इसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि कहते हैं. गिलोय का गुण अच्छा होता है. यही वह औषधि है जिसका कोरोना के समय भरपूर उपयोग में लाया गया. इसके बाद इसे हर कोई जानने लगा. हालांकि यह प्राचीन काल से औषधि के रूप में इस्तेमाल होते आया है. बिहार के पटना मसौढ़ी में बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती है.
कई रोगों से छुटकाराः आयुर्वेद विशेषज्ञ विश्वरंजन आचार्य ने बताया कि आयुर्वेद साहित्य में गिलोय को बुखार का महान औषदि बताया गया है इसलिए इसे जीवंतिका भी कहा जाता है. शरीर से यह टॉक्सिन्स निकालने का काम करता है और खून साफ करने का काम करता है. इसके अलावा शरीर के बैक्टीरिया से भी लड़ता है. लीवर को स्वस्थ रखता है. इसके साथ डेंगू, मलेरिया और जानलेवा बुखार से भी बचाता है.
"गिलोय को आयुर्वेद में अमृत के समान माना गया है. यह कई बीमारियों में काम आता है. इसको लेकर हम लोगों ने मसौढी में कई जगहों पर बृहद पैमाने पर गिलोय का बेल लगाया है. इसका इस्तेमाल कई बीमारियों में किया जाता है." -विश्वरंजन आचार्य, आयुर्वेद चिकित्सक
जोड़ों के दर्द को भगाने में कामगारः इसके अलावे जोड़ों का दर्द, गठिया, आंखों की रोशनी बढ़ाने, पाचन में सुधार और एसीडीटी में फायदेमंद है. यह शुगर की बीमारी में भी काफी फायदेमंद होता है. शरीर में इंसुलिन की प्रक्रिया को तेज करता है. लोगों का मानसिक तनाव भी कम करता है.
गिलोय का सेवन कैसे करें? इसके डंठल को एक गिलास पानी में तब तक उबालना है जब तक पानी आधा ना हो जाए. पानी को छानकर रोज इसका सेवन करना चाहिए. इसके अलावे आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए इसका पाउडर पानी में मिलाकर आंखों पर लगाना चाहिए. जोड़ों का दर्द और गठिया वाले इसके पाउडर को दूध में उबालकर पीना चाहिए.
गिलोय का नुकसान: आयुर्वेद के फायदे के साथ साथ नुकसान भी होते हैं. इसी प्रकार गिलोय के फायदे के साथ साथ नुकसान भी है. इसकी तासीर गर्म होती है. इसलिए इसका ज्यादा सेवन करने से पेट से जुड़ी समस्या जैसे गैस और जलन बढ़ सकती है. लीवर और किडनी की बीमारी वाले लोगों को इसका सेवन करना चाहिए. इसलिए डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करें.
नीम का पेड़ वाला गिलोय बेहतरः आयुर्वेद में गिलोय को कैसे उपजाया जाता है, यह भी मायने रखता है. आयुर्वेद के अनुसार जिस पेड़ पर इस पौधे की लता चढ़ती है उस पौधे का गुण अपने अंदर समाहित कर लेता है. इसलिए गिलोय नीम के पेड़ पर हो तो यह अमृत के सामान माना जाता है. इसलिए नीम के पेड़ के पास इस पौधे को लगाना चाहिए.
गिलोय असली है या नकली? गिलोय का सेवन करने से पहले यह पता करना जरूरी है कि यह नकली है या असली. इसकी पहचान करने के लिए आसान तरीका है. इसके डंठल को आयोडीन के घोल में डाला जाता है तो इसका रंग गहरे नीले रंग का हो जाता है. इससे पता चल जाता है कि यह असली गिलोय है. इसका पत्ता पान के पत्ते के समान होता है डंठल उंगली इतना मोटा होता है.
"गिलोय का होम्योपैथी में काफी प्रयोग है. इसके जड़ों से और इसके पत्तों से बनाए गई दवा का प्रयोग मदर टींचर (जोड़ों का दर्द) में काफी पैमाने पर होता है. गिलोय हर व्यक्ति को अपने-अपने घरों में लगानी चाहिए. इसके जड़, पत्ता और तना का प्रयोग होता है." -डॉ. सुधीर पंडित, होम्योपैथिक चिकित्सक, मसौढी
पौराणिक मान्यताएंः गिलोय को लेकर पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी है. इसका संबंध महाभारत काल से जुड़ा है. सागर मंथन के दौरान समुद्र से जब अमृत का कलश निकला था तो दैत्य और देव के बीच छीना झपटी चल रही थी. उसी दौरान अमृत कलश से एक बूंद अमृत पृथ्वी पर आकर गिरी. इसी से अमृत बेल उग गयी. इसे से अमृता या गिलोय कहा जाता है.
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