नई दिल्ली : भारतीय रिसर्चर्स ने पहला मेक इन इंडिया मानव सांस सेंसर विकसित किया है. इस डिवाइस का प्राथमिक कार्य शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामलों में सांस में अल्कोहल की मात्रा को मापना है. हालांकि सेंसिंग परतों में कुछ बदलाव से यह डिवाइस अस्थमा, मधुमेह केटोएसिडोसिस, पल्मोनरी रोग, स्लीप एपनिया और कार्डियक अरेस्ट जैसी बीमारियों के लक्षण वर्णन के लिए भी बहुत उपयोगी हो सकता है.
इससे व्यक्ति की सांस में वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों की निगरानी की जाती है. यह रिसर्च आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने की है. उनकी यह डिवाइस कमरे के तापमान पर काम करने वाले मेटल ऑक्साइड और नैनो सिलिकॉन पर आधारित है.
आईआईटी का कहना है कि मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण पर वायु प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बढ़ती चिंताओं को देखते हुए, एक त्वरित, किफायती, चीरफाड़हीन स्वास्थ्य निगरानी उपकरण के विकास की अधिक आवश्यकता थी.
मौजूदा सेंसर, ईंधन सेल-आधारित तकनीक पर आधारित हैं. इसलिए इसने शोधकर्ताओं को इस दिशा में काम करने और एक श्वास वीओसी सेंसर विकसित करने के लिए प्रेरित किया. इसकी लागत मौजूदा ईंधन सेल प्रौद्योगिकी-आधारित डिवाइस से कम है.
इसी तरह, टीम ने आंशिक रूप से कम ग्राफीन ऑक्साइड पर आधारित एक श्वास निगरानी सेंसर विकसित किया है. यह शोध पीएचडी छात्र निखिल वडेरा द्वारा की गई है. इसे आईईई सेंसर्स लेटर्स में प्रकाशित किया गया है. इसी तरह की इलेक्ट्रॉनिक नाक का उपयोग श्वास बायोमार्कर (जैव मार्कर) का पता लगाने और माप के लिए किया जा सकता है.
वीओसी कार्बनिक रसायनों का एक विविध समूह है, जो हवा में वाष्पित हो सकता है और आमतौर पर विभिन्न उत्पादों और वातावरणों में पाए जाते हैं. वर्तमान श्वास विश्लेषक या तो भारी हैं, या लंबे समय तक तैयारी के समय एवं हीटर की आवश्यकता होती है. इससे डिवाइस की बिजली खपत बढ़ जाती है और लंबा इंतजार करना पड़ता है. नया विकसित सेंसर कमरे के तापमान पर काम करता है और प्लग एंड प्ले की तरह है. सेंसर नमूने अल्कोहल के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और प्रतिरोध में बदलाव दर्शाते हैं.
यह परिवर्तन नमूने में अल्कोहल की सांद्रता के समानुपाती होता है. इसके अलावा, इस सेंसर सारणी से एकत्र किए गए आंकड़ों को सांस के विभिन्न घटकों के पैटर्न की पहचान करने और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के मिश्रण से अल्कोहल को अलग करने के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करके संसाधित किया जाता है.
अनुसंधान को जैव प्रौद्योगिकी इग्निशन अनुदान योजना जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया गया था. शोध के भविष्य के दायरे के बारे में बात करते हुए, डॉ. साक्षी धानेकर ने कहा, 'इस दिशा में निरंतर अनुसंधान और विकास से स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण से लेकर पहनने योग्य प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोगों तक विभिन्न क्षेत्रों में सांस निदान के व्यावहारिक कार्यान्वयन को बढ़ावा मिल सकता है. सेंसर के आउटपुट को रास्पबेरी पाई से जोड़ा जा सकता है और आंकडों को चिकित्सक के पास भी फोन द्वारा भेजा जा सकता है.'
उन्होंने बताया कि हमारा स्टार्ट अप ' सेंसकृति टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड ' समाज के लाभ के लिए इनोवेशन करता है. टीम अनुसंधान में चुनौती को एक अवसर के रूप में देखती है और रचनात्मकता, दृढ़ता और असाधारण टीम वर्क, इन तीन साधनों का उपयोग करके इसे हल करती है.