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आयुर्वेद के अनुसार रोजाना खाएं यह 7 पत्तियां, बिना किसी दवा के हाई यूरिक एसिड कंट्रोल हो जाएगा

यूरिक एसिड बढ़ जाए तो बहुत सी समस्याएं होंने लगती हैं. आयुर्वेद के अनुसार, कुछ पत्तियां खाने से इसे कंट्रोल में किया जा सकता है.

eat these 7 leaves daily, high uric acid will be controlled naturally without any medicine
आयुर्वेद के अनुसार रोजाना खाएं यह 7 पत्तियां, बिना किसी दवा के प्राकृतिक रूप से हाई यूरिक एसिड कंट्रोल हो जाएगा (CANVA)
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By ETV Bharat Health Team

Published : Nov 1, 2024, 2:35 PM IST

यूरिक एसिड ब्लड में प्यूरीन के टूटने से उत्पन्न एक केमिकल है. सीधे शब्दों में कहें तो यूरिक एसिड खून में पाया जाने वाला एक वेस्ट प्रोडक्ट है. यह आमतौर पर मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाता है और शरीर में जमा हो जाता है. समस्या तब पैदा होती है, जब इसे मूत्र के माध्यम से बाहर नहीं निकाला जा सकता है. इस स्थिति के 'हाइपरयुरिसीमिया' कहा जाता है. यूरिक एसिड तब उत्पन्न होता है जब हम जो खाना खाते हैं उसमें मौजूद प्यूरीन पचता है. यह एक वेस्ट प्रोडक्ट है जिसे शरीर से निकालना जरूरी है.

वहीं, जब खून में यूरिक एसिड बढ़ जाता है तो शरीर में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं...

  • गंभीर गठिया
  • गठिया
  • किडनी में पथरी बनना

हड्डियों का कमजोर होना और फ्रैक्चर जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

सिद्ध और आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसके लिए कई हर्बल उपचार मौजूद हैं. पारंपरिक चिकित्सा में कहा गया है कि ब्लड में यूरिक एसिड की वृद्धि शरीर में वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण होती है. इन्हें नियंत्रित करने के लिए आहार के साथ विशेष हर्बल पत्तियों का उपयोग किया जाता है. जिनमें है...

करी पत्ता
करी पत्ता आयरन से भरपूर होता है. यह पाचन में भी सुधार लाता है. हम अपने खाने में करी पत्ते को अलग रख देते हैं. लेकिन आयुर्वेद में करी पत्ते को कई बीमारियों के इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. करी पत्ते में प्रचुर मात्रा में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं. करी पत्ता लीवर के स्वास्थ्य में भी मदद करता है. खून में अतिरिक्त यूरिक एसिड फ़िल्टर होकर मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाता है.

तुलसी के पत्ते
​भारत में तुलसी के पत्तों को एक पवित्र पौधा माना जाता है. इसमें कई औषधीय गुण भी हैं. आयुर्वेद में तुलसी के पत्ते को कफ संबंधी कई रोगों में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है. तुलसी के कुछ अणुओं में रक्त में यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित करने की क्षमता होती है. इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं. मूत्र उत्पादन को उत्तेजित करता है। यह शरीर से यूरिक एसिड को बाहर निकालता है. ये फायदे पाने के लिए रोजाना खाली पेट 10-15 पत्तियां चबाएं.

गिलोय का पत्ता
गिलोय के पत्ते को जिलाई और अमृतावल्ली जैसे कई नामों से जाना जाता है. इसका अर्क डायबिटीज से लेकर कोविड जैसी बीमारियों को भी कंट्रोल करने की ताकत रखता है.

अश्वगंधा

आयुर्वेद में अश्वगंधा के बाद यह दूसरी सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटी है. इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण यूरिक एसिड को नियंत्रित करते हैं और गठिया और सूजन से राहत दिलाते हैं।

करेला का पत्ता
एक गलत धारणा है कि करेला केवल मधुमेह रोगियों के लिए है. आयुर्वेद में न केवल करेला बल्कि इसकी पत्तियों और बीजों का भी कई रोगों में औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है. करेले की पत्तियों में खून को साफ करने और उसमें से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का गुण होता है. इसके एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण रक्त में यूरिक एसिड के स्तर को कम करने में मदद करते हैं. रोज सुबह खाली पेट 2-3 पत्तियों का सेवन करें या फिर इसे पानी में उबालकर चाय की तरह पिएं.

ब्राह्मी
आयुर्वेद में ब्राह्मी को काफी महत्व दिया गया है. इस पैधे के कई गुण है साथ ही साथ इसके पत्ते भी काफी लाभकारी होते है. ब्राह्मी के सेवन से तंत्रिका तंत्र को स्वस्थ रखा जा सकता है. यह विशेष रूप से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार कर सकता है. रक्त से अपशिष्ट को शुद्ध करके अतिरिक्त यूरिक एसिड स्तर को नियंत्रित करता है.

आंवले के पत्ते
आंवला विटामिन सी से भरपूर फल है. इसी तरह इसकी पत्तियां भी विटामिन सी से भरपूर होती हैं. इसे एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होती है. इस प्रकार आयुर्वेदिक और सिद्ध चिकित्सा में आंवले को कायाकल्प जड़ी बूटी कहा जाता है. आंवले की पत्तियों में यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित करने की क्षमता होती है. इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण और सूजन रोधी गुण बढ़े हुए यूरिक एसिड के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करते हैं. यूरिक एसिड को नियंत्रित करने के लिए रोजाना आंवले की कुछ पत्तियां चबाएं और उसका रस निगल लें.

मोरिंगा का पत्ता

मोरिंगा की पत्तियां विभिन्न विटामिन और खनिजों से भरपूर होती हैं. इसके शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट और सूजन-रोधी गुण यूरिक एसिड के स्तर को प्राकृतिक रूप से तटस्थ रखने में मदद करते हैं. इस मोरिंगा की पत्ती को रोजाना पकाकर खाया जा सकता है. मोरिंगा की पत्ती को पीसकर उसका पाउडर बनाकर चाय के रूप में पी सकते हैं.

ध्यान रखने वाली बातें
ऊपर बताई गई आयुर्वेदिक पत्तियों को रोजाना खाने से रक्त में यूरिक एसिड की अधिकता को रोका जा सकता है. प्राकृतिक रूप से यूरिक एसिड के उत्पादन को कम करने के लिए इन जड़ी-बूटियों के साथ स्वस्थ आहार का भी पालन करें. अधिक चीनी वाले खाद्य पदार्थों से बचें. शराब पीना और धूम्रपान करना बंद करें. खूब सारा पानी पीना जरूरी है. इसके अलावा लेमन टी और ग्रीन टी भी अधिक पिएं. हाई ब्लड यूरिक एसिड स्तर वाले लोगों को भी मांसाहारी भोजन का सेवन कम करना चाहिए. अंग मांस, विशेषकर लीवर से बचें.

https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC6125106/

https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S0924224422000875

महत्वपूर्ण नोट: इस वेबसाइट पर आपको प्रदान की गई सभी स्वास्थ्य जानकारी, चिकित्सा युक्तियां और सुझाव केवल आपकी जानकारी के लिए हैं. हम यह जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन, चिकित्सा और स्वास्थ्य पेशेवर सलाह के आधार पर प्रदान कर रहे हैं, लेकिन बेहतर होगा कि इन पर अमल करने से पहले आप अपने निजी डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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यूरिक एसिड ब्लड में प्यूरीन के टूटने से उत्पन्न एक केमिकल है. सीधे शब्दों में कहें तो यूरिक एसिड खून में पाया जाने वाला एक वेस्ट प्रोडक्ट है. यह आमतौर पर मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाता है और शरीर में जमा हो जाता है. समस्या तब पैदा होती है, जब इसे मूत्र के माध्यम से बाहर नहीं निकाला जा सकता है. इस स्थिति के 'हाइपरयुरिसीमिया' कहा जाता है. यूरिक एसिड तब उत्पन्न होता है जब हम जो खाना खाते हैं उसमें मौजूद प्यूरीन पचता है. यह एक वेस्ट प्रोडक्ट है जिसे शरीर से निकालना जरूरी है.

वहीं, जब खून में यूरिक एसिड बढ़ जाता है तो शरीर में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं...

  • गंभीर गठिया
  • गठिया
  • किडनी में पथरी बनना

हड्डियों का कमजोर होना और फ्रैक्चर जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

सिद्ध और आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसके लिए कई हर्बल उपचार मौजूद हैं. पारंपरिक चिकित्सा में कहा गया है कि ब्लड में यूरिक एसिड की वृद्धि शरीर में वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण होती है. इन्हें नियंत्रित करने के लिए आहार के साथ विशेष हर्बल पत्तियों का उपयोग किया जाता है. जिनमें है...

करी पत्ता
करी पत्ता आयरन से भरपूर होता है. यह पाचन में भी सुधार लाता है. हम अपने खाने में करी पत्ते को अलग रख देते हैं. लेकिन आयुर्वेद में करी पत्ते को कई बीमारियों के इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. करी पत्ते में प्रचुर मात्रा में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं. करी पत्ता लीवर के स्वास्थ्य में भी मदद करता है. खून में अतिरिक्त यूरिक एसिड फ़िल्टर होकर मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाता है.

तुलसी के पत्ते
​भारत में तुलसी के पत्तों को एक पवित्र पौधा माना जाता है. इसमें कई औषधीय गुण भी हैं. आयुर्वेद में तुलसी के पत्ते को कफ संबंधी कई रोगों में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है. तुलसी के कुछ अणुओं में रक्त में यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित करने की क्षमता होती है. इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं. मूत्र उत्पादन को उत्तेजित करता है। यह शरीर से यूरिक एसिड को बाहर निकालता है. ये फायदे पाने के लिए रोजाना खाली पेट 10-15 पत्तियां चबाएं.

गिलोय का पत्ता
गिलोय के पत्ते को जिलाई और अमृतावल्ली जैसे कई नामों से जाना जाता है. इसका अर्क डायबिटीज से लेकर कोविड जैसी बीमारियों को भी कंट्रोल करने की ताकत रखता है.

अश्वगंधा

आयुर्वेद में अश्वगंधा के बाद यह दूसरी सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटी है. इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण यूरिक एसिड को नियंत्रित करते हैं और गठिया और सूजन से राहत दिलाते हैं।

करेला का पत्ता
एक गलत धारणा है कि करेला केवल मधुमेह रोगियों के लिए है. आयुर्वेद में न केवल करेला बल्कि इसकी पत्तियों और बीजों का भी कई रोगों में औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है. करेले की पत्तियों में खून को साफ करने और उसमें से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का गुण होता है. इसके एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण रक्त में यूरिक एसिड के स्तर को कम करने में मदद करते हैं. रोज सुबह खाली पेट 2-3 पत्तियों का सेवन करें या फिर इसे पानी में उबालकर चाय की तरह पिएं.

ब्राह्मी
आयुर्वेद में ब्राह्मी को काफी महत्व दिया गया है. इस पैधे के कई गुण है साथ ही साथ इसके पत्ते भी काफी लाभकारी होते है. ब्राह्मी के सेवन से तंत्रिका तंत्र को स्वस्थ रखा जा सकता है. यह विशेष रूप से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार कर सकता है. रक्त से अपशिष्ट को शुद्ध करके अतिरिक्त यूरिक एसिड स्तर को नियंत्रित करता है.

आंवले के पत्ते
आंवला विटामिन सी से भरपूर फल है. इसी तरह इसकी पत्तियां भी विटामिन सी से भरपूर होती हैं. इसे एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होती है. इस प्रकार आयुर्वेदिक और सिद्ध चिकित्सा में आंवले को कायाकल्प जड़ी बूटी कहा जाता है. आंवले की पत्तियों में यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित करने की क्षमता होती है. इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण और सूजन रोधी गुण बढ़े हुए यूरिक एसिड के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करते हैं. यूरिक एसिड को नियंत्रित करने के लिए रोजाना आंवले की कुछ पत्तियां चबाएं और उसका रस निगल लें.

मोरिंगा का पत्ता

मोरिंगा की पत्तियां विभिन्न विटामिन और खनिजों से भरपूर होती हैं. इसके शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट और सूजन-रोधी गुण यूरिक एसिड के स्तर को प्राकृतिक रूप से तटस्थ रखने में मदद करते हैं. इस मोरिंगा की पत्ती को रोजाना पकाकर खाया जा सकता है. मोरिंगा की पत्ती को पीसकर उसका पाउडर बनाकर चाय के रूप में पी सकते हैं.

ध्यान रखने वाली बातें
ऊपर बताई गई आयुर्वेदिक पत्तियों को रोजाना खाने से रक्त में यूरिक एसिड की अधिकता को रोका जा सकता है. प्राकृतिक रूप से यूरिक एसिड के उत्पादन को कम करने के लिए इन जड़ी-बूटियों के साथ स्वस्थ आहार का भी पालन करें. अधिक चीनी वाले खाद्य पदार्थों से बचें. शराब पीना और धूम्रपान करना बंद करें. खूब सारा पानी पीना जरूरी है. इसके अलावा लेमन टी और ग्रीन टी भी अधिक पिएं. हाई ब्लड यूरिक एसिड स्तर वाले लोगों को भी मांसाहारी भोजन का सेवन कम करना चाहिए. अंग मांस, विशेषकर लीवर से बचें.

https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC6125106/

https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S0924224422000875

महत्वपूर्ण नोट: इस वेबसाइट पर आपको प्रदान की गई सभी स्वास्थ्य जानकारी, चिकित्सा युक्तियां और सुझाव केवल आपकी जानकारी के लिए हैं. हम यह जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन, चिकित्सा और स्वास्थ्य पेशेवर सलाह के आधार पर प्रदान कर रहे हैं, लेकिन बेहतर होगा कि इन पर अमल करने से पहले आप अपने निजी डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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