नई दिल्ली: भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यस्थाओं में से एक है. लेकिन इसके बावजूद रोजगार की समस्या बनी हुई है. सरकार लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर पर अधिक खर्च कर रही है, जिससे ग्रोथ रेट तो बढ़ रहा है. लेकिन प्राइवेट निवेश में कमी और बैंक डिपॉजिट का ग्रोथ धीमा हो गया है, जिससे आर्थिक संतुलन बिगड़ रहा है. बैंक तभी आपको कर्ज दे पाएंगे जब बैंकों के पास कैश होंगे. लेकिन डिपॉजिट में कमी और लोन बांटने के अनियंत्रित नियमों ने आर्थिक विकास को धीमा कर दिया है. लेकिन इन सब के बीच शेयर बाजार और पूंजी बाजार में निवेश लगातार बढ़ रहा है.
देश की वित्त मंत्री और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैंकों से अपनी जमा बढ़ाने के लिए कदम उठाने को कहा है. इसके बावजूद बैंकों में लिक्वीडिटी (कैश) की कमी होती जा रही है. बैंकों में जमा में आ रही गिरावट सरकार से लेकर आरबीआई तक के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. ये देश के आर्थिक गतिविधियों को प्रभाविच कर सकता है.
देश में डिपॉजिट में कमी
बैंकों में डिपॉजिट में कमी आने की समस्या को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के एक बयान से समझा जा सकता है. उन्होंने कहा कि बैंकों को अपने कोर काम पर ध्यान देना चाहिए. वित्त मंत्री के कहने का मतलब है कि बैंक लोगों की जमा स्वीकार करें और फिर उसे लोन के तौर पर बांटने में काफी सावधानी रखें.
बता दें कि अब देश के बैंकिंग सेक्टर में कैश में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है. यह 2.86 लाख करोड़ रुपये के उच्च स्तर से घटकर 28 अगस्त को 0.95 लाख करोड़ रह गई है.
क्या लोन मिलना होगा मुश्किल?
देश के बैंकों में डिपॉजिट में कमी आ रही है. इसकों एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने चिंताजनक बताया है. अगर ऐसा ही हाल रहा तो आने वाले समय में बैंकों को लोन देने की दर को कम करना पड़ सकता है. देश में अभी बैंकों की लोन ग्रोथ लगातार बढ़ रही है. इसकी वजह से बैंक लोन की शर्तों का अभी ज्यादा कठोर नहीं कर सकते है. बैंकों में लोग जो पैसा जमा करते हैं तो उसी को बैंक कर्ज के तौर पर देकर ब्याज से मुनाफा कमाती हैं. लेकिन अगर बैंकों के पास डिपॉजिट में कमी आएगी तो उन्हें लोन देने में भी दिक्कत आएगी.