नई दिल्ली : मोदी सरकार के पिछले 10 सालों में टैक्स व्यवस्था में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए हैं. ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के अधीन टोटल टैक्स कलेक्शन में तीन गुना इजाफा हुआ है. लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि इनमें 60 फीसदी योगदान आयकर दाताओं का है, जबकि 40 फीसदी योगदान कॉर्पोरेट टैक्स का है.
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के जारी आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में 11 जुलाई तक भारत के नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में 19.54 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो 5.74 लाख करोड़ रुपये है. आइए पहले समझते हैं कि टैक्स कितने प्रकार का होता है.
मोटे तौर पर, टैक्स दो प्रकार के होते हैं - डायरेक्ट और इनडायरेक्ट. इनडायरेक्ट टैक्स का भुगतान हरेक नागरिक करता है (क्योंकि यह वस्तुओं और सेवाओं से जुड़ी है), जबकि डायरेक्ट टैक्स का भुगतान वे लोग करते हैं, जिनकी आमदनी एक निश्चित सीमा से अधिक है. यह सीमा सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है.
टैक्स कलेक्शन के क्षेत्र में जीएसटी का आना एक महत्वपूर्ण परिवर्तन था, जिसने इनडायरेक्ट टैक्स परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया. साथ ही, अधिक संतुलित सिस्टम बनाने के लिए डायरेक्ट टैक्स रेट और कवरेज में समायोजन किया गया है.
टैक्स का बोझ बढ़ा
देश के इनकम टैक्स का लगभग 55 फीसदी हिस्सा आम नागरिकों द्वारा चुकाया जाता है, जबकि कॉर्पोरेट केवल 45 फीसदी का योगदान करते हैं. जब 2014 में मनमोहन सिंह ने पद छोड़ा था, तो स्थिति बिल्कुल उलट थी. उस समय 65 फीसदी आयकर कंपनियां भरती थीं, जबकि 35 फीसदी आयकर मध्यम वर्ग से कलेक्ट किया जाता था.
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले दशक में, सरकार के लिए कुल आयकर पांच गुना बढ़ गया, जिसमें 62 फीसदी कॉर्पोरेट से और 38 फीसदी आम आयकरदाताओं से आया.
मोदी सरकार के अधीन कुल आयकर कलेक्शन तीन गुना बढ़ गया है. 60 फीसदी आयकरदाताओं का योगदान है, और 40 फीसदी कॉर्पोरेट से आ रहा है. स्पष्ट रूप से, अधिक प्रगतिशील डायरेक्ट टैक्स में भी, मोदी सरकार के अधीन अमीर कॉर्पोरेट्स की तुलना में लोअर मिडिल क्लास पर अधिक कर का बोझ पड़ा है.
मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2017 में जीएसटी की शुरुआत की थी. जीएसटी, जिसमें लगभग 17 स्थानीय टैक्स और सेस शामिल हैं. 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया था. लेकिन पिछले 10 सालों के ग्राफ को देखें तो टैक्स कलेक्शन में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है.
- जीएसटी करदाता आधार अप्रैल 2018 के 1.05 करोड़ से बढ़कर अप्रैल 2024 में 1.46 करोड़ हो गया है.
टैक्स सरकार सरकारी राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और अन्य आवश्यक खर्चों को वित्तपोषित करती हैं. भारत के टैक्स प्राप्तियों के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 10 सालों में इनडायरेक्ट टैक्स की तुलना में डायरेक्ट टैक्स अधिक कलेक्शन हुआ है. साथ ही कस्टम ड्यूटी पर भी लगातर बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.
टैक्स प्राप्तियों के प्रकार
- जीएसटी प्राप्तियां- सकल कर प्राप्तियां सरकार द्वारा एकत्र किए गए सभी प्रकार के टैक्स से मिले राजस्व की कुल राशि को शामिल करती हैं. इसमें डायरेक्ट टैक्स और इनडायरेक्ट टैक्सकर दोनों शामिल हैं.
उदाहरण के लिए, अगर कोई सरकार एक वित्तीय वर्ष में सभी स्रोतों से 10 लाख करोड़ रुपये का कर एकत्र करती है, तो यह उसकी सकल कर प्राप्तियों को दर्शाएगा.
- डायरेक्ट टैक्स प्राप्तियां- प्रत्यक्ष कर व्यक्तियों और व्यवसायों पर उनकी आय, लाभ या संपत्ति के आधार पर सीधे लगाए जाते हैं. ये कर आम तौर पर प्रगतिशील होते हैं, जिसका अर्थ है कि उच्च आय वाले लोग कम आय वाले लोगों की तुलना में करों में अपनी आय का अधिक फीसदी देते हैं. भारत में डायरेक्ट टैक्स के उदाहरणों में आयकर, कॉर्पोरेट कर और संपत्ति कर शामिल हैं.
उदाहरण के लिए मान लीजिए ए की वार्षिक आय 15 लाख रुपये है. अगर उनकी आय वर्ग पर लागू आयकर दर 30 फीसदी है, तो उन्हें सरकार को आयकर के रूप में 4.5 लाख रुपये देने होंगे. यह 4.5 लाख रुपये सरकार के लिए डायरेक्ट टैक्स प्राप्ति है.
- इनडायरेक्ट टैक्स प्राप्तियां- इनडायरेक्ट टैक्स व्यक्तियों या व्यवसायों पर सीधे नहीं बल्कि वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाते हैं. ये कर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में शामिल होते हैं और उपभोक्ताओं द्वारा चुकाए जाते हैं. इनडायरेक्ट टैक्स के उदाहरणों में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और सेवा कर शामिल हैं.
उदाहरण के लिए यदि कोई उपभोक्ता 50,000 रुपये की कीमत वाला स्मार्टफोन खरीदता है, और उस पर लागू जीएसटी दर 18 फीसदी है, तो सरकार के लिए इनडायरेक्ट टैक्स प्राप्ति उस स्मार्टफोन की बिक्री से जीएसटी के रूप में एकत्रित 9,000 रुपये (50,000 रुपये का 18 फीसदी) होगी.
मध्यम वर्ग किस तरह टैक्स बना बोझ?
मध्यम वर्ग के खर्च पर टैक्स लगाने की बात करें तो, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कॉरपोरेट्स के लिए राहत है, लेकिन व्यक्तियों के लिए नहीं.
बता दें कि सैलरी क्लास को भुगतान किए गए जीएसटी पर कोई रिफंड नहीं मिलता है, लेकिन कॉरपोरेट्स को इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलता है. जबकि व्यक्तियों पर इनकम पर टैक्स लगाया जाता है. कॉरपोरेट्स पर इनकम से खर्च घटाने के बाद लाभ पर कर लगाया जाता है. कुछ हद तक समानता लाने के लिए मानक कटौती शुरू की गई थी, लेकिन इसे बढ़ाने की आवश्यकता है.
जबकि कॉरपोरेट्स को 2019-20 के बजट में कर प्रोत्साहन मिला, व्यक्तिगत करदाताओं ने आखिरी बार 2012-13 में बदलाव देखा था. यह एक दशक से भी अधिक समय पहले की बात है.
भारत की आबादी का लगभग 31 फीसदी हिस्सा मध्यम वर्ग द्वारा सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और सेवाओं में योगदान के बावजूद, इसे निजी स्कूलों और अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है. फिर हाईवे टोल है.
वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए उच्चतम 30 फीसदी कर ब्रैकेट भी रूस, चीन और अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बहुत कम आय पर लागू होता है. यह वे लोग भी हैं जो सबसे अधिक कर देते हैं, जिनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा और पेंशन सहायता नहीं है.
जबकि सरकार के पास इस रास्ते को अपनाने के लिए शायद अपने स्वयं के तर्क हैं. यही कारण है कि हर बजट में, मध्यम वर्ग कुछ कर राहत की उम्मीद के साथ सरकार की ओर देखता है.